फरीदाबाद (म.मो.) बीते करीब 40 वर्षों से हरियाणा में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सक्रिय है। इसके बावजूद प्रदूषण कहीं भी नियंत्रित नज़र नहीं आता। चाहे वायु प्रदूषण हो अथवा जल प्रदूषण, निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा है। हालात देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि बोर्ड केवल और केवल नोट छापने का कारखाना है। उद्योगपतियों को प्रदूषण फैलाने के लिये बोर्ड द्वारा ‘कंसेंट’ यानी सहमति दी जाती है जिसके बदले बोर्ड बाकायदा तयशुदा फीस लेता है। इस सरकारी फीस के अलावा बोर्ड के अधिकारी जो वसूली करते हैं वह अलग से। अस्पतालों व क्लीनिकों आदि से वसूली करने के लिये बोर्ड ने बाकायदा अपने गुर्गों को लूट का लाइसेंस देकर छोड़ रखा है। ये गुर्गे मेडिकल वेस्ट उठाने व उसको विधिवत ठिकाने लगाने का ठेका तो लेते हैं परन्तु उस वेस्ट को नियमानुसार ठिकाने नहीं लगाते। जो अस्पताल अथवा क्लीनिक इन्हें अपना वेस्ट उठाने का ठेका न देकर खुद ही ठिकाने लगाना चाहे तो ये गुर्गे उस पर भारी जुर्माना करवा देते हैं।
इस शहर में कपड़े की रंगाई करने वाली सैकड़ों छोटी-बड़ी इकाइयां बीते 50 साल से सक्रिय हैं। विदित है कि रंगाई के इस काम में भारी मात्रा में खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। रसायनयुक्त पानी को किसी भी रूप में फैक्ट्री से बाहर निकालने से पहले शोधन प्रक्रिया द्वारा तमाम रसायनों को पानी से निकाला जाना अति आवश्यक होता है। परन्तु इस प्रक्रिया पर होने वाले मोटे खर्च को बचाने के लिये ये ईकाईयां बिना शोधन के ही प्रदूषित पानी को निकटतम नदी, नहर, नालों आदि में बहा देती हैं। जिनके आस-पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती तो वे इस जहरीले पानी को सीधे ही गहरे बोर द्वारा धरती में उतार देते हैं।
इस तरह के अनेकों मामले मीडिया द्वारा प्रकाश में लाये जाने के बावजूद इनकी कोई रोक-थाम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड न कर सका। मामले प्रकाश में आने के बाद बोर्ड के अधिकारी इन यूनिटों की जांच करने तो जरूर पहुंचते रहे हैं लेकिन कुछ कार्रवाई करने के लिये नहीं बल्कि अपनी सेटिंग बैठाने के लिये। यदा-कदा ये अधिकारी उनको नोटिस भी देते रहते हैं।