शासन और प्रशासन के सहयोग से हुआ सीएए-एनआरसी के पक्ष में जमावड़ा… 

शासन और प्रशासन के सहयोग से हुआ सीएए-एनआरसी के पक्ष में जमावड़ा… 
January 27 14:41 2020

खुद नहीं पढ़ा सीएए-एनआरसीऔर निकले दूसरों को जगरूप करने…

ग्राउंड जीरो से विवेक कुमार की रिपोर्ट

 

जामिया-शाहीन बाग़ में सीएए के खिलाफ़ हफ़्तों से स्वतः चल रहे धरना-प्रदर्शन के बीच भाजपा द्वारा सीएए  कानून और एनआरसी के समर्थन में रैलियां आयोजित की जा रही हैं| जहाँ विरोध प्रदर्शनों में आने वाली अधिकतर भीड़ में आम जनता दिखाई पड़ रही है, वहीँ समर्थन में आने वाली भीड़ का चरित्र कैसा है ये जानने के लिए मजदूर मोर्चा ने फरीदाबाद में ‘राष्ट्र रक्षा मंच’ बैनर के नाम पर आयोजित रैली में शामिल लोगों का जायजा लिया|

वर्ष के अंतिम रविवार, फरीदाबाद के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सीएए समर्थन में भाजपा प्रायोजित रैली निकालने की घोषणा की| इसके लिए शहर के विभिन्न इलाकों से लगभग दर्जन भर सामाजिक संगठनों के नाम पर तकरीबन 400-500 लोगों की एक भीड़ दोपहर 12 बजे सेन्ट्रल पार्क, सेक्टर 12 में इकठ्ठा हुई|

पार्क के बाहर चौक पर बनाये मंच से वन्देमातरम और भारत माता की जय के नारे को जोर से बोलने की अपील की जा रही थी| तिरंगा झंडा एक हाथ में और  दूसरा हाथ जेब में डाले धीरे-धीरे जय बोल रहे लगभग 55 वर्षीय एक व्यक्ति ने पूछने पर कि झंडा कितने का मिला बताया, उसे तो झंडा दिया गया है न कि उसने खरीदा है| क्या वह जानता है कि रैली में क्यों आया है, जवाब में हमसे दूरी बनाना उसने ज्यादा उचित समझा|

‘पहले पढ़ें फिर प्रदर्शन करें, यह किसी भी व्यक्ति के अधिकारों को नहीं छीनता है,’ राष्ट्र रक्षा मंच के नाम से यह लिखी तख्ती लिए खड़े अधेड़ उम्र के व्यक्ति की फोटो खींचने के बाद जब हमने उनसे जानना चाहा कि कैसे नागरिकता संशोधन कानून किसी के अधिकारों का हनन नहीं करता है, तो बिना कुछ बोले जवाब देने का दारोमदार उन्होंने साथ खड़े 25 वर्षीय पंकज के माथे पर उंगली का इशारा कर ठेल दिया|

मानो मोदी के अमित शाह का रोल निभाते हुए पंकज ने बताया कि उन्हें कुछ नहीं पता इस कानून के प्रावधानों के बारे में| तो फिर कैसे पंकज और इतने सारे लोग पहले पढ़ो तब विरोध करो की तख्तियां लिए शहर में मार्च निकाल रहे हैं? झेंप कर ज़मीन की तरफ पंकज मानो ऐसे देखने लगे  कि सवालों से बच कर उसमे समां जाना चाहते हों| थोड़ी देर चुप रहने के बाद एक शर्मिंदा इंसान की तरह पंकज ने माना कि हाँ उन्हें पढ़ कर आना चाहिए था|

पंकज के बाद पास ही फोटोशूट करा रहे एक ग्रुप के सदस्यों से नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में रैली निकालने का कारण पूछा गया| 48 वर्षीय सुशील ने मोर्चा संभालते हुए स्वयं को एक सामाजिक कार्यकर्ता बताया और कि उनका धर्म है समाज में फ़ैल रहे दुष्प्रचार को न फैलने दें| तो फिर इस दुष्प्रचार को कैसे रोक रहे हैं, दो पहर निहारने के बाद चश्मे को आसमान की ओर करके साफ़ करते हुए सुशील बोले, देखिये ऐसा मेरा मानना है कि ये कानून किसी की नागरिकता नहीं छीन रहा| पर कैसे? जवाब में सुशील ने हाथ में लिए भगवा झंडे को हिलाते हुए हमसे मुंह फेर लिया|

हमें लोगों से बात करता देख तेज़ क़दमों से चल कर एक व्यक्ति जिसने बाद में अपना नाम अजय बताया हमारे पास आ खड़ा हुआ| अजय के अनुसार, रैली लोगों को जागरूप करने के लिये निकाली गई है न कि किसी के विरोध में| ऐसी रैलियों के माध्यम से आमजन को जागरूप करने का कार्य राष्ट्र रक्षा मंच के माध्यम से सभी देशप्रेमी सामाजिक संगठन कर रहे हैं| अपनी बात में आगे जोड़ते हुए अजय ने बताया कि सीएए-एनआरसी में तीन मुस्लिम धर्म आधारित देश के सताये अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जा रही है तो ये कैसे खतरनाक हो गया? मुसलमान को इस कानून से बाहर रखना क्या भेदभाव नहीं लगता? इस सवाल पर अजय लगभग सुर्ख होते हुए बोले, मुसलमान के देश में मुसलमान से भेदभाव हो सकता है क्या जो उन्हें भारत की नागरिकता दी जाए|

उनकी सोच शायद इससे आगे नहीं जा सकती क्योंकि अब राजनैतिक दल चाहता ही नहीं कि युवा तार्किक सोचे| वरना अजय को पता होता पाकिस्तान को देखने से पहले हिंदुस्तान को ही देख लूं जहाँ हिन्दुओं का ही शोषण जाति, दलित, आदिवासी, स्त्री, नक्सल इत्यादि के नाम पर हो रहा है तो क्या पाकिस्तान में भी मुस्लिमों पर इस्लाम के नाम पर अत्याचार नहीं होता होगा| क्या अहमदिया, कादियान, शिया और हज़ारा के साथ इसी तरह से पाकिस्तान-अफगानिस्तान में धर्म आधारित शोषण नहीं हो रहा? उनमें से कितनों को तो इस्लाम से ही बेदखल कर चैन से नमाज़ तक अदा करने की आज़ादी नहीं दी जा रही|

उच्चतम न्यायलय के आदेशों को धता बताते हुए वहां एक काली होंडा सिटी गाड़ी नजर आयी जिसके शीशे पूरी तरह से काले थे और जिस पर ॐ लिखा भगवा झंडा लहरा रहा था व गाड़ी की खिडकियों पर “वी सपोर्ट सीएए-एनआरसी” का पोस्टर चिपका पड़ा था| शीशे पर दस्तक देकर अन्दर बैठे दो लोगों से जब पूछा गया कि इस कानून का समर्थन वो क्यूँ कर रहे हैं और क्या इस कानून को उन्होंने पढ़ा है, तो अपना नाम तक बताने में आनाकानी करते दोनों युवकों ने कहा कि मुसलमानों को भारत में बाहर से क्यों बुलाया जाए, जब उन्होंने पाकिस्तान को चुना है तो वे पाकिस्तान जाएँ| बताने पर कि जिन्होंने पाकिस्तान चुना वे विभाजन के साथ पाकिस्तान चले गए और अब जो यहाँ हैं वे इसलिए यहाँ हैं क्योंकि उन्होंने हिंदुस्तान को ही चुना है, युवक बोले नहीं भाई आप पहले बिल पढ़ के आओ तब बात करना|

अचानक मंच से एक बुजुर्ग मोहन भाटिया जो पंजाबी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे की आवाज़ आई| उम्र की कंपकपी भरी आवाज़ से उन्होंने भारत माता की जय के नारे लगवाए और कहा कि किसी को सीएए कानून से डरने की ज़रूरत नहीं है, मैं अपने मुसलमान भाइयों से कहना चाहता हूँ कि ये मुल्क जितना हमारा है उतना ही आपका भी है| विभाजन के बाद हिंदुस्तान आने की अपनी व्यथा को भाटिया ने सबके सामने रखते हुए बताया कि जब विभाजन हुआ तब उनकी उम्र महज 6 वर्ष थी| इतनी छोटी उम्र में सब कुछ छोड़ कर मजबूरन आना पड़ा और इसी फरीदाबाद के एक गाँव की मुस्लिम औरतों-मर्दों ने उन्हें सहारा दिया| खेलते-खेलते जब वह किसी मुसलमान के घर चले जाते तो प्यार से खाने तक को भी देते थे| ऐसे मुस्लिम भाइयों को मैं बताना चाहता हूँ कि जैसे शरीर में दो बाजू होते हैं वैसे ही मुसलमान भी इस हिन्दुस्तान का एक अभिन्न बाजू है|

भाटिया के भाषण ने स्टेज पर भगवा और रत्न जड़ी मालाएं पहने तथाकथित सन्यासी और भीड़ में शामिल तमाम कट्टर संघी टाइप लोगों की भौंहों को तान दिया| जाहिर है मुसलमानों के प्रति नफरत लिए एकत्र हुआ ये हुजूम मुसलमानों के लिए ऐसा प्रेम देख कर असहज महसूस करने लगा था|

भीड़ में झंडा लिए एक युवक ने अपने दोस्त के कानों की ओर झुक कर बोला, सरदार जी को क्यों बुला लिया भाई| दोस्त ने बताया, सरदार जी पंजाबी समाज का नेतृत्व कर रहे हैं इसलिए| दोनों से ये पूछने पर कि सरदार जी गलत क्या बोल रहे हैं तो 34 वर्षीय प्रशांत ने कहा कि गलत नहीं बोल रहे पर मुसलमान अपने इस्लामी देश में रहे जाकर जब उसने वो चुना था|  हिन्दुओं के लिए तो एक ही देश है भारत, वे बेचारे कहाँ जाएंगे, मुसलमानों के लिए तो 50 देश हैं जहां चाहे चले जायें| क्या भारत धर्मशाला है जो जब जिसका दिल चाहे आ जाए और यहाँ आ कर बम फोड़ दे| यानी अब बजाय क़ानूनी बिल के वे भी संघी दिल से बात करने लगे|

“बिल नहीं पढ़ा तो हम क्या यहाँ ऐसे ही आ गये, आप पत्रकार लोग कुछ भी समझ लेते हो यार|” फिर ज़रा हमें भी समझाइये इस कानून को, हमने अमित जो अपने पूरे परिवार के साथ एक्ट के समर्थन में आये थे, से आग्रह किया| अमित ने बताया कि कानून अल्पसंख्यकों को जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में धार्मिक शोषण के शिकार हैं नागरिकता देगा| हमने अमित से जानना चाहा कि सरकार ने बिल में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द लिखा है या नहीं तो अमित लाजवाब थे| हिचकते हुए बोले “यार बिल तो नहीं पढ़ा पर अखबारों में ऐसे ही पढ़ा था, और भरोसा करो किसी ने भी बिल नहीं पढ़ा है न इधर वालों ने न उधर वालों ने|” अमित की बात सही है अखबार अगर अपनी जिम्मेवारी निभा रहे होते तो शायद बिल को समझाने के लिए ऐसी फर्जी रैलियाँ नहीं हो रही होतीं|

फरीदाबाद को जागरूप करने के दावे के साथ निकली इस भीड़ में शायद ही कोई था जिसने नागरिकता संशोधन कानून के मसौदे को पढ़ा होगा| व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर फैलाये आईटी सेल के नारों को तल्ख्तियों पर लिए ये भीड़ भारत को जानती तक नहीं| जो युवा यह मानते हों कि भारत बस हिन्दुओं का है और मुसलमान कहीं और जाएँ वो किसी को जगरूप कर सकेंगे ऐसा भ्रम भी अपने आप में बहुत खतरनाक है|

जय श्री राम, मोदी जी तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं और मोदी जी घबराना नहीं पीछे कदम हटाना नहीं, जैसे नारों के उद्घोषकों को एक बार ज्यादा दूर भी नहीं, जामिया के शाहीन बाग़ में इस कानून के खिलाफ धरने पर बैठी महिलाओं से मिलकर आना चाहिए| पूछना चाहिए उनसे कि तुम लोग क्यों संविधान बचाने का नारा दे रही हो जब मामला धार्मिक है तो? क्यों उन मुस्लिम महिलाओं ने किसी भी मुस्लिम या अन्य धर्म के नुमाइंदे को मंच की सीढ़ी तक नहीं चढ़ने दी जब मसला धार्मिक है तो?

मंच से फिर आवाज़ आई, हमारे बीच एडीसी साहब आ चुके हैं, प्रशासन को बहुत धन्यवाद प्रदर्शन के लिए इतनी अच्छी व्यवस्था करने के लिए| एक प्रदर्शन हमारा है जो बिना किसी हिंसा के सफल हुआ और एक वो है जो दिल्ली में हो रहा है कितनी हिंसा कर रहे हैं वे लोग| एडीसी साहब आ गए, ज्ञापन सौंप दिया गया| कमाल की बात थी कि रैपिड एक्शन फ़ोर्स और हरियाणा पुलिस के सिपाही लाठियों को बिना किसी की पीठ पर तोड़े, घर जाने वाले हैं| साथ ही सभी समाज के प्रतिनिधियों को धन्यवाद देने की शुरुआत राजपूत, ब्राह्मण समाज से होते हुए नाई, धोबी और कुर्मी समाज तक जा पहुंची| यानी इस कदर बंटे हुए हैं ये हिन्दू एकता की दुहाई देने वाले! मानों इस फाड़ पर पैबंद लगाता कहीं से “जय श्री राम” का नारा आया, कहीं से “मोदी जी घबराना नहीं पीछे कदम हटाना नहीं” का|

सब जा चुके हैं पर स्टेज बनाने वाला मजदूर अब स्टेज को हटाने का काम करेगा| बात करने पर नाम नहीं बताया बस इतना ही कहा हम क्या जाने ये सीएए| 30 साल पहले बस्ती जिला उत्तरप्रदेश का अपना घर छोड़ फरीदाबाद आ गया था| क्या आपको भी जागरूप किया किसी ने नागरिकता संशोधन कानून पर मजदूर ने जवाब दिया, नहीं| पर हाँ भारत मुसलमानों का भी उतना ही है जितना मेरा| ऐसे सबको मारते चले तो हम जैसे मजदूरों का क्या होगा जो हर साल ठिकाना बदल लेते हैं|

पूरी भीड़ में उस मजदूर से अधिक समझदार और संविधानपरक बात एक भी मंचासीन के मुख से नहीं निकली| दर्जनों  समूहों के बुलावे और किराये से जमा कुल 500 लोग अगर टेंट वाले मजदूर से ही सीएए और अनआरसी समझ लेते तो शायद “राष्ट्र बचाओ मंच” की कुछ प्रासंगिकता समाज को जोड़ने में भी बन जाती|

 

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Mazdoor Morcha
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