विकास दुबे के एनकाउंटर से पहले लिखा सटीक लेख…

विकास दुबे के एनकाउंटर से पहले लिखा सटीक लेख…
July 11 07:55 2020

विकास दुबे को आतंकी बनाया राजनीति संरक्षित आपराधिक न्याय व्यवस्था ने

 

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

बीते 70 वर्षों में राजनीति खेलने वाले खिलाड़ियों ने जिस तरह से पूरे देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था को अपने हाथ का एक खिलौना बना कर रख दिया है, उसी के परिणामस्वरूप कानपुर देहात में एक डीएसपी, तीन सब इन्स्पेक्टरों सहित 10 पुलिस वालों को अपनी जान गंवानी पड़ी। थाना चौबेपुर के गांव बिकरू का विकास दुबे न तो एका-एक इतना बड़ा दुर्दान्त आतंकी बन गया और न ही वह ऐसा इकलौता आतंकी है। देश भर के लगभग हर क्षेत्र में आये दिन गुंडे बदमाश पैदा हो रहे हैं। अच्छा खाद-पानी व संरक्षण पाकर अनेकों बदमाश दुबे का रूप धारण कर दुर्दान्त आतंकवादी बन जाते हैं।

चौबेपुर का पूरा थाना ही ‘दुबे’ वायरस से संक्रमित था। इस लिये अब वहां के तमाम 68 पुलिसकर्मियों को क्वारंटाइन कर दिया गया है और दो थानेदारों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। इन सबको पता था कि दुबे को पकडऩे जाने वाली पुलिस पार्टी के साथ क्या होने वाला है। इसलिये अधिकांश तो वहां जाने से ही टाल-मटोल कर गये, जिनको जाना ही पड़ गया वे पूरी तरह सचेत थे और जान बचाने के लिये सही पोजीशन लेकर गोलियों की बौछार से बच गये। थाना प्रभारी तो मौके से भाग ही गया।

पूरा थाना कोई यूं ही संक्रमित नहीं हो गया था। थाने के सभी पुलिसकर्मी उसे यूं ही सलाम नहीं ठोंकते थे, उन्हें दुबे में  कुछ नहीं, बल्कि बहुत कुछ दिखता था। वह अपने रसूख से, अपनी राजनीतिक पहुंच के बलबूते उनके तबादले कराता व रूकवाता था, हर तरह के वित्तीय सहयोग एवं योगदान के अलावा उसके साथ जातीय तथा अन्य कई तरीकों से सामाजिक सम्बंध बना कर रखता था। इसके चलते इलाके में रहने वाली जनता में उसका रूतबा काफी बल्कि इतना ऊंचा हो गया था कि हर प्रकार के चुनाव लडऩे वाले नेता उसे एक अच्छा-खासा वोट बैंक मानते थे। जाहिर है इसी वोट बैंक की चाहत में सभी रंग-बिरंगे नेता उसके चक्कर लगाते थे। इससे दुबे का कद बढ़ता था ओर अफसरशाही में पैठ।

योगी सरकार लखनऊ के चौराहे पर 52 सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपराधी बता कर, उनके चित्र तो लगा सकती है, राजनीतिक विरोधियों को झूठे मुकदमों में लपेट कर अनिश्चित काल तक जेलों में बंद रख सकती है लेकिन 60 मुकदमों के अपराधी एवं हत्यारे को जेल में नहीं रख सकती। उसके लिये तुरंत जमानत संभव हो जाती है। विदित है कि जमानत का खेल पुलिस और अदालतें मिल कर खेलती हैं। किस को बरी करना है और किस को कैद यह कार्य भी पुलिस व अदालतें मिल कर ही करते हैं। पुलिस तो सीधे-सीधे राजनेताओं के पंजे तले रहती ही है, अब न्यायपालिका भी सरकार की खुली गुलामी करने से शर्माती नहीं। जाहिर है इन हालात में दुबे जैसा रसूखवान भला क्यों तो जेल में रहने लगा और क्यों एन्काऊंटर का शिकार होने लगा अब भी कोई बड़ी बात नहीं कि वह किसी न किसी कोर्ट में आत्म समर्पण करके अपनी जान बचा ले और फ़िर अन्तहीन न्यायिक ड्रामेबाज़ी का ड्रामा खेलता रहे। वास्तव में वह कोर्ट या मुकदमे से नहीं डरता, वह डरता केवल पुलिस की गोली से है, जो निश्चित ही गिरफ्तारी व मुकदमा चलाने की बजाय ‘एन्काऊंटर’ करके काम को निपटा देना चाहेगी। लेकिन एक बार यदि वह किसी तरह किसी कोर्ट में पेश हो पाया तो फ़िर पुलिस के मनसूबों पर पानी फिर जायेगा और जो किरकिरी एवं फजीहत होगी वह अलग से।

 

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