ध्यान भटकाने के लिये लाये ‘चंडीगढ़’ और ‘एसवाईएल’ रोड शो भगवंत मान और स्लीप शो मनोहर लाल खट्टर की नूरां कुश्ती

ध्यान भटकाने के लिये लाये ‘चंडीगढ़’ और ‘एसवाईएल’ रोड शो भगवंत मान और स्लीप शो मनोहर लाल खट्टर की नूरां कुश्ती
April 09 11:16 2022

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
रियाणा व पंजाब निवासी महंगाई और बेरोजगारी जैसे अति गंभीर मुद्दों से जूझ रहे हैं तो ध्यान भटकाने के लिये इनके सामने ‘चंडीगढ़’ व ‘एसवाईएल’ जैसे निरर्थक मुद्दे परोस दिये गये हैं। चंडीगढ़ जहां बना था वहां खड़ा है, वहीं खड़ा रहेगा और जिस काम के लिये बना था उसी के काम आता रहेगा। एसवाईएल पानी का मुद्दा भी बीते 56 साल से पिटारे में बंद करके रखा हुआ है। इसे वक्त जरूरत शासक वर्ग पिटारे से निकाल कर जनता के सामने उछाल देता है।

एक साल तक चले किसान आन्दोलन के दौरान भी बुरी तरह से घबराई-बौखलाई हरियाणा की भाजपा सरकार ने एसवाईएल का मुद्दा पिटारे से निकाल कर हरियाणा पंजाब के किसानों को आपस में लड़ाने का पुरज़ोर प्रयास किया था लेकिन किसान बहकावे में नहीं आये। अब पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा कांग्रेस, अकाली व भाजपा का सफाया कर दिये जाने से घबराई भाजपा ने आम आदमी पार्टी को हरियाणा में घुसने से रोकने के लिये उक्त दोनों मुद्दे उछाल दिये हैं। उधर ‘आप’ को जब इसकी कोई व्यापक काट नज़र नहीं आई तो एक बेहूदा सा प्रस्ताव पंजाब विधान सभा में पास कर दिया। इसमें कहा गया है कि चंडीगढ़ पंजाब का है।

ध्यान रहे कि पंजाब के सीएम पद की शपथ लेने के बाद भगवंत मान ने या तो भ्रष्टाचार, रोजगार, महंगाई को लेकर थोथी घोषणाएं की हैं या वे पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का दुमछल्ला बने हुए अन्य राज्यों (एचपी, गुजरात) में रोड शो करते देखें जा रहे हैं।

इसके मुकाबले में हरियाणा के खट्टर को भी काम मिल गया। उन्होंने भी आम आदमी पार्टी के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया। उन्होंने भी न केवल चंडीगढ़ बल्कि एसवाईएल तथा अबोहर-फाजिल्का जैसे गड़े मुर्दे उखाडऩे शुरू कर दिये। विदित है कि पहली नवम्बर 1966 को पंजाब से अलग होकर बने हरियाणा को ये फिजूल के मुद्दे एक प्रकार से दहेज में मिले थे। बीते 56 साल में दोनों राज्यों में कई बार एक ही पार्टी की सरकारें रह चुकने के बावजूद ये मसले कभी हल न हो पाये और न ही कभी हल हो पायेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार अपनी ऐसी-तैसी करा ली लेकिन मुद्दा जहां का तहां ही रहा।

ऐसे में जागरूक एवं समझदार लोगों को राजनीतिक ठगों के बहकावे में आकर लडऩे-भिडऩे की अपेक्षा अपना आपसी भाईचारा बना कर रखना चाहिये। लडऩे के लिये बढ़ती महंगाई बेरोजगारी सरकारी तंत्र द्वारा लूट आदि जैसे मुद्दे ही काफी हैं। सभी नागरिकों को एक जुट होकर भेड़ की खाल में छिपे इन भेडिय़ों के खिलाफ लडऩा चाहिये।

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