युवकों ने उसे बालों से पकड़ा, झुकाया और लातों घूसों से मारते हुए गला दबाने लगे। इसी बीच अर्जुन ने एक लोहे की कढ़ाई अनीता के सिर पर दे मारी। कढ़ाई के वार ने अनीता का सिर खोल दिया और खून का फव्वारा फूट पड़ा।

युवकों ने उसे बालों से पकड़ा, झुकाया और लातों घूसों से मारते हुए गला दबाने लगे। इसी बीच अर्जुन ने एक लोहे की कढ़ाई अनीता के सिर पर दे मारी। कढ़ाई के वार ने अनीता का सिर खोल दिया और खून का फव्वारा फूट पड़ा।
May 11 07:28 2020

अनीता को चरित्रहीन कहा गया, काम से निकाला, गुंडों ने पीटा और पुलिस ने दुतकारा 

 लॉकडाउन में गरीब को चोरी से करना पड़ रहा है रोजगार

विवेक कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट 

सेक्टर आठ फरीदाबाद के एक रसूखदार आदमी के घर में काम करने वाली 35 वर्षीय अनीता ने सोचा होगा कि मालिक के घर चलूँ, शायद कुछ खाने को मिल जाए और आने-जाने का क्रम बना रहेगा तो काम की सुरक्षा भी बनी रहेगी। उसी क्रम में सेक्टर 9 गेट पर तैनात चौकीदार ने संगीता को रोका और कहा मालिक से बात करवा, तो जाने दूंगा। मालिक का नंबर देने पर चौकीदार ने बात कर जाने तो दिया पर बाद में मालिक के कान भरते हुए कहा कि ये पांच बहने हैं और सभी चरित्रहीन हैं इसलिए आप ऐसी धंधा करने वालियों से काम मत करवाइए।

इस सूचना का फायदा उठा कर 500 गज के बड़े बंगले में रहने वाले मालिक ने संगीता के काम के 1500 रुपये मार लिए। जब मजदूर मोर्चा ने उस रसूखदार आदमी से इस बाबत जानकारी लेने का प्रयास किया तो उसने कहा कि मैं इनको कई सालों से जानता हूँ, इनका बाप नहीं है और ये दिन भर ऐसे ही सडक़ों पर फिरती  रहती हैं जबसे लॉकडाउन हुआ है। मजदूर मोर्चा के थोड़ा दबाव से संगीता के पैसे तो मिल गए पर उसका काम चला गया।

आजकल आम मध्यवर्गीय जन शाम को खाना खाते वक्त रामायण का लुत्फ भी ले रहे हैं। उम्मीद है सीता के चरित्र की अग्निपरीक्षा का प्रसंग देखने के बाद, मेहनतकश और गरीबी की परीक्षा में उत्तीर्ण संगीता जैसों से चरित्र की अग्निपरीक्षा नहीं मांगी जाएगी। बेशक चौकीदार और रसूखदार तथाकथित मर्द उसका चरित्र हनन रामायण के पात्रों की तर्ज पर करते रहें।

मजदूर मोर्चा की इस ग्राउंड रिपोर्ट श्रंखला, कोरोना की भारत यात्रा, में घटने वाली आज की दो घटनाओं से पूरे तंत्र को समझने का ज्ञान हम पाठकों को देने की कोशिश यहाँ करेंगे। जिस अनीता का जिक्र ऊपर किया गया है उसके साथ हाल ही में एक और घटी घटना पाठक जानते चलें तो समाज का चरित्र समझने में आसानी होगी।

एक मई, ठीक मजदूर दिवस के दिन मजदूर अनीता जिस झुग्गी में रहती है, वहीँ रहने वाले कुछ लोगों से पाखाने में पानी डालने के नाम पर उसकी कहा-सुनी हो गई और परिणाम यह निकला कि अर्जुन नामक एक युवक ने अनीता की छाती पर लातों से वार करना शुरू कर दिया। इसके बाद चार अन्य युवकों ने उसे बालों से पकड़ा, झुकाया और लातों घूसों से मारते हुए गला दबाने लगे। इसी बीच अर्जुन ने एक लोहे की कढ़ाई अनीता के सिर पर दे मारी। कढ़ाई के वार ने अनीता का सिर खोल दिया और खून का फव्वारा फूट पड़ा। जैसे तैसे लोगों के बचाने से अनीता की जान बची।

अनीता की बड़ी बहन गीता ने पुलिस को फोन किया तो बीपीटीपी थाने (सेक्टर -76) फरीदाबाद  से तीन पुलिस वाले गाड़ी में मौका-ए-वारदात पर आये। क्योंकि पांचो लडक़े अनीता के झुग्गी मालिक रॉकी और उसके बड़े भाई विनेश से सम्बंधित थे और मौके पर आया एक सिपाही मुकेश मकान मालिक के यहाँ आना-जाना रखता है तो मकान मालिक के प्रभाव में हवलदार मुकेश ने लडक़ों पर कोई कार्यवाही करनी ठीक नहीं समझी।

अनीता ने बताया कि मुकेश ने अनीता को धमकाते हुए कहा कि जा पहले अपना इलाज करा, बाद में इन्साफ लिओ। उसे पुलिस की गाड़ी में ले जाकर किसी प्राइवेट अस्पताल में सिर पर पट्टी बंधवा दी गयी। जबकि नियम अनुसार अनीता का मेडिकल बीके अस्पताल में होना चाहिए था और उसके आधार पर पांचो आरोपियों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए था। मुकेश ने अनीता की इस मांग को यह कहते हुए दबा दिया कि तू कोई मेरी लुगाई है, या मौसी की बेटी है जो तेरे लिए मैं अलग-अलग अस्पताल जाऊंगा। इसके बाद अनीता के अपाहिज पति के हाथ में आरोपियों से दो हजार रुपये लेकर धमकाते हुए कहा, रख ले।

सामंती पुलिस के सामने भारत में अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग घबरा जाते हैं तो अनीता जैसी मजदूर की क्या बिसात। एक पन्ने पर दबाव भरा राजीनामा लिखवा कर सिपाही मुकेश ने यह साबित कर दिया कि इस देश में अदालतों के दिन अब लद गए। और एक सिपाही जहां चाहे जैसे चाहे एक पार्टी से पैसे लेकर बिका हुआ न्याय सप्लाई कर देगा।

अपने साथ हुए इस अन्याय के लिए दो दिन बाद अनीता ने थाना सेक्टर 76 (बीपीटीपी) एसएचओ के पास गुहार लगाई। जिसपर थाना प्रभारी ने उन्हें न्याय दिलाने के आश्वासन के साथ दो बार सोच लेने की सलाह, यह कहते हुए दी कि उसके यहाँ जो परचा कट जाए वो वापस नहीं होता। ये सलाह हिम्मत बंधाने के लिए थी या अदालती चक्कर की असलियत समझाने के लिए, कह नहीं सकते। खैर दो बार सोचने के बाद भी अनीता ने यही कहा कि उसे न्याय ही चाहिए। न्याय दिला पाना वो भी पुलिस के लिए कोई आसान काम तो है नहीं इसलिए शेखी बघारने वाले एसएचओ ने दोबारा अनीता से न तो मुलाकात की न ही उसकी शिकायत का कोई संज्ञान लिया।

इस बीच जिन गुंडों ने अनीता को मारा था अब उन्होंने उसका वहां रहना दूभर कर दिया है। जबकि मुकेश नमक भ्रष्ट पुलिस हवलदार, मकान मालिक विनेश के यहाँ दारू पार्टी करने पहुँचा रहता है।

अनीता को कुछ देर छोड़ कर दूसरा मामला हंसा का सुनिए। सीतापुर उत्तरप्रदेश के रहने वाले 45 वर्षीय हंसा एक रेहड़ी, जिसपर गाय को चारा दे कर पुण्य कमाने के कई पोस्टर लगे हैं, को लेकर फरीदाबाद के सेक्टर-सेक्टर घूमते हैं। घर में रात की बची रोटियां गाय के नाम पर निकाल कर निवासी अपने पाप कम करने का असफल प्रयास भी करते हैं।

हंसा के हाथ में न तो कोई सुरक्षा ग्लव्स थे न ही मुंह पर मास्क। उत्तर प्रदेश का गमछा ही प्रधानमंत्री मोदी की तरह हंसा रिक्शे वाले की जान, कमबख्त कोरोना से बचाये हुए है। सेक्टर 9 आरडब्लूए के पदाधिकारियों से जब इस रिक्शे के प्रवेश के बाबत सवाल पूछा गया तो उन्हें इसका कोई इल्म ही नहीं था। इसी प्रकार गार्ड ने कहा किसी और की ड्यूटी होने के कारण वह फिलहाल नहीं बता सकता कि कैसे ये रिक्शा सेक्टर में घुस सका।

जिस सेक्टर में घुस पाने की अनुमति मेहनत करके कमाने और परिवार पालने का काम अनीता जैसी लडक़ी को अपने चरित्र पर धब्बा लगवा और गुंडों से मार खाने के बाद मिलती है वहाँ हंसा का रिक्शा बिना रोकटोक के घुसता है। कारण है कि हंसा जिस गौशाला के नाम पर रोटी इकट्ठी करता है वो एक संघी सचिन शर्मा नामक फर्जी गौपालक चलाता  है। हंसा को रिक्शा चिलचिलाती धुप में घुमा-घुमा कर रोटी इकठ्ठा करने के काम के बदले में महीने के 9 हजार रुपये मिलते हैं। और फर्जी गौपालक सचिन इस नाम पर जहाँ-तहां से बड़ी रकम उगाह लेता है।

अब यहां से छोटे-छोटे स्तर पर बनी इस शासन व्यवस्था की जमीनी हकीकत देखें तो जान जाएँगे कि जो अनीता मेहनत करके कमाती है उसपर लॉकडाउन तो पुलिस की लाठियों से लागू करवाया जाता है। साथ ही सेक्टर का चौकीदार और पांच सौ गज की कोठी का मालिक दोनों एक समान अक्ल का परिचय देते हुए अनीता को देह बेचनी वाली लडक़ी का तमगा दे देते हैं। साथ ही इसके बदले में अनीता जैसी गरीब मेहनतकश के हक के पैसे दबा लेना अपना हक मानते हैं। वहीं दूसरी तरफ सचिन शर्मा जैसे धूर्त और सिर्फ सियासी गठजोड़ से गाय के नाम पर पैसे लूटने वाले को न पुलिस कहीं लाठी के दम पर रोकने की जुर्रत करती है और न ही सेक्टर का गार्ड या आरडब्लूए के पदाधिकारी ही रोकने या सवाल करने की जहमत उठाते हैं। पर अनीता जो शुद्ध मेहनत के दम पर जिन्दगी जीती है उसे न समाज इज्जत देता है और न ही सरकारी मशीनरी। उल्टा कुछ गुंडे उसका सिर फोड़ देते हैं जिससे कि उसका बचा-खुचा रोजगार भी जाता रहा। पुलिस बजाय इलाज कराने और न्याय दिलाने के, मुफ्तखोरों और गुंडों के पक्ष में ही खड़ी मिली, जो कि आम बात है।

अब अनीता जैसे की ओर से सोच कर देखिये कि इस लॉक डाउन में आपके पास खाने को कुछ भी नहीं है। पुलिस से बचने के लिए जैसे- तैसे दीवारें कूद कर, या कटीली तारों के नीचे से अपनी पीठ लहुलुहान कराने के बाद आप किसी के घर में जाकर सफाई का काम कर रहे हैं। ये सब मात्र इसलिए कि मालिक दयावश कुछ तो देगा ही वरना कम से कम काम तो बना रहेगा। अचानक आपका सिर फूट जाता है और न्याय की जगह मिलने लगती हैं गालियां, काम छूटा सो अलग।

इसी तर्ज पर हजारों लाखों मजदूरों को सरकारें न खाना दे रही हैं, न पैसा और न ही उन्हें उनके घर जाने की इजाजत। जरा से कमरे में कुछ फीट के दूरी पर बने कमरों में भेड़ों की तरह ठुसे इन मजदूरों को पीटना भी है और उस पर वे न इलाज न न्याय की गुहार ही लगा सकते हैं। ऐसे में अब किस बात का मूल अधिकार और संविधान बचा है। क्या देश में कोई मानवाधिकार आयोग जीवित है?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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