सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस खानविलकर बेंच बनी तमाशबीन फरीदाबाद (म.मो.) नगर निगम व जि़ला प्रशासन ने भारी पुलिस बल के साथ दिनांक 19 जनवरी को पहले से ही उजड़े हुए गरीब मेहनतकश लोगों को कुचलने के लिये पूरी ताकत लगा दी। विदित है कि बीते जून-जुलाई में खोरी गांव में स्थित करीब 10000 घरों को तहस नहस कर दिया था। इसके बावजूद वहां के अधिकांश निवासी अपनी जगह छोडऩे को तैयार नहीं थे। वे अपने टूटे घरों के मलवे पर ही बैठ कर अपना समय काटते आ रहे हैं।
इस बार इन लोगों ने बड़े ही अप्रत्याशित ढंग से तोड़-फोड़ दस्ते पर भारी पथराव कर दिया। बुलडोजरों को भी कुछ हद तक क्षतिग्रस्त कर दिया। जवाब में पुलिस ने उन पर जम कर लाठी प्रहार किये। तीन-चार लोगों के खिलाफ नामजद तथा 200 अन्य लोगों के खिलाफ विभिन्न गंभीर आपराधिक धाराओ में थाना सूरज कुंड पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है।
गरीबों की यह बस्ती हरियाणा दिल्ली बॉर्डर से एकदम सटी हुई है। बस्ती के पड़ोस में दो बड़े पंचतारा होटल भी बने हुए हैं। समझ नहीं आता कि गरीबों की बस्ती को तो जंगल कानून (पीएलपीए) का उल्लंघन मान कर उजाड़ा जा रहा है और बगल में खड़े आलीशान होटलों को कोई पूछ नहीं रहा। मजे की बात तो यह है कि यहां कोई जंगल जैसी बात भी नज़र नहीं आती। गरीबों की बस्ती उजाडऩे के बाद उन्हें पुनर्वास के नाम पर इधर से उधर दौड़ाया जा रहा है। तरह-तरह की अजीबो गरीब शर्तों के साथ उन्हें वे खंडहरनुमा फ्लैट दिये जाने की बात कही जा रही है जो बीते 20 साल से खड़े-खड़े बेकार हो चुके हैं। दरअसल ये फ्लैट खोरी से 10-12 किलोमीटर दूर डबुआ में बनाये ही केवल दिखावे एवं मोटे कमीशनखोरी के लिये थे। इन्हें कभी भी किसी ने रहने के लायक नहीं समझा। सवाल यह भी पैदा होता है कि 40-50 साल पुरानी बस्ती को तोडऩे से पहले उनके विस्थापन का कार्य-क्रम क्यों तैयार नहीं किया गया? तोडऩे के बाद ही पुनर्वास करने की यह कौनसी विधि है?
चलो, कमज़ोर बेसहारा गरीबों को तो खट्टर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक इशारे पर उजाड़ डाला लेकिन उन अमीरों के बड़े फार्म हाउसों, बेंक्विट हॉलों, होटलों, तथा विभिन्न संस्थागत आलीशान भवनों की ओर हाथ डालने से खट्टर सरकार क्यों बचती आ रही है? सर्वविदित है कि ये तमाम निर्माण अरावली के बीचों-बीच वास्तविक जंगल के भीतर अनेकों वृक्षों को काट कर बनाये गये हैं जबकि दूसरी ओर खोरी में कोई वृक्ष नहीं काटे गये और न ही वहां कोई वन्य जीव-जन्तु बसते हैं।
सुधी पाठक भूले नहीं होंगे कि उक्त फार्महाउसों व अन्य निर्माणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार हरियाणा सरकार के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई थी। बेशर्म अधिकारी सुप्रीम कोर्ट को बार-बार तरह-तरह के बहाने लगा कर भटकाते रहे। कभी ड्रोन सर्वे की बात करते तो कभी किसी रिपोर्ट तो कभी किसी कानून का हवाला देकर समय टालते रहे। लेकिन गरीबों की टूटी हुई बस्ती में, अपने-अपने मलबे के ऊपर खुले आसमान के नीचे पड़े ये गरीब भी सरकार को अखरने लगे थे। लिहाजा, अब उन्हें वहां से तितर-बितर कर भगाने के लिये सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
सवाल तो सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस खान विलकर बेंच पर भी बनता है जो बार-बार तारीख पर तारीख देने के बावजूद हरियाणा सरकार द्वारा उन अवैध निर्माणों को आज तक नहीं हटवा सकी जो पीएलपीए कानून का खुला उल्लंघन करते हुए जंगल को चिढ़ा रहे हैं। और तो और बीते दो-चार माह में कुछ फार्म हाउसों की जो दीवारें आदि तोड़ी गई थी वे फिर से बन गई हैं। नगर निगम की उनकी ओर जाने की हिम्मत क्यों नहीं पड़ती?