पीएम केयर्स फंड मुकदमा
सरकार ने झूठ बोला, सुप्रीम कोर्ट ने फट से माना
अजातशत्रु
क्या सरकार ने पीएम् केयर फण्ड मामले में झूठ बोला है? क्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय का आधार सरकार की गलतबयानी को बनाया है? ज्ञात हो कि मंगलवार को सुनाये अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा नए बनाये गए नागरिक सहायता फण्ड, “पीएम केयर्स” का पैसा पहले से चले आ रहे फण्ड “एनडीआरएफ” में हस्तांतरित करने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि पीएम् केयर्स फण्ड एक पब्लिक चैरीटेबल फण्ड है।
पूरा मामला इस प्रकार है। वर्ष 2005 में भारत सरकार ने संसद में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट पास करवाया था जो कि प्राक्रतिक आपदाओं, महामारी आदि सभी संकटों से निबटने के लिए था। इस एक्ट की धारा 46(1) में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया फण्ड यानी एनडीआरएफ” बनाने का प्रावधान था। सरकार ने 2010 में यह राष्ट्रीय आपदा फण्ड स्थापित कर दिया और राज्य सरकारों से भी अपने स्तर पर ऐसे फण्ड, एक्ट की धारा 48(1) के तहत, स्थापित करने को कहा। संसद के द्वारा पारित कानून के अनुसार बने फण्ड में कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकारी विभाग दान दे सकता है और उसे इसपर आयकर में छूट मिलती है। संवैधानिक संस्था होने के नाते यह आरटीआई एक्ट 2005 के तहत आता है और भारत सरकार का महालेखाकार यानि “कैग” इसका ऑडिट भी करता है। अर्थात पूर्ण पारदर्शिता की गारन्टी इस फण्ड में की गई है।
कोरोना जैसी महामारी के लिए इस फण्ड में भी दान दिया जा सकता था व खर्च किया जा सकता था। लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने 28 मार्च 2020 को कोरोना महामारी से लडऩे के नाम पर एक नया फण्ड पीएम केयर्स के नाम से बना दिया। क्योंकि नया फण्ड संसद के कानून से नहीं बना था, इसलिए न तो यह सरकारी ऑडिट के दायरे में है और न ही सरकार इसको आरटीआई के दायरे में मानती है। सरकार का कहना है कि यह एक कल्याणकारी ट्रस्ट है इसलिए इसका कोई हिसाब किताब भी नहीं देख सकता। ध्यान देने की बात है कि इस फण्ड के लिए प्रधानमन्त्री व् कई अन्य मंत्री चंदे की अपील कर रहे थे और सरकारी विभागों पर चंदे के लिए पत्र लिख कर दबाव बना रहे थे। दूसरी ओर इसी काम के लिए बने एनडीआरएफ के लिए न कोई अपील कर रहा था और न चंदा इकठ्ठा किया जा रहा था। इस षडयंत्रपूर्ण भेदभाव और नए अपारदर्शी फण्ड के खिलाफ सीपीआईएल नामक एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की कि इस फण्ड का सारा पैसा एनडीआर?? में ट्रांसफर कर दिया जाए।
मंगलवार, 18 अगस्त 2020 को इस याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फण्ड का पैसा एनडीआरएफ को ट्रांसफर करने का आदेश देने से मना कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह एक प्राइवेट चैरीटेबल ट्रस्ट है जिसमें कोई भी दान दे सकता है। यानी कोर्ट ने बिना किसी विशेष जांच पड़ताल के सरकार की बात को मान लिया। अभी साकेत गोखले द्वारा नेट पर साझा किये हुए भारत सरकार के कंपनी कार्य मंत्रालय का 28 मार्च 2020 का एक कार्यालय मीमो बिल्कुल स्पष्ट कहता है कि भारत सरकार ने किसी भी तरह की आपातकालीन हालत, जैसे कि कोविड-19 के लिए पीएम केयर्स फण्ड की स्थापना की है(पैरा-1)। इसी मीमो का पैरा 2 स्पष्ट करता है कि क्योंकि कंपनी एक्ट के मुताबिक कम्पनियां राहत कार्यों के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित किसी भी फण्ड में सीएसआर का पैसा दान कर सकती हैं, इसलिए पीएम केयर्स फण्ड में वह सीएसआर का पैसा दे सकती हैं। बता दें कि कंपनियों को कानूनन अपनी शुद्ध वार्षिक मुनाफे का 2.5 प्रतिशत सामजिक कार्यों के लिए हर साल खर्च करना आवश्यक है। उपरोक्त मीमो से यह जाहिर है कि पीएम केयर्स फण्ड भारत सरकार द्वारा स्थापित फण्ड है और इसको निजी कल्याणकारी ट्रस्ट बता कर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सरासर झूठ बोला है और कोर्ट ने सरकार की बात पर बाकायदा मोहर लगा दी। इस पत्र के प्रकाश में आने से सुप्रीम कोर्ट का फैसला छल और कपट से हासिल किया हुआ सिद्ध होता है जोकि सधे-सीधे अवमानना और मिथ्या साक्ष्य का अपराध बनता है।
अन्य अनुत्तरित सवाल
इसके अलावा अन्य कई सवाल जनता के दिमाग में घूम रहे हैं जिनके जवाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले में नहीं मिले है।
अगर निजी है तो इसका कार्यालय वहां क्यों है?
सदस्य हो सकते हैं?
कि घाटे में है ने 150 करोड़ का दान व् कई अन्य पीएसयू ने इस फण्ड में दान
किस कानून के तहत दिया?
स्पष्ट है कि प्रधानमन्त्री मोदी ने यह फण्ड सिर्फ धांधली करने के लिए बनाया है ताकि इसमें सरकारी विभागों और निजी कंपनियों से पैसा भी झटका जा सके और उसका कोई हिसाब भी न देना पड़े। लेकिन ऐसी खुली धांधली पर सुप्रीम कोर्ट का जल्दबाजी में मोहर लगाना और भी निराशापूर्ण है।