चोरी किए गए मोबाइल से 11 बार मे 1,36,520 रुपये दूसरे खातों मेेंं ट्रांसफर किए गए खाता-खाताधारक और फोन नंबर की जानकारी होने के बावजूद पुलिस अपराधी तक नहीं पहुंच सकी फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) साइबर अपराध के इस आधुनिक युग में 1861 के पुलिस एक्ट के ढर्रे चल रही थानों की पुलिस इतनी सुस्त है कि अपराधियों की जानकारी होने के बावजूद न तो खुद कोई कार्रवाई करती है और न ही साइबर थाने की मदद लेती है। दस ग्राम गांजे के साथ गिरफ़्तारी दिखा कर खुद की पीठ ठोंकने में माहिर पुलिसकर्मी साइबर अपराध में शामिल लोगों को कथित पूछताछ के बाद छोडऩे की कला भी खूब जानते हैं। चोर ने मोबाइल चोरी कर उसके बैंक एप का इस्तेमाल करते हुए 11 बार में 1.36 लाख रुपये ट्रांसफर कर लिए, 17 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस का कहना है कि उसे साइबर क्राइम की जानकारी नहीं है, इसलिए अपराधी तक नहीं पहुंच पा रही।
पेशे से वकील सेक्टर 11 निवासी शिव कुमार जोशी 13 मई को खरीदारी करने सेक्टर सात की सब्जी मंडी गए हुए थे। वहां किसी ने उनका मोबाइल चोरी कर लिया। वह मोबाइल चोरी की शिकायत दर्ज कराने शाम आठ बजे सेक्टर सात चौकी पहुंचे। वहां मौजूद पुलिसकर्मी मोबाइल चोरी की जगह गुमशुदगी दर्ज कराने पर अड़ गया। उन्होंने बताया कि वे वकील हैं तो भी पुलिसकर्मी ने मोबाइल चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार कर दिया। करीब छह घंटे की जद्दोजहद के बाद आखिरकार रात दो बजे पुलिस ने मोबाइल चोरी का केस दर्ज तो किया लेकिन चोर को तलाशने की जहमत नहीं उठाई। इसका फायदा उठाते हुए चोर ने उनके मोबाइल में पेटीएम एप का इस्तेमाल कर उनके तीन बैंक खातों से 1,36,520 रुपये 11 बार में अपने साथी के खाते में ट्रांसफर कर लिए। उन्होंने तुरंत ही इसकी जानकारी सेक्टर सात चौकी इंचार्ज को दी और कार्रवाई करने की मांग की। चौकी इंचार्ज ने जवाब दिया कि उसे साइबर अपराध की (तफ्तीश करने की) जानकारी नहीं है। पुलिस कार्रवाई से निराश शिव कुमार जोशी ने खुद ही बैंक जाकर बीते ग्यारह ट्रांजेक्शन की जानकारी इकट्ठा की। किस खाते में कितना धन ट्रांसफर किया गया है, खाता धारक का नाम, पता और फोन नंबर की भी जानकारी उन्होंने इकट्ठा कर पुलिस को उपलब्ध करा दी। बावजूद इसके पुलिस ने चोरों को गिरफ्तार नहीं किया।
साइबर ठग ने दिल्ली में रहने वाले अपने एक साथी के खाते में उक्त सारी रकम ट्रांसफर की थी। उसका अता-पता बताने के बाद पुलिस ने उससे हल्की-फुल्की पूछ-ताछ करके छोड़ दिया। पुलिस ने उससे मोबाइल एवं रकम बरामदगी तो क्या करनी थी, उसके गिरोह के लोगों की जानकारी भी नहीं ले पाई। होना तो यह चाहिए था कि पुलिस उस युवक के जरिए असली अपराधी तक पहुंचती लेकिन साइबर अपराध से अनजान चौकी इंचार्ज ने अपराधी के सहयोगी को बेगुनाह मानते हुए जाने दिया।
किसी अपराध की घटना में केस की छानबीन के दौरान होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए पीडि़त पक्ष से नामजद के अलावा ‘कुछ अज्ञात लोग’ भी लिखवाने वाली पुलिस ने इस मामले में ज्ञात सहयोगी को ऐसे ही छोड़ दिया यह आश्चर्य और जांच का विषय है। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है बैंक खाते से निकाली गई राशि खुर्द बुर्द किए जाने की आशंका बढ़ती जा रही है।