आयुष्मान की सरकार में एम्स आज खुद बीमार है

आयुष्मान की सरकार में एम्स आज खुद बीमार है
January 27 07:22 2020

डब्लूएचओ के मापदंडों से 1000 मरीजों पर एक चिकित्सक का होना अनिवार्य है परंतु भारत में 10000 लोगों पर एक डाक्टर उपलब्ध है|

 

पंडित नेहरू के कई अनमोल सौगातों में 1956 में बना दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भारत के सबसे मशहूर चिकित्सा केन्द्रों में आज भी शायद पहले स्थान पर होगा| इस अस्पताल के डाक्टरों को गरीब जनता भगवान् के आस पास का ही दर्जा देती है| बड़े से बड़े राजनेताओं तक का इलाज यहीं होता आया है| अत्याधुनिक चिकित्सीय व्यवस्थाओं और विश्व स्तरीय चिकित्सकों से सजा यह अस्पताल सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण आज खुद बीमार लगने लगा है|

बिहार, मधुबनी जिले के खोरसा गाँव से आये 65 वर्षीय रघुबीर पिछले 2 महीने से एम्स में अपनी आँखों का इलाज करा रहे हैं| रघुबीर ने बताया कि शुरूआती दिनों में तो उनको सिर्फ कार्ड बनवाने में ही दो हफ्ते लग गए| जानकारी न होने के कारण रोज़ लाइन में लगते और जब तक नंबर आता तब तक या तो खिड़की बंद हो जाती थी या फिर कई दफा तो गलत लाइन में लग जाते थे| बड़ी दिक्कतों से आज उनका चश्मा बन सका है|

हालाँकि, यहाँ मरीजों का पंजीकरण 8:30 पर सुबह प्रारंभ होता है पर 100-100 मीटर लम्बी कतारें हर विभाग के सामने कार्ड बनवाने के लिए रात 3 बजे से ही लग जाती हैं| हर विभाग का एक तय नंबर तक ही पंजीकरण होता है, उसके बाद जो लोग कतार में हैं उन्हें अगले दिन या महीनों तक आना पड़ सकता है जब तक कार्ड न बन जाए|

50 वर्षीय गेंदालाल उत्तर प्रदेश के एटा जिले से आये हैं| गेंदालाल अपनी पत्नी को कैंसर की बीमारी के चलते खो चुके हैं पर वही समस्या बेटे के साथ होने पर अब एम्स का रुख किया| यहाँ पहुँच कर देखा तो पूरी एक दुनिया ही कैंसर से पीड़ित है और इस भीड़ में सिर्फ पंजीकरण कार्ड बनवा पाना ही एक लड़ाई जीतने सा है|

सुबह 4 बजे से लाइन में लगने पर 2 बजे दोपहर में डाक्टर से मिल कर सिर्फ ये पता चला कि रेडीओलोजी की मशीन काम नहीं कर रही और उन्हें सफदरजंग रेफेर कर दिया गया| सफ़दरजंग में भी यही बात बोल कर वापस एम्स रेफेर कर दिया| अब वो नहीं जानते कि क्या करें? इसलिए गेंदालाल ने फैसला किया है कि अपनी एकमात्र दो बीघा पुश्तैनी ज़मीन बेच कर बेटे का इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में कराएंगे|

एम्स के एक मेडिकल स्टोर सुपरवाइजर ने बताया कि 75% कैंसर पीड़ितों की मृत्यु सिर्फ उपचार में देरी के कारण ही हो जाती है एम्स में| इस देरी के मुख्य कारणों में बेड की अनुपलब्धता और रेडीओलोजी मशीन का आगे कई महीनों तक बुक रहना शामिल है|

डाक्टर जीजू रहने वाले कश्मीर के हैं और अपनी खुली विचारधारा के कारण वहाँ के कट्टरपंथी संगठनों के निशाने पर भी| इसलिए, 45 की उम्र में अब सिक्किम में जा बसे| पांच रोज़ पहले उनके बड़े भाई का सड़क हादसे में एक्सीडेंट हुआ जिनका इलाज एम्स ट्रामा सेंटर में चल रहा है| फ़िलहाल वो कोमा में है| भाई के इलाज के लिए उसके अकाउंट से पैसे निकालने होंगे| इसके लिए बैंक को अस्पताल प्रशासन के सत्यापन की आवश्यकता है| जीजू रोज़ ट्रामा सेंटर में एमएस ऑफिस के चक्कर काट रहे हैं पर अस्पताल प्रशासन सत्यापित करने के लिए ऐसे आना-कानी कर रहा है जैसे एम्स के फण्ड से देना पड़ रहा हो|

रमेश चंद मिश्र दो वर्ष पहले सोशल वेलफेयर विभाग एवं शोभा राय जिनके पति श्रीराम राय 8 वर्ष पहले कैंसर अस्पताल से सेवानिवृत हुए एम्स के ईएचएस स्टाफ हैं| दोनों का सम्मिलित रूप से मानना है कि एम्स अब वैसा नहीं रहा जिसके लिए इसे जाना जाता था| यहाँ बैक ऑफिस का जो काम पहले एम्स के ही कार्मिक किया करते थे अब वाह प्राइवेट कम्पनी टीसीएस के हाथ में मोदी सरकार ने दे दिया है| कंपनी के लोग पुराने एम्स कर्मियों को न पहचानते हैं न बाइज्ज़त बात ही करते हैं| अपन ही संस्थान, जिसको जीवन के इतने वर्ष दिए, उसमे ऐसा सौतेला व्यवहार और इलाज के लिए धक्के खाना बहुत खलता है|

एम्स की सुरक्षा में लगे गार्ड वहाँ आये लोगों के प्रति ऐसा बर्ताव करते मिले जैसे वे मरीज नहीं कोई जानवर हों| ज्यादातर मरीजों और उनके साथ आये परिजनों का कहना था कि एक तो कोई मार्गदर्शन के लिए नहीं है इतने बड़े संस्थान में, ऊपर से ये गार्ड इतनी बेज्ज़ती से बात करते हैं कि खून के घूँट पी कर ही रह जाना पड़ता है, क्योंकि इलाज कराना मजबूरी है|

कुछ मरीजों ने सुरक्षाकर्मियों पर धांधली का भी आरोप लगाया| नाम न बताने की शर्त पर एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के एक कर्मचारी ने इन आरोपों की पुष्टि करते हुए कहा कि एम्स में ज्यादातर भर्तियाँ कॉन्ट्रैक्ट पर हो रही है| इसी क्रम में सिक्यूरिटी का भी जिम्मा एसआइएस और ग्रुप 4 जैसी कंपनी के हवाले है| चूँकि इन सुरक्षाकर्मियों की जान पहचान स्टाफ से हो चुकी है इसलिए ये लोगों से 1000 से 5000 रूपए तक ले कर उनका कार्ड बनवाना और ज्यादा पैसे देने की सूरत में टेस्ट इत्यादि करवाने का धंधा करते देखे जाते हैं| शंका तो यह भी है कि खुद प्रशासन के लोग भी इस रैकेट में शामिल हैं|

एम्स में आने वाली भीड़ के अनुपात में डाक्टरों की संख्या लगभग नगण्य है| डब्लूएचओ के मापदंडों से 1000 मरीजों पर एक चिकित्सक का होना अनिवार्य है परंतु भारत में 10000 लोगों पर एक डाक्टर उपलब्ध है| इस अनुपात को एम्स के सन्दर्भ में देखा जाये तो अन्तर बहुत ज्यादा है, क्योंकि भारत में एम्स सरीखे अस्पताल कम ही हैं| मोदी ने योगी के गोरखपुर में भी नया एम्स बनाने की घोषणा तो कर दी पर पहले जो एम्स बने हुए हैं उनके हाल दिन प्रतिदिन खस्ता ही होते जा रहे हैं| इसकी सुध लेने का वक़्त मोदी या योगी ब्रिगेड के पास नहीं है|

भाजपा सरकार के आने के बाद से एम्स का अपॉइंटमेंट सिस्टम ऑनलाइन कर दिया गया| इससे ज्यादातर गरीब जिनके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है, इसकी चिकित्सा सुविधाओं से बाहर हो गए| लाइन में लग कर अपॉइंटमेंट लेना नाकों चने चबाना है| इस बीच मोदी सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री का शर्मनाक वक्तव्य आया कि बिहार से आने वाले लोगों को एम्स से भगा दिया जाए क्योंकि ये छोटी छोटी बिमारियों के लिए भी आ जाते हैं| बिना जांचे कोई बीमारी बड़ी छोटी कैसे है ये मंत्री जी ही बता सकते हैं|

‘आयुष्मान भारत’ जैसी प्रचार योजनाओं के तहत 10 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य लाभ देने के नाम पर बीमा कंपनियों की जेब भरने वाली मोदी टीम को इस शानदार अस्पताल को बर्बाद करने का हुनर खूब पता है| एम्स की ही 45 वर्षीय महिला कर्मचारी की सुनें तो जिनको ये भ्रम है कि निजी हाथों में जा कर सब ठीक हो जाता है वो एम्स को आ कर देख लें, जो अभी आंशिक रूप से ही निजी हाथों में है पर इसकी बर्बादी पूर्ण रूप से झलकने लगी है|

भुगतना पड़ता है बीके के मरीजों को भी

फरीदाबाद के बीके अस्पताल के आपातकाल में आने वाले ज्यादातर मरीजों को दिल्ली के सफदरजंग या एम्स रेफेर किया जाता है| क्योंकि बीके अस्पताल में ओटी की पर्याप्त व्यवस्था ही नहीं है| एम्स के आज के हालातों में कितने लोगों को उचित इलाज मिल सकेगा? पैसे के दम पर सत्ता में बैठे निकम्मे राजनेताओं को अगर ये समझ होती कि लोग एम्स इसलिए आते हैं क्योंकि राज्यों में चिकित्सा सुविधा पर भरोसा जानलेवा है, तो ये आज एम्स में कतारों को भी जानलेवा न बना देते| मोदी के राज में आज एम्स खुद बीमार है और उनका आयुष्मान भी इसी गति को प्राप्त होगा|

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Mazdoor Morcha
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