बैठने को कमरे नहीं, बड़ोली में संस्कृति मॉडल स्कूल घोषित

बैठने को कमरे नहीं, बड़ोली में संस्कृति मॉडल स्कूल घोषित
December 20 03:32 2022

फरीदाबाद (म.मो.) मात्र सात जर्जर कमरों में चल रहे गांव बड़ौली के हाईस्कूल को वरिष्ठ माध्यमिक एवं मॉडल संस्कृति स्कूल का दर्जा दे दिया गया। यह दर्जा देने के लिये स्वयं शिक्षा मंत्री कंवरपाल पिछले दिनों यहां आये थे। बारहवीं तक का स्कूल, कमरे केवल सात, वे भी जर्जर हालत में, है न गजब खट्टरशाही! इतना ही नहीं गजब तो यहां संस्कृति मॉडल के नाम पर 500 रुपये फीस लगा कर और भी कर दिया गया। यह गावं  सेक्टर 9 के पूर्व में नहर पार बसा हुआ है। यह स्कूल 1901 में स्थापित किया गया था। उस वक्त यह चौथी जमात तक ही था। अब यहां पर एक प्राईमरी स्कूल लडक़ों के लिए, एक लड़कियों के लिए तथा एक लडक़े एवं लड़कियों का (सहशिक्षा वाला) वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल बना दिया गया है। इनमें शिक्षकों की संख्या 25 है जबकि छात्रों की संख्या करीब 1000। यहां न तो विज्ञान, गणित व अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक हैं और जब छात्रों को बैठने के लिये ही कोई इमारत नहीं तो विज्ञान की प्रयोगशालाओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

मौजूद कमरों में से दो तो इस लायक भी नहीं कि उनमें सामान भरा जा सके, शेष पांच कमरों में स्कूल का सारा सामान भरा हुआ है। यानि उन्हें कबाडख़ाना बनाकर बंद कर दिया गया है। लिहाजा तमाम छात्र खुले मैदान में बैठकर पढऩे को मजबूर है।

बच्चों की समस्याओं को लेकर ग्रामीण, अभिभावक, जि़ला शिक्षा अधिकारी मुनीष चौधरी से मिलने उनके कार्यालय सेक्टर 16 कई बार गये, लेकिन वे कभी नहीं मिली। अव्वल तो वे दफ्तर आती ही नहीं और जब आती भी हैं तो कमरा बंद करके तीन-तीन घंटे लंच करती रहती हैं। पहले से ही दुखियारे ग्रामीणों को मुनीष के इस दुर्व्यवहार  ने इस कदर भडक़ा दिया कि उन्होंने दिनांक 5 दिसम्बर को अपने स्कूल में ताला जड़ दिया। बस फिर क्या था, क्षेत्र के विधायक राजेश नागर, पूर्व विधायक ललित नागर तथा अन्य नेतागण स्कूल में जा पहुंचे तो मुनीष भी लंच-वंच छोडक़र दौड़ी-दौड़ी स्कूल पहुंची। जिन लोगों से मिलने की फुर्सत उन्हें अपने दफ्तर में नहीं थी, अब उनके दरबार में जा पहुंची। वहां विधायक राजेश नागर ने तो जो फटकार मुनीष पर लगाई सो लगाई, ग्रामीणों ने भी खरी-खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

विकास एवं शिक्षा स्तर को ऊंचा करने का दावा करने वाली खट्टर सरकार के दावों की पोल खोलता यह अकेला स्कूल नहीं है। राज्य के लगभग सभी स्कूल, विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों की यही दुर्दशा है। यह सब धनाभाव के चलते नहीं बल्कि ब्यापक भ्रष्टाचार के चलते है। जिले भर में स्कूलों के रख-रखाव एवं भवन निर्माण के लिये करोड़ों रुपये इस वर्ष डकारे जा चुके हैं और करीब दो से तीन करोड़ अभी डकारे जाने शेष है। इन हालात में बच्चे यदि सरकारी स्कूल न छोड़ें तो क्या करें? स्कूल छोडऩे पर खट्टर कहते हैं कि बच्चे ही नहीं रहे तो स्कूल की क्या जरूरत है?

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Mazdoor Morcha
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