फरीदाबाद (म.मो.) मेवला महाराजपुर स्थित वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में तैनात हैं प्रिंसिपल अंजु छाबड़ा। एक लाख मासिक वेतन पाने वाली यह प्रिंसिपल बमुश्किल 2-3 घंटे के लिये ही स्कूल में प्रकट होती हैं और इस दौरान भी अपने मोबाइल फोन पर ही कोई गेम खेलने या चैटिंग आदि पर व्यस्त रहती हैं।
28 फरवरी को एनएच-5 नम्बर निवासी रमेश अपनी बहन कमलेश जो इसी स्कूल से बतौर शिक्षक सेवानिवृत हुई थीं कि एक बिमारी की फाइल पर प्रिंसिपल के हस्ताक्षर कराने पहुंचे थे। विदित है कि सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी को अपने मेडिकल बिल रीइम्बरर्स कराने के लिये अपने-अपने विभागीय अफसरों से दस्तखत कराने होते हैं। इसके लिये जब रमेश प्रिंसिपल छाबड़ा के दफ्तर पहुंचे तो वे अपने मोबाइल पर व्यस्त थी। 70 वर्षीय रमेश के आने से वह डिस्टर्ब हो गयी और फाइल पर दस्तखत की बात सुन कर उन्हें 10 मिनट दफ्तर से बाहर खड़े रहने को कहा। करीब 20 मिनट बाद बुजुर्ग रमेश ने पुन: प्रवेश किया तो बिना मोबाइल से ध्यान हटाये उसने कहा कि पहले प्राइमरी सेक्शन वाली हेड से दस्तखत करा कर लाओ।
उसी परिसर में स्थित प्राइमरी सेक्शन वाली हेड ने तुरन्त साइन करते हुए कहा कि प्रिंसिपल छाबड़ा तो साइन करने वाली है नहीं, चाहे जितना मर्जी ज़ोर लगा लेना। वही बात हुई जब रमेश दोबारा प्रिंसिपल के पास पहुंचे तो वह बोली कि फाइल रख जाओ, बाद में ले जाना। रमेश ने कहा कि वह 70 साल का है और बार-बार आना बस का नहीं। इस पर प्रिंसिपल ने कहा कि किसी लडक़े को भेज देना। जवाब में रमेश ने कहा कि लडक़ा एक महिने से चक्कर काट-काट कर थक गया है तो ही वे खुद चल कर आये हैं। थोड़ी-बहुत बहसबाज़ी के बाद प्रिंसिपल ने रो-पीट कर दस्तखत कर तो दिये परन्तु एक कागज़ पर खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) के दस्तखत के बाद अपने दस्तखत करने को कहा।
रमेश तुरन्त बीईओ के सेक्टर 28 स्थित कार्यालय पहुंचे तो वे स्कूलों के निरीक्षण पर निकली हुई थीं। फोन पर सम्पर्क करने पर उन्होंने रमेश को कुछ देर उनके दफ्तर में ही प्रतीक्षा करने को कहा। कुछ देर बाद वे आईं और झट से दस्तखत कर दिये। इसके बाद जब रमेश पुन: प्रिंसिपल छाबड़ा के दफ्तर पहुंचे तो वह घर जा चुकी थी जबकि स्कूल अभी चल रहा था। रमेश ने फोन कर यह बात बीईओ को बताई तो उन्होंने कहा कि वे वहीं प्रतीक्षा करें।
कुछ ही देर में प्रिंसिपल छाबड़ा ने रमेश को फोन कर मेवला मेट्रो स्टेशन के निकट बुलाया और अपनी कार में बैठे-बैठे ही दस्तखत कर दिये। जाहिर है बीईओ ने उसे हडक़ाया होगा जिस पर वह जहां कहीं भी थी, दस्तखत करने स्कूल न सही मेट्रो स्टेशन तक तो आई ही।
जानकार बताते हैं कि अंजु छाबड़ा शुरू से ही निकम्मी व कामचोर रही है। वो जहां पर भी तैनात रही पूरा स्टाफ, छात्र व अभिभावक उनसे परेशान रहें हैं। इससे पहले जब वह अगवानपुर के स्कूल में बतौर प्रिंसिपल तैनात थी, वहां के छात्रों व अभिभावकों ने उसके खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की थी व स्कूल के गेट पर ताला जड़ दिया था। हालात जब काफी गंभीर हो गये तो जि़ला शिक्षा अधिकारी ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को सम्भाला और अंजु छाबड़ा को स्कूल से हटाकर अपने दफ्तर के एक कोने में बैठा दिया। लेकिन इस बेशर्म महिला को कोई शर्म नहीं आई और मेवला महाराजपुर में तैनात होकर फिर उसी तरह की हरकतों पर उतारू है। लगता है यहां के छात्रों व अभिभावकों को भी अगवानपुर के रास्ते पर चलना पड़ेगा।
उक्त मामला तो मात्र एक उदाहरण है वरना हाल तो सारे शिक्षा विभाग का नीचे से लेकर ऊपर (धुर चंडीगढ) तक यही है। कहने की जरूरत नहीं यह सारा धंधा राजनेताओं के संरक्षण व आशीर्वाद से ही फल-फूल रहा है वरना किसी भी कर्मचारी की क्या मजाल जो लोगों के काम न करें।