डेनमार्क से भीख में पैसे लेकर स्थानीय बीके अस्पताल में 102 बिस्तरों का कोविड वार्ड तो बना लिया लेकिन इसको चलाने के लिये न तो कोई डॉक्टरों व अन्य स्टाफ की भर्ती की गई और न ही कोई आवश्यक साजो-सामान आदि खरीदा गया। सरकार ने इसकी जरूरत इसलिये नहीं समझी कि पड़ोस में खड़ा ईएसआई अस्पताल तो चल ही रहा है, पहले की तरह तमाम कोरोना मरीज़ों को वहां धकेल कर अपनी पीठ थपथपा लेंगे। लेकिन इस बार संगठित मज़दूर सरकार की इस दादागिरी को चलने नहीं देंगे।
सवाल यह पैदा होता है कि सरकार अस्पताल के नाम पर बिल्डिंग तो बना लेती हैं लेकिन उनमें चिकित्सा सेवायें आवश्यक स्टाफ आदि क्यों नहीं उपलब्ध कराती? उत्तर बड़ा स्पष्ट है, सरकार का उद्देश्य जनता को सेवायें देना नही है, सेवायें देने के नाम पर केवल उन्हें बेवकूफ बनाना है और इसके लिये बिल्डिंग खड़ी करना, उनके शिलान्यास व उद्घाटन आदि करना पर्याप्त होता है। इस तरह के निर्माण कार्यों से जहां एक ओर सम्बन्धित अफसरों व नेताओं को अच्छा-खासा कमीशन बैठे-बिठाये मिल जाता है वहीं जनता को अपने विकास कार्य गिनाने के लिये बिल्डिंग खड़ी हो जाती हैं। दूसरी ओर यदि अस्पताल को चलाने के लिये आवश्यक स्टाफ आदि की व्यवस्था करने लगे तो उसके लिये बजट ही नहीं रहता क्योंकि सारा बजट तो वाहियातपनों व घोटालों की भेंट चढ़ चुका होता है।