आईओसी के 200 करोड़ के गैस प्रोजेक्ट का एमसीएफ के भरोसे हो रहा था कबाड़ा
जागरूक गृहणियों ने बचा लिया
फरीदाबाद (म.मो.) सेक्टर 13 स्थित इन्डियन ऑयल कार्पोरेशन (आईओसी) ने अपने सीएसआर (कार्पोरेट सामाजिक दायित्व) के तहत 2000 करोड़ की लागत से चुल्हा जलाने की गैस बनाने का एक प्लांट लगाया। इस प्लांट की खूबी यह है कि गैस बनाने के लिये इसे केवल घरों, ढाबों व होटलों आदि से निकलने वाला किचन वेस्ट यानी सडऩे वाला बचा-खुचा खाना ही चाहिये।
प्लांट लगाने से पहले आईओसी ने शासन-प्रशासन चलाने वाले नेताओं व अफसरों से सारी योजना तय कर ली। इसके अनुसार ‘हूडा’ आईओसी को जमीन का वह टुकड़ा देगा जो इनके संस्थान व बाईपास के बीच में खाली पड़ा है। इसी बाईपास पर ऐसी अनेकों जगहों पर अवैध कब्ज़े भी हुए पड़े हैं। इस टुकड़े के बदले में ‘हूडा’ को वह कम्पोस्ट खाद मिलेगा जो गैस बनाने की प्रक्रिया के बाद निकलेगा। एमसीएफ ‘नगर निगम’ इसके लिये प्रतिदिन 5000 किलोग्राम किचन वेस्ट की आपूर्ति करेगा। विदित है कि शहर भर का कूड़ा-कचड़ा उठाना व उसे ठिकाने लगाना नगर निगम के प्रमुख दायित्वों में से एक है। अपने इसी दायित्व को निभाने में निगम के अस$फल होने के चलते शहर भर में जगह-जगह कूड़े के ढेर सड़ते नज़र आते हैं।
अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिये निगम ने कूड़ा उठाने का ठेका ईकोग्रीन नामक एक चाइनीज कम्पनी को दे दिया जो निगम कर्मियों से भी ज्यादा निकम्मी साबित हो रही है। सैंकड़ों करोड़ रुपये में ठेका लेकर भी ईकोग्रीन क्यों काम नहीं कर रही यह अपने आप में एक बड़ा घोटाला है। इस कम्पनी ने गैस प्लांट को जो कूड़ा सप्लाई किया वह किसी काम का नहीं था। प्लांट के लिये कूड़े की छंटाई करके केवल किचन वेस्ट अलग करके देना होता है न कि प्लास्टिक, कांच, लोहा पॉलीथीन व कंकर पत्थर आदि। ईको ग्रीन इस काम में पूरी तरह वि$फल रही। इसके चलते 200 करोड़ का लगा-लगाया प्लांट एक दम बेकार हो कर रह गया। मार्च 2019 में उद्घाटन के बावजूद इसमें कोई उत्पादन नहीं हो सका।
गत माह उपायुक्त यशपाल यादव ने जब इस प्लांट की दुर्दशा देखी तो उन्होंने एमसीएफ अधिकारियों को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया था। लेकिन निगम के बेशर्म अधिकारी ऐसे नोटिसों की कहां परवाह करते हैं! न जाने कितने आईएएस अफसर आये और नोटिस देकर चले गये। उपायुक्त के नोटिस के बावजूद निगम द्वारा किचन-वेस्ट की कोई सप्लाई नहीं आई।
जागरूक गृहणियों ने मोर्चा सम्भाला
बेशर्म निगम व लाचार प्रशासन की हालत को देख कर सेक्टर 9,15,19,37, ग्रीन वैली, नहर पार की आरपीएस सोसायटी की कुछ गृहणियों ने संगठित होकर किचन वेस्ट की सप्लाई का बीड़ा उठाया।
पूरी जानकारी के लिये इस संवाददाता ने सेक्टर 15 की गृहणी प्रियंका गर्ग से फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि वे पेशे से सीए (चार्टर्ड एकाऊंटेंट) भी है इस लिये वे बखूबी समझती हैं कि जब तक कूड़े कचरे से किचन-वेस्ट को अलग करने की अर्थव्यवस्था को नहीं समझा जायेगा इसे कर पाना सम्भव नहीं है। इसलिये इन महिलाओं ने संगठित होकर उन आठ लोगों को पकड़ा जो उनके घरों से कूड़ा उठा कर अपनी रेहड़ी व रिक्शा आदि में लाद कर बाईपाश पर निगम द्वारा बताये स्थानों पर डालते हैं। इन्होंने उन लोगों को उनके काम का महत्व समझाते हुए बताया कि समाज के लिये वास्तव में ही कितना महान काम कर रहे हैं। इसके लिये वे इज्जत के हकदार हैं। कूड़े की छंटाई करके प्लास्टिक, बोतल, आदि अलग करने से उनकी आय भी बढ जायेगी। इसके अलावा इन महिलाओं ने उनको सम्मानस्वरूप, कभी कम्बल तो कभी टोपी दस्ताने आदि भी दिये।
प्रियंका ने बताया कि उनकी सहयोगी महिलाओं के प्रयास से उन्होंने सेक्टर 15 के करीब 400 घरों को जोड़ लिया है। इन सभी घरों से निकलने वाले कूड़े को घर की महिलायें पहले से ही छांट कर अलग-अलग ऐसे डब्बों में डाल कर गेट पर रख देती हैं जहां से कूड़ा उठाने वाले लोग इसे आईओसी के प्लांट में पहुंचाते हैं। डिब्बे में कूड़ा रखने से बन्दर व कुत्ते नहीं छोड़ते व अपनी रिक्शा में लाद कर ले जाने वाले लोगों को भी काफी सुविधा हो रही है।
सेक्टर 15 की महिलाओं से प्रेरित होकर सेक्टर 9 सहित अन्य इलाकों की महिलाओं ने भी इनका अनुशरण करते हुये काम को आगे बढाया। नज़दीकी सेक्टरों से तो प्लांट तक कूड़ा पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन दूर के सेक्टरों से कूड़ा लाना कठिन था। इसके लिये निगम ने एक कूड़ा वाहन प्लांट को उपलब्ध कराने की मेहरबानी जरूर कर दी। यहां गौरतलब बात यह भी है कि नगर निगम ने घरों से कूड़ा उठाने का ठेका ईको ग्रीन को दिया हुआ है। इसलिये इस कम्पनी ने कूड़ा उठाने वाले लोगों को रोकने के लिये भरसक प्रयास भी किया था लेकिन लडक़ों के संघर्ष के सामने कम्पनी विफल हो गयी। सोचिये यदि ये लडक़े हटा दिये गये होते तो उक्त गैस प्लांट तो कभी चलने वाला नहीं था।
प्रशासनिक दबाव एवं महिलाओं द्वारा किये गये काम से कुछ लज्जान्वित होकर निगमकर्मी भी कुछ कूड़ा प्लांट को देने लगे लेकिन न तो वह कूड़ा किसी काम का होता है और ऊपर से 400 किलो के बदले उसे 800 किलो लिखवाने का दबाव बनाते हैं जबकि महिलाओं द्वारा भेजा गया करीब 1500 किलो कूड़ा एकदम बढिया गुणवत्ता का होता है।
इस कूड़े से बनने वाली गैस में से कार्बन डायक्साइड व अन्य प्रदूषणकारी गैसों को खारिज करके 80 प्रतिशत शुद्धता वाली मिथेन गैस को सिलेंडरों में भर कर सेक्टर सात स्थित इस्कॉन किचन को भेजा जाता है जहां 60000 स्कूली बच्चों का भोजन पकता है। जाहिर है इससे जहां स्कूली गरीब बच्चों को लाभ हो रहा है वहीं पर्यावरण का भी संरक्षण हो रहा है।