पलवल (म.मो.) बीते करीब दो महीने से, पलवल-बल्लबगढ़ के बीच लगने वाले गदपुरी टोल के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन का सौदा निपट गया है। टोल से प्रभावित होने वाली जनता को हथियार बनाकर जिन नेताओं ने टोल कम्पनी के विरुद्ध संघर्ष का झंडा बुलंद किया था उन्होंने इसे बेच खाया और कम्पनी को लूट चालू करने के लिये सहमति प्रदान कर दी है।
इस आन्दोलन के अगुवाई करने वाले पूर्व विधायक टेकचंद शर्मा, रघुवीर सिंह तेवतिया, रतन सिंह सौरोत और जगन डागर आदि के एतिहासिक क्रिया कलापों को देखते हुए ‘मज़दूर मोर्चा’ ने 17-23 अप्रैल के अंक में ‘गदपुरी टोल प्लाजा पर सियासी नौटंकी’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में लिख दिया था कि इस आन्दोलन का हश्र क्या होने वाला है। उक्त जनविरोधी नेताओं ने आन्दोलन को बेचकर ‘मज़दूर मोर्चा’ की चेतावनी को सही साबित कर दिया है।
नेताओं द्वारा घोषित समझौते में बताया गया है कि गदपुरी गांव के विकास के नाम पर टोल कम्पनी अपने सीएसआर फंड से 25 लाख रुपये देगी। इसके अलावा टोल प्लाजा निर्माण में हथियाई गई गांव की पंचायती ज़मीन का मुआवजा अलग से देगी। टोल प्लाजा के साथ लगते गांव गदपुरी, पृथला, हरफली, डूंडसा, जटौला व असावटी वालों पर टोल नहीं लगेगा तथा 20 किलो मीटर के दायरे में आने वाले गांवों के लिये 200 रुपये का मासिक पास बनेगा। यह छूट केवल निजी वाहनो के लिये होगी न कि व्यवसायिक वाहनों के लिये। अपनी झेंप मिटाने के लिये उक्त नेताओं ने बल्लबगढ़ वाले चार लेन रेलवे ओवर ब्रिज को छ: लेन तथा इसी तरह हाल ही में तैयार हुए पलवल वाले चार लेन की एलिवेटेड सडक़ को छ: लेन करवाने की घोषणा की है। इसके अलावा चार अन्य स्थानों पर भी पुल बनबाने का एलान किया है। गौरतलब है कि जिन पुलों व सडक़ों को चौड़ा कराने का सेहरा ये बिके हुए गद्दार नेता अपने सिर बांध कर नाच रहे हैं, उन सब कामों के लिये टोल कम्पनी पहले से ही वचनबद्ध है, इन कामों के लिये कम्पनी को राजी करके इन्होंने कद्दू में तीर मार लिया है।
जानकार बताते हैं कि आन्दोलन के नेतृत्व में पूर्व मंत्री कर्ण दलाल भी शामिल रहे हैं। लेकिन स्थानीय निकायों के चुनावों में व्यस्तता के चलते उन्होंने समझौता वार्तायें उक्त नेताओं को सौंप दी थी। जब सारा सौदा बिक जाने की सूचना उन्हें दी गई तो उन्होंने पंचायत की बैठक बुलवाई। यह बैठक पलवल में न करके 23 जून को बल्लबगढ़ में की गई क्योंकि पलवल में उन्हें हालात बिगडऩे का अंदेशा था। जानकार बताते हैं कि इस बैठक में कर्ण दलाल ने समझौता करने वाले नेताओं को जम कर हडक़ाते हुए कहा कि तुमने तो मुझे भी बेच खाया। कुल सौदा कितने का हुआ, इसके लेन-देन की तो कोई रसीद होती नहीं लेकिन हवा में तैरती चर्चाओं के मुताबिक मामला एक करोड़ से ऊपर का है। कंपनी के लिये यह रकम मात्र एक दिन की कमाई के बराबर है।
टोल प्रणाली है सरकारी लूट कमाई का एक बड़ा स्रोत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघ चालक गुरू गोलवलकर के बताये सिद्धांत, ‘जनता के पास धन नहीं रहना चाहिये’ का पालन करते हुए संघ परिवार की मोदी सरकार जनता से धन निचोडऩे का कोई भी अवसर छोडऩा नहीं चाहती, बल्कि इसके लिये दिन-प्रति दिन नये-नये हथकंडे तलाशती रहती है।
इसी नीति के तहत सडक़ों पर टोल नाकों की न केवल संख्या बढ़ाई जा रही है बल्कि इन पर वसूली की दरें भी मनमाने ढंग से बढ़ाई जा रही हैं। पहले जहां दिल्ली से आगरा के बीच केवल दो टोल नाके होते थे अब इनकी संख्या बढ़ाकर चार कर दी गई है। टोल कम्पनी को बल्लबगढ़ से पलवल तक भी बिना टोल के आने-जाने वाले अखरने लगे तो गदपुरी के स्थान पर एक नाका और लगा दिया।
नाके की राह में रुकावट बनने वाले बिकाऊ नेताओं की औकात का कम्पनी को पूरा-पूरा ज्ञान था। उनसे निपटने पर होने वाले खर्च को भी उन्होंने अपनी प्रोजेक्ट लागत में पहले से ही जोड़ लिया था।