सारे षडय़ंत्र में डीईईओ मुनीष चौधरी गैंग

सारे षडय़ंत्र में डीईईओ मुनीष चौधरी गैंग
October 07 01:44 2021

सरकार चाहे कांग्रेस की हो या चौटालों की या फिर भाजपा की, डीईईओ (जि़ला मौलिक शिक्षा अधिकारी) मुनीष चौधरी की जुगाड़बाज़ी सदैव बनी रहती है। कांग्रेस राज में जुगाड़बाज़ी के बल पर नौकरी पाई तो चौटालों के राज में प्रिंसिपल का पद हथिया लिया। उस समय प्रिंसिपल बनने के लिये इनकी सुविधाअनुसार पात्रता में संशोधन किये गये और मुनीष पात्र न होते हुए भी झट से प्रिंसिपल बना दी गयी।

नौकरी के दौरान भी इन्होंने कभी इसको कर्तव्य नहीं समझा। बच्चों के बीच शिक्षा का प्रसार करने की अपेक्षा इनका ध्यान सदैव हेरा-फेरी व फर्जी बिल बनाकर सरकारी पैसा हड़पने पर रहा है। छोटी-छोटी अनेक वारदातों को दरकिनार करते हुए, पाठकों को 25 लाख 79 हजार रुपये के एक मोटे घोटाले की ओर ले चलते हैं। वर्ष 2003 से 06 तक मुनीष जब जि़ला जेंडर समनव्यक के पद पर तैनात थी तो इन्हें सरकार की ओर से उक्त रकम मिली। यह रकम जिले के विभिन्न स्कूलों में कमेटियां बनाकर विशेष गाइड लाइन्स के तहत खर्च करनी थी।

रकम मिलते ही मुनीष ने पहले झटके में ही पांच लाख रुपये डकारने की नीयत से सीधे अपने व्यक्तिगत बैंक एकाऊंट में डाल दिये। जब किसी सयाने कर्मचारी ने इन्हें समझाया कि यह तो तुमने सीधे जेल जाने का काम कर लिया। सरकारी पैसा इस तरह से सीधे तौर पर नहीं डकारा जाता। इसे डकारने के तरीके दूसरे होते हैं, उन्हें समझ कर डकारो। यह बात समझने में मुनीष को तीन महीने लग गये। इसके बाद उन्होंने यह रकम वापिस सरकारी खाते में डाल कर तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हुए पूरी की पूरी रकम डकार ली।

जाहिर है पूरी रकम तो उन्हें अकेले कौन डकारने देता, ऊपर-नीचे के विभागीय लोगों ने भी अपना-अपना हिस्सा उस रकम में से जरूर वसूला होगा। इसी के चलते आज तक किसी ने भी इस घोटाले के बाबत मुनीष को कभी नहीं छेड़ा। जानकार बताते हैं कि इस गबन की जांच एक बार संजय जून के पास भी आई थी जब वे यहीं पर बतौर एडीसी तैनात थे। उन्होंने सम्बन्धित फाइलें मंगाई तो थी लेकिन वे कहां गई कोई नहीं जानता। उधर दूसरी ओर, शिकायत करने वाले भला कहां रुकने वाले थे। वे पहुंच गए लोकायुक्त हरियाणा के दरबार में। समझा जाता है कि वहां से शीघ्र ही मुनीष को तो बुलावा आयेगा ही, अब तक जांच के नाम पर नौटंकी करने वाले अधिकारियों को भी सेक लगने की सम्भावना नज़र आती है। मुनीष को इस बात की आशंका है कि उसके विरुद्ध की जाने वाली तमाम शिकायतों के पीछे डीईओ ऋतु चौधरी का हाथ है। इसलिये वह उन्हें हर तरह से उखाडऩे-पछाडऩे में जुटी है।

                                                                                बतौर डीईओ ऋतु के तैनात होने से मुनीष की मुसीबत बढ़ गई
जि़ला शिक्षा विभाग में मुनीष डिप्टी डीओ के पद पर तैनात होते हुए यदा-कदा ही दफ्तर आती थी। जिस बाबू ने जो काम कराना होता, वह फाइल लेकर उनके घर पहुंच जाता था। कई बार तो मैडम हाजिरी रजिस्टर भी घर पर ही मंगाकर हाजिरी डाल देती थी। दफ्तर के अपने कमरे पर बाकायदा ताला लगा कर रखती थी ताकि उनकी गैरहाजिरी में कोई और उनके कमरे में न घुस पाये। ठेके पर ली गई सरकारी गाड़ी का खुला दुरुपयोग करने में भी उन्हें कोई हिचक न थी। तत्कालीन डीईओ सतिन्द्र कौर की तो हिम्मत नहीं थी कि वे मुनीष को कभी कुछ कह सके। यानी कि उस काल में उन्होंने खुली मौज-मस्ती काटी। अब आ गई ऋतु चौधरी तो सबसे पहले उन्होंने मुनीष के कमरे से ताला हटवाया। दूसरे उन्होंने हाजिरी रजिस्टर अपने कब्जे में ले कर उसकी गैरहाजिरी को नियंत्रित करना शुरू कर दिया। इससे पहले मुनीष एक क्लर्क को अवैध रूप से अपनी कार पर बतौर ड्राइवर इस्तेमाल करती थी और उसकी हाजिरी दफ्तर मेें लगती थी। ऋतु ने उस क्लर्क की भी मुश्कें कस दी। इतना सब करने के बाद भी मुनीष काबू में आने को तैयार नहीं थी। वह दफ्तर का कोई भी काम करने को राजी नहीं थी।

उसने अपने ताल्लुकात के बल पर एडीसी सतबीर मान से,ऋतु को कहलवाया कि वह मुनीष को किसी काम के लिए न कहा करे। उसके हाजिरी रजिस्टर को न छेड़े। जब ऋतु ने मुनीष की नाफरमानी की शिकायत चंडीगढ़ मुख्यालय भेजी तो वहां से ज्वाईंट डायरेक्टर चौहान ने उलटे ऋतु को ही कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए लिखा कि खबरदार जो आगे से कभी मुनीष को छेड़ा। उसकी किसी भी नाफरमानी के विरुद्ध मुख्यालय में शिकायत न किया करें। मतलब बड़ा स्पष्ट है कि मुनीष तो ऐसे ही मौज-मस्ती काटेगी, ऋतु उसमें कोई अड़ंगेबाज़ी न करे। जाहिर है कार्यालय का एक अधिकारी जब अनुशासनहीनता व निकम्मेपन की तमाम हदें पार करने लगे तो शेष कर्मचारियों पर दुष्प्रभाव पडऩा स्वाभाविक ही है।

मुनीष को इतनी निरंकुशता से भी संतुष्टि नहीं हुई। जुगाड़बाज़ी करके वह यहीं पर पदोन्नत होकर डीईईओ के पद पर तैनात हो गई। नियमानुसार डीईओ की किसी वजह से अनुपस्थिति की अवस्था में डीईईओ स्वत: डीईओ का चार्ज ले लेते हैं। बीते दिनों जब डीईओ ऋतु 15 दिन की छुट्टी गई थी तो उसी समय मुनीष ने डीईईओ का पद सम्भाला और डीईओ का चार्ज भी ग्रहण कर लिया। छुट्टियों से लौटने के बाद ऋतु के साथ हर तरह की बद्तमीजी मुनीष ने की। करे भी क्यों न जब ऊपर तक के आईएएस अधिकारी उसकी मुट्ठी में हों। ऐसे में डीईओ ऋतु द्वारा मुख्यालय को भेजे गये तमाम पत्रों का रद्दी की टोकरी में जाना स्वाभाविक ही था, जबकि इन हालात में मुनीष को चार्जशीट हो जाना चाहिये था। लेकिन जब सईयां भये कोतवाल तो डर काहे का।

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Mazdoor Morcha
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