घोटालों की मांद है नगर निगम, पेरीफेरल रोड निर्माण में करोड़ों के घोटाले

घोटालों की मांद है नगर निगम, पेरीफेरल रोड निर्माण में करोड़ों के घोटाले
August 31 06:11 2022

फरीदाबाद (म.मो.) पेरीफेरल रोड यानी बीके चौक से हार्डवेयर चौक, बाटा चौक, नीलम चौक, एनआईटी थाना के गोल चक्कर से केसी रोड होते हुए बीके चौक तक की सडक़ को चौड़ा करने, फुटपाथ व साइकिल ट्रैक तथा सडक़ के डिवाइडर में पेड़-पौधे व ग्रील आदि लगाने के साथ-साथ स्ट्रीट लाइट तथा जल निकासी का काम कराने की घोषणा 2017-18 में मुख्यमंत्री खट्टर ने की थी। उनके आदेश पर 76 करोड़ का एस्टीमेट तैयार करके आरके गांधी ठेकेदार को टेंडर दे दिया गया।

हेरा-फेरी में मास्टर गांधी निगम के लुटेरे अधिकारियों को खूब भाता है। सडक़ निर्माण के लिये टेंडर भरने में अनेक प्रकार के सम्बन्धित कामों के लिये अलग-अलग रेट भरे जाते हैं। गांधी जैसे खिलाड़ी ठेकेदार उन कामों के रेट बहुत ही कम भरता है जो उसे करने ही नहीं होते और जो करने होते हैं उनके रेट अच्छे-खासे भरता है। इसके चलते उसका टेंडर सस्ता होने के नाते पास हो जाता है। कुल काम का करीब 80-90 प्रतिशत पूरा करके अपनी पेमेंट लेकर पार हो जाता है और बाकी के काम जो उसे करने नहीं होते उन्हें छोड़ जाता।

एस्टीमेट की रकम बढ़वाने के लिये दूसरी ट्रिक घोषित किये गये काम में संशोधन करने की होती है। मूल रूप से इस पेरीफेरल रोड को तारकोल से बनाना था लेकिन लूट कमाई को बढ़ाने के लिये एस्टीमेट में संशोधन करके इसे सीमेंट कर दिया गया और लागत बढ़ाकर 102 करोड़ कर दी गई। विदित है कि इतने बड़े एस्टीमेट को पास करने का अधिकार निगमायुक्त को नहीं होता। इसकी स्वीकृति चंडीगढ़ मुख्यालय में बैठे प्रिंसिपल सेक्रेटरी से लेनी होती है, जो इस मामले में नहीं ली गई थी।

पिछले दिनों थाना एनआईटी के सामने वाले गोल चक्कर में मूर्ति स्थापना की नौटंकी करते हुए स्थानीय विधायक सीमा त्रिखा ने मौके पर मौजूद निगम अधिकारियों पर अहसान जताते हुए कह भी दिया कि उन्होंने सडक़ को तारकोल की बजाय सीमेंट से बनवाने का जिम्मा अपने ऊपर लेकर उनकी आफत टलवा दी। टलवाये भी क्यों न उनकी लूट में सीमा का भी तो हिस्सा रहता ही है।

इस सडक़ में एक यही अनियमितता नहीं है, टेंडर के अनुसार जो फुटपाथ, साइकिल ट्रैक, जल निकासी, व सडक़ों के बीच में पेड़-पौधे व ग्रिल आदि का काम भी पूरा नहीं किया गया। अब और कोई ठेकेदार इन कामों को उस रेट मेंं कर ही नहीं सकता जो गांधी ने एक ट्रिक के तौर पर टेंडर में भरे थे। इसलिये इन कामों के होने की अब कोई सम्भावना नजर नहीं आती। इसी सडक़ का यही सारा काम 2011-12 में शकील हैदर ठेकेदार को कम रेट के आधार पर मिल गया। ठेका तो मिल गया परन्तु निगम अधिकारी इससे खुश नहीं थे। इसलिये उसको काम में सहयोग देने की बजाय अड़चने खड़ी करने लगे थे। परिणामस्वरूप वह भी आधा-अधूरा काम छोड़ कर चला गया।

दूसरा बड़ा गजब स्मार्ट सिटी कम्पनी लिमिटेड के बनने से हो गया। खट्टर सरकार की इस कम्पनी ने भी इसी सडक़ के कुछ हिस्सों के लिये टेंडर जारी कर दिये। निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। इसके तहत थाना एनआईटी से नीलम चौक तक फुटपाथ, साइकिल ट्रैक, जल निकासी के लिये नाले आदि बनाने का काम सौंपा गया। इसी टेंडर में थाना एनआईटी से लेकर कोढ़ी कॉलोनी से होते हुए शमशान घाट तक की सडक़ पर भी यही सब काम होने वाले थे जो लगभग पूरे भी हो चुके हैं। यहां घोटाला डबल टेंडर का हो गया। यानी कि जिस काम का टेंडर नगर निगम दे चुका था उसी काम का टेंडर स्मार्ट सिटी ने भी दे दिया। इससे पहले कि दोनों टेंडरों की पेमेंट हो जाती, कुछ जागरूक नागरिकों ने इसकी सूचना स्मार्ट सिटी कम्पनी की मुखिया गरिमा मित्तल आईएएस को दे दी। मामले की जांच जारी है। वैसे डबल टेंडरी का यह कोई, इकलौता मामला नहीं है, ऐसे अनेकों मामले यहां दबे पड़े हैं।

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Mazdoor Morcha
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