सरकारी ठेके बंद होने से अवैध शराब की बिक्री व दाम बढे
फरीदाबाद (म.मो.) यूं तो शराब बेचने का अवैध धंधा हमेशा से ही मोटे मुनाफे का रहा है, न केवल बेचने वालों के लिये बल्कि पुलिस वालों के लिये भी। परंतु शराबबंदी में तो यह धंधा और भी अधिक मुनाफे का हो जाता है। लॉकडाउन के दौरान शराब बिक्री पर लगी पाबंदी भी शराबबंदी के दिनों की याद ताज़ा कर रही है।
लॉकडाउन के चलते हरियाणा सरकार ने 27 मार्च से शराब की खुदरा व थोक बिक्री पर रोक लगा दी। राज्य भर के तमाम खुदरा ठेकों व थोक गोदामों (एल वन) सील पर दिये गये। विदित है कि इन सब शराब विक्रेताओं ने सरकार को मोटी लाइसेंस फीस अदा करके इस कारोबार का लाइसेंस लिया था और बिक्री होने वाली शराब की हर बोतल पर सरकार को अलग से राजस्व प्राप्त होने वाला था। इन व्यापारियों का सरकार के साथ यह अनुबंध 31 मार्च तक का था और पहली अप्रैल से आगामी वित्त वर्ष के लिये भी फीस भर कर अनुबंध कर लिया गया था।
सरकार द्वारा सारे शराब के कारोबार को सील कर दिये जाने से, जाहिर है सरकार को अनुबंध के द्वारा मिली रकम को प्रति दिन के हिसाब से लौटाना पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को सैंकड़ों करोड़ का राजस्व घाटा होने वाला है। विदित है कि इस वित्त वर्ष में शराब के इस कारोबार से राज्य सरकार को 7000 करोड़ का राजस्व प्राप्त होना था। कुल राजस्व को यदि 365 दिनों से विभाजित करों तो प्रतिदिन का राजस्व 20 करोड़ बनता है। दूसरी ओर इन्ही सील्ड ठेकों व गोदामों से प्रति दिन चोरी-छिपे माल निकाला जा रहा है और अवैध रूप से गली, मुहल्लों में बेचा जा रहा है। यहां चोरी-छिपे कहना उचित नहीं, बल्कि पुलिस व आबकारी विभाग की मिलीभगत से ही यह माल बड़े पैमाने पर निकाला जा रहा है।
शहर भर में शराब की अवैध बिक्री का नेटवर्क काफी पुराना है। इस पर ‘मज़दूर मोर्चा’ ने समय-समय पर काफी लिखा है। पुलिस के जिन उच्चाधिकारियों के संरक्षण में यह धंधा चलता रहा है उनका भी विस्तृत विवरण प्रकाशित किया गया था। आज ठेके सील होने अथवा शराबबंदी की स्थिति में इस अवैध धंधे में जुटे लोगों की तो लॉटरी सी निकल पड़ी। पहले तो ये धंधेबाज़ ठेकों के मुकाबले डिस्काऊंट पर होम डिलिवरी देते थे और अब दुगने दामों पर बेच रहे हैं।
इस बाबत मिली सूचना की पुष्टि करने के लिये इस संवाददाता ने स्वयं 5 नम्बर स्थित थाना एनआईटी से मात्र आधा-पौना किलोमीटर के फासले पर भगत सिंह कॉलोनी की एक गली में ऐसे ही एक शराब बिक्री स्थल को देखा। वहां मौजूद विक्रेताओं से विभिन्न प्र्रकार की शराब के भाव पूछे व उनकी वीडियो भी बनाई। ग्राहक वहां बेखौफ आ-जा रहे थे। यह समय था दोपहर करीब 12 बजे का। जानकार बताते हैं कि शाम होते-होते यहां ग्राहकों की लाइन ऐसे लग जाती है जैसे मुफ्त राशन की दुकान पर। पता करने पर जानकारों ने बताया कि यह बिक्री स्थल ‘बंसी का ठेका’ नाम से जाना जाता है। बंसी को अब नहीं रहा लेकिन उसका बेटा कमल अब इस कारोबार को चला रहा है।
मजीद पूछ-ताछ करने पर स्थानीय लोगों ने बताया कि यह कोई अकेली दुकान नहीं है यहां तो गली-गली में इस तरह की दुकाने चल रही हैं। भगत सिंह कॉलोनी के अलावा पांच नम्बर, तीन नम्बर, दो नम्बर, एक नम्बर व एसजीएम नगर, संत नगर सहित लगभग पूरे शहर में इनका जाल सा बिछा हुआ है। इस से शराब की बिक्री तो ज्यों की त्यों हो रही है परन्तु सरकार का राजस्व बंद होकर अवैध कारोबारियों व उन्हें संरक्षण देने वाली पुलिस को मिलने लगा है।
समझ नहीं आता जो पुलिस अधिकारी सफेद पारचात में अपनी प्राइवेट गाड़ी में सवार होकर सोसायटियों के परिसर में खेलते बच्चों को देख कर चेतावनी दे सकते हैं तो क्या वे इन अवैध ‘ठेकों’ को नहीं देख पा रहे या फिर देख चुकने के बाद लूट कमाई में से अपना हिस्सा बटोर कर अनदेखा कर रहे हैं? यह तो वही जानें।