मजदूर मोर्चा ने मौके पर जाकर की पड़ताल
मजदूर मोर्चा टीम
सोनीपत: बुटाना में दो पुलिस वालों की हत्या, एक कथित बदमाश का अगले दिन कथित एनकाउंटर और बुटाना पुलिस चौकी के 10 पुलिसकर्मियों पर दलित लडक़ी से गैंगरेप के आरोप में नए तथ्य सामने आये हैं। ये तीनों घटनाएं आपस में जुड़ी हुई हैं। तथ्यों को दबाने और लीपापोती की सारी पुलिसिया कोशिशें नाकाम हो गई हैं। इस घटना में कथित एनकाउंटर में मारे गए कथित बदमाश अमित के पिता ने कहा है कि पुलिस जो बता रही है वो सही नहीं है। बुटाना काण्ड चौकी में जिस लडक़ी के साथ दस पुलिसकर्मियों ने गैंगरेप किया। उस लडक़ी की मां ने कहा है कि वो अपनी जिन्दगी की अंतिम सांस तक अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ेगी। घटना वाले दिन यह लडक़ी अमित के साथ थी। यह तथ्य दहलाने वाला है कि एक तरफ दलित लडक़ी से पुलिस चौकी में गैंगरेप हुआ और दूसरी तरफ वह अपनी बहन के साथ दो पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोप में बंद है।
मजदूर मोर्चा की टीम ने सोनीपत और बुटाना जाकर तमाम तथ्यों की पड़ताल की। पाठकों को याद होगा कि मजदूर मोर्चा के पिछले अंक में इस घटना को विस्तार से छापा गया था लेकिन चूंकि यह घटना हाथरस कांड से भी ज्यादा गंभीर है, इसलिए नए तथ्यों के साथ इस मामले को हरियाणा सरकार, पुलिस, राजनीतिक दलों और जनता के संज्ञान में फिर से पेश किया जा रहा है।
मजदूर मोर्चा टीम मंगलवार (13 अक्टूबर) को सोनीपत में थी। उसने इस मामले को उठाने वाले नौजवान भारत सभा और छात्र एकता मंच के एक्टिविस्टों से मुलाकात की। टीम की मुलाकात उन महिलाओं से भी हुई जो जेल में उस लडक़ी के साथ थे जिसके साथ पुलिस ने गैंगरेप किया। जेल में उस लडक़ी के साथ उसकी बहन भी बंद है। दोनों लड़कियों पर पुलिस ने दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल और मदद करने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर रखा है।
करनाल जेल से रिहा होकर आई तीन महिलाओं ने बताया कि जेल में दोनों लड़कियों की हालत बहुत गंभीर है। उनको शारीरिक रूप से इतना प्रताड़ित किया गया है कि कई दिनों तक गैंगरेप की शिकार छोटी बहन तो ठीक से चल भी नहीं सकी है। यह आरोप भी सामने आया कि लड़कियों को नींद की गोलियां भी दी जा रही हैं ताकि वे अवसाद में आकर आत्महत्या कर लें। दोनों पुलिसवालों की हत्या की वो चश्मदीद भी हैं।
कहानी नहीं, सत्यकथा
29 जून को नाबालिग लडक़ी, चचेरी बहन के साथ अपने मित्र अमित से करीब रात 11 बजे गाँव के बाहर मिलने गई थी। अमित अपने तीन अन्य दोस्तों के साथ गाड़ी से आया हुआ था। आरोप है कि गश्ती पुलिस के दो सिपाहियों ने दोनों को इतनी रात गए पकड़ा और मौके का फायदा उठाते हुए अमित से लडक़ी को उनके हवाले करने की मांग की। लडक़ी पर जोर जबरजस्ती करने पर आमादा पुलिस वालो पर अमित ने चाकू से वार कर दिया। जिसमें दोनों की मृत्यु हो गई। पुलिस के मुताबिक उनमें से एक पुलिस वाले ने गाड़ी का नंबर हाथ पर नोट कर लिया था, जिसके जरिए सभी आरोपियों को पकड़ा गया। जिसमें से अमित को सोनीपत सीआईए -2 ने मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया।
बुटाना पुलिस ने मजदूर मोर्चा के ये बताया
पुलिस चौकी बुटाना के इंचार्ज संजय सिंह ने मजदूर मोर्चा से बातचीत में बताया कि मारे गए दोनों सिपाही निहायत ही ईमानदार और ड्यूटी में शानदार प्रदर्शन वाले थे। उन्होंने बताया कि अमित और आरोपी लडक़ी को जब दोनों सिपाहियों ने कार में आपत्तिजनक स्थिति में पाया तो उनसे चौकी चलने को कहा। अमित द्वारा दिए गए पैसे के ऑफर को भी सिपाहियों ने ठुकरा दिया और चौकी जाने की बात पर डटे रहे। ज्यों ही सिपाही रविन्द्र ने गाड़ी बंद कर चाबी निकालने का प्रयास किया तो अमित ने बदनामी के डर से उनके सीने में चाकू से वार कर दिया, फिर तुरंत ही अमित और उसके दोस्तों ने दूसरे सिपाही कप्तान को भी दौड़ा कर पकड़ लिया और उसके सिर में चाकू से वार कर हत्या कर दी। पुलिस का यह भी दावा है कि इस हत्या में लड़कियों ने दोनों सिपाहियों के हाथ-पैर पकड़े थे।
लडक़ी की माँ के मुताबिक पुलिस वालों की हत्या बदनामी के डर से हुई और अमित के अलावा तीनों लडक़ों तथा लड़कियों ने हाथ पैर पकड़ कर हत्या में मदद की, यह सब झूठ है। उनके अनुसार पीड़िता ने बताया कि एसपीओ कप्तान ने पीडि़त लडक़ी को गाड़ी से खींचकर सडक़ पर गिरा लिया और उससे रेप का प्रयास किया। लडक़ी को बचाने के लिए अमित ने कप्तान को पीछे से चाकू मार दिया और उसी क्रम में रविन्द्र के सीने में भी चाकू से वार किया। इस पूरे घटना क्रम में बाकी के चारों लोग हरियाली नामक पार्क में ही छिपे हुए थे।
चौकी इंचार्ज संजय सिंह का दावा कि उनके दोनों सिपाही काम के प्रति प्रोफेशनल थे, सरासर गलत साबित होता है। रात के 11 बजे दोनों सिपाहियों ने यदि लडक़ा –लडक़ी को अन्तरंग स्थिति में पाया भी तो किस कानून के तहत वह लडक़ी को चौकी पर ले जाने को आतुर थे? बिना महिला पुलिस वाली बुटाना चौकी पर आधी रात को लडक़ी को क्यों ले जाना चाहते थे? सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार भी किसी महिला को शाम 6 बजे के बाद पूछताछ के लिये रोका नहीं जा सकता तो फिर कप्तान और रविन्द्र नाबालिग़ लडक़ी को चौकी ले जाकर कौन सा प्रोफेशनलिज्म दिखा रहे थे? जब गाड़ी का नंबर और लडक़ी का अतापता भी सामने था तो ऐसी क्या जल्दी थी कि आधी रात को ही मामले का निबटारा दोनों सिपाही अपने स्तर पर वहीं कर देना चाहते थे? बात इतनी क्यों बढऩे दी गई कि मामला हाथापाई और हत्या तक चला गया? यदि खतरा था तो एकदम नजदीक स्थित चौकी से अतिरिक्त बल को क्यों नहीं बुलाया गया, जबकि मोबाइल फोन उनके पास मौजूद थे। यह जाहिर करता है कि दोनों सिपाहियों की नीयत में खोट था अन्यथा या तो वे महिला पुलिस को बुलाते या चौकी में जरूर खबर देते। क्योंकि यदि उन्होंने सूचना दी होती तो उनकी लाश लावारिस हालत में सुबह चार बजे तक नहीं पड़ी रहती जैसा कि एएसआई संजय सिंह ने बताया।
चौकी इंचार्ज संजय सिंह ने यह भी बताया कि अमित की तलाश में गाड़ी का नम्बर तलाशती पुलिस जब गाड़ी के मालिक संदीप के घर पहुंची तो उसके कुछ देर बाद ही वहां अमित भी आया। संजय के अनुसार अमित, संदीप का कत्ल करने के इरादे से वहां मोटरसाइकिल पर अपने दोस्त के साथ आया था। संदीप की किस्मत अच्छी थी कि पुलिस अमित से पहले संदीप के घर पर आ गई थी और ज्यों ही अमित ने पुलिस को देखा उसने चाकू से फिर वार कर दिया जिसकी जवाबी पुलिस फायरिंग में वह मारा गया।
पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए चौकी इंचार्ज संजय सिंह से पूछा गया कि 30 जून को ही जब अमित मारा गया तो मात्र चंद घंटों में उसे यह क्यों लगा कि अपने ही दोस्त संदीप को अब मार देना चाहिए क्योंकि पुलिस के पास गाड़ी का नम्बर है, जबकि गाड़ी का नम्बर मिलने की सूचना तो अमित के पास थी ही नहीं? अमित, संदीप के घर संदीप को मारने ही आया है ये बात कैसे मालूम चली जबकि पुलिस के मुताबिक घर पर आते ही उसका सामना पुलिस से हुआ और उसके चाकू से वार के जवाब में पुलिस ने उसे गोली मार दी। तीसरा सवाल, अगर अमित एक पेशेवर अपराधी है तो वह पिस्तौल की जगह बार-बार चाकू ही क्यों लेकर आता है?
इन सभी सवालों के जवाब पुलिस के पास नहीं थे। क्योंकि एनकाउंटर सोनीपत सीआईए ने किया इसलिए सीआईए इंचार्ज से बात करने पर उन्होंने सीआईए-2 के पास जानकारी होने की बात कही। सीआईए-2 के इंचार्ज अनिल ने फोन का जवाब नहीं दिया इसलिए उनका पक्ष नहीं पता चल सका।
पुलिस की कहानी को पलटा अमित के पिता ने
न्याय को तरसते पिता
अमित के एनकाउंटर से अलग कहानी उसके पिता राजकुमार ने बताई। राजकुमार जींद शहर में ई-रिक्शा चलाते हैं। उन्होंने मजदूर मोर्चा को बताया कि अमित 30 जून की शाम 4 बजे के आसपास अपनी माँ के पास आया था और तुरंत कहीं चला गया। कुछ देर बाद राजकुमार को किसी ने बताया कि उसके बेटे को गोली लगी है और वो आ जाए।
राजकुमार के अनुसार जींद में कुछ सादी वर्दी के पुलिस वालों ने अचानक उन्हें घर से उठा लिया था और खुद को पानीपत सीआईए की टीम बता उनको पीटा। मारपीट करने के बाद राजकुमार की जेब में रखे 14500 रुपये भी पुलिस ने छीन लिए और एसपी जींद की कोठी के सामने फेंक गए। पैसे छीने जाने का बयान राजकुमार ने एसडीएम् को भी दिया पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
राजकुमार के जानकारों ने उन्हें बताया कि अमित को पुलिस ने संदीप के घर पहुँच कर उससे फोन करवाया और घर बुलवाया। जींद के विकास नगर में अमित संदीप के घर आया। अचानक पुलिस को देख कर वह भागने लगा, तो पीछे से पुलिस ने उसके पैर में गोली मारी। गोली लगने के बाद पुलिस अमित को गाड़ी में उठा कर कहीं ले गई। इसके बाद उन्हें सूचना मिली कि अमित ने पुलिस पर हमला किया और एनकाउंटर में मारा गया। जबकि पुलिस ने अमित के एनकाउंटर को इस तरह बयान किया है, जैसे उन्होंने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो।
राजकुमार ने यह भी बताया कि दो बेटों में छोटा बेटा अमित एक साल पहले ही होली पर हवाई फायर करने के जुर्म में एक साल की जेल काट कर आया था। इसके अलावा एक मारपीट का मुकदमा भी उस पर था जिसमें वह बरी हो गया था। उनके अनुसार मेडिकल रिपोर्ट में अमित को आठ गोलियां मारी गईं बताया है जबकि उसके शरीर में 11 गोलियों के छेद हैं जो शरीर के आरपार हो गईं थीं। अमित के खिलाफ दर्ज मुकदमे से वह उस दर्जे का अपराधी साबित नहीं हो रहा है, जिस दर्जे का पुलिस उसे बता रही है।
पुलिस पर एफआईआर और उसका पैंतरा
बुटाना चौकी इंचार्ज संजय सिंह, बलवान सिंह एवं एक अन्य पुलिसकर्मी से जब यह पूछा गया कि पीड़िता ने 10 पुलिसकर्मियों पर रेप का आरोप भी लगाया है तो उन्होंने कहा कि क्योंकि अब वह फंस गई है इसलिए पुलिस पर झूठा आरोप लगा रही है। लेकिन सवाल ये है कि अगर आरोप झूठे हैं तो फिर पुलिस ने अपने ही तीन कर्मियों पर एफआईआर क्यों दर्ज की है? उन्होंने बताया कि ये तो बस जनता सडक़ पर आकर हंगामा न करने लगे इसलिए दिखावटी एफआईआर दर्ज हुई थी। महिला थाना सोनीपत में दर्ज इस एफआईआर को हमारे ऊपर के अफसर खुद ही निरस्त भी कर देंगे और शायद एफआईआर कैंसिल भी हो चुकी है।
महिला थाने की असलियत
गैंगरेप की शिकार लडक़ी की मां के एक महीने तक धक्के खाने के बाद, राज्य महिला आयोग के निर्देश पर सोनीपत महिला थाने में तीन पुलिस वालों के खिलाफ गैंगरेप की नामजद एफआईआर नम्बर 0065/20, 30 जुलाई 2020 को दर्ज की गई। एफआईआर की स्थिति जानने के लिए जब मजदूर मोर्चा टीम महिला थाना सोनीपत पहुंची तो थाना इंचार्ज प्रोमिला नहीं मिली और न ही उनके अलावा किसी अन्य को इतनी बड़ी घटना के बारे में ही कुछ पता था।
थाना इंचार्ज से बात करने के लिए लगातार दो दिनों तक उनके दिए सरकारी नम्बर पर फोन और एसएमएस किया गया जिसका उन्होंने जवाब नहीं दिया। इसके अलावा उनसे ई-मेल से भी संपर्क साधा गया, परन्तु इंस्पेक्टर प्रोमिला ने उसका भी जवाब नहीं दिया। जब महिला थाना की एसएचओ के लैंडलाइन पर फोन किया गया तो फोन उठाने वाली महिला सिपाही ने बताया कि मैडम थाने में ही हैं पर वो तार वाले फोन को उनके पास तक नहीं ले जा सकती। जब मजदूर मोर्चा टीम कई दिनों के प्रयासों के बावजूद भी महिला थाने से एक केस की जानकारी प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाई तो दूर-दराज के गांव की एक अनपढ़ गरीब महिला इन थानों से कितनी मदद पाती होगी, समझ पाना मुश्किल नहीं।
डीजीपी भी सवालों के घेरे में
इस मामले की सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो देखा जा सकता है कि पुलिस की पूरी कहानी में जबजस्त तरीके से झूठ की मिलावट है। खुद प्रदेश के डीजीपी मनोज यादव ने मामले में बिना जांच किये मृतकों को कोरोना वॉरियर घोषित करते हुए उन्हें शहीद भी घोषित कर दिया। जूनियर अधिकारियों के बयानों में ये झलक रहा था कि इस केस में उन्हें ऊपर के अफसरों की ओर से खुली छूट मिली हुई है। पहली नजर में अपने सिपाही की हत्या पर कोई भी जिम्मेवार अधिकारी ऐसा ही बर्ताव करता जैसा कि डीजीपी मनोज यादव ने किया, लेकिन मामले को 100 दिन बीत जाने के बाद भी अपने सिपाहियों की मौत के पीछे असली कारणों को न समझ पाना उनकी पेशेवर समझ और नैतिकता दोनों पर सवाल खड़े करता है।
आयोग की सदस्य रेणु भाटिया बेखबर
बुटाना पुलिस चौकी में गैंगरेप की एफआईआर हालांकि महिला आयोग के निर्देश पर दर्ज हुई है लेकिन फरीदाबाद में रह रही भाजपा नेता और महिला आयोग की सदस्य रेणु भाटिया सारे मामले से अनजान हैं। मजदूर मोर्चा ने गुरुवार को उनसे इस संबंध में बात की। उनका कहना है कि यह घटना उनकी जानकारी में नहीं है। वह इस बारे में पता करके बाद में कुछ बता सकेंगी।
सोनीपत के युवा गुस्से में
इस मामले को लेकर सिर्फ नौजवान भारत सभा और छात्र एकता मंच ने सोनीपत शहर में प्रदर्शन किए। सोनीपत की एक्टिविस्ट प्रवेश कुमारी ने बताया कि हम पीड़ित परिवार को कानूनी सहायता दिलवा रहे हैं। हम अपने स्तर इंसाफ के लिए लड़ेंगे। इस मुद्दे पर दिए गए धरने में प्रवेश कुमारी शामिल हुई थीं।
मारे गए दोनों पुलिसवाले जाट समुदाय से है, इसलिए सभी राजनीतिक दलों ने इस मामले में चुप्पी साधी हुई है। अन्यथा यह मामला दूसरा हाथरस बनते देर नहीं लगती। कांग्रेस, भाजपा, इनैलो और जेजेपी सभी दलों के नेता इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।
हत्या, एनकाउंटर और रेप में किसे क्या मिला?
मुक़दमे में बिक चुका पीड़िता का घर
पूरे बुटाना प्रकरण में साफ देखा जा सकता है कि किसे क्या मिला। दो पुलिस वाले, जो लडक़ी के अनुसार उससे रेप करने के प्रयास में मारे गए हैं, उनके परिवार को महकमे से 35-35 लाख रुपये प्राप्त हुए। जाट सीट पर होने वाले उपचुनाव को देखते हुए चुनावी फायदे के लिये दुष्यंत चौटाला ने परिवार में किसी को नौकरी देने का लॉलीपाप भी दिया। मृतक पुलिस वालों को शहीद व कोरोना वारियर्स का दर्जा पुलिस ने दे दिया।
जबकि दूसरे पक्ष को क्या मिला? लडक़ी की मां को वकीलों की फीस देने के लिये अपना एकमात्र गांव का मकान बेचना पड़ा। समाज ने साथ नहीं दिया। लड़कियां जेल में हैं और उनका भविष्य अंधकारमय है। पुलिस द्वारा मारे गए अमित के पिता का जवान बेटा गया, उनके 14500 रुपये भी गए।
कुल मिला कर सारे प्रकरण में पीड़ित ही और ज्यादा खामियाजा भुगत रहे हैं और संदेह के घेरे में खड़े दूसरे पक्ष को महिमामंडित किया जा रहा है और सरकारी मदद दी जा रही है।
वामंपथी दलों की अवसरवादिता
राज्य की प्रमुख वामपंथी पार्टी सीपीएम जो खापों और समाज के ठेकेदारों के सामंती मूल्यों पर उन्हें धिक्कारती रही है वो भी चुप बैठी है। उनकी एक महिला नेता ने तो मृत पुलिसवालों का चाल चरित्र भी ‘ठीक’ होने की बात कही। हाथरस तक भागे जाने वाले उनके नेताओं को बुटाना आकर तथ्यों की जानकारी लेने की भी फुर्सत नहीं मिली।
दलित पार्टियों में बसपा तो अब सिर्फ सरकार को सुहाते बयान देने तक ही सीमित हो चली है, उसने भी चूं तक नहीं की है। दूसरी तरफ नये उभरे दलित नेता चन्द्रशेखर ‘रावण’ और उनकी भीम आर्मी भी चुप बैठे हैं क्योंकि मामला राष्ट्रीय स्तर तक उछला नहीं है इसलिये इससे प्रचार मिलने की उम्मीद कम है।
ये पार्टियां है जिनसे अन्याय और जुल्म के खिलाफ बोलने की थोड़ी बहुत उम्मीद की जा सकती थी। बाकि कांग्रेस और बीजेपी से तो उम्मीद ही क्या करनी जो हर घटना को चुनावी गणित के तराजू पर तौल के देखती है। जब बरौदा चुनाव सर पर हों (बुटाना बरौदा हल्के में आता है) तो जाट बहुल इलाके में जाट पुलिसवालों के खिलाफ कौन बोले। जब बलात्कार की मांग करके मारे जाने वाले भी जाट हों और हिरासत में बलात्कार करने वाले पुलिसिया भी तो इस मामले को छेडक़र जाट वोटों को नाराज कौन करे।
दलितों के ठेकेदार भी महिला विरोधी
सड़े गले सामंती मूल्यों को ढोने के लिये जाटों की खाप पंचायते ही बदनाम रही है लेकिन बुटाना की घटना ने दलित समाज की भी पोल खोल कर रख दी। बुटाना में दो दलित लड़कियों पर हुये पुलिसिया बलात्कार व अत्याचार पर जिस दलित समाज को व्यापक विरोध करना चाहिये था वो न सिर्फ चुप बैठा रहा बल्कि उन दो पीडि़त बहनों को ही धिक्कार रहा है। उनका कहना है कि रात को वो लड़कियां बाहर क्या करने गई थी?
उन समाज के ठेकेदारों से पूछा जाना चाहिये कि लड़कियां तो उससे मिलने गई थी जिसे वह प्यार करती थी, इसमें किसी कानून का उल्लंघन नहीं था, लेकिन इससे उन दो पुलिस वालों को यह अधिकार कैसे मिल गया कि वह उनसे बलात्कार की मांग करे। और अपनी प्रेमिका की रक्षा करते हुये पुलिसवालों के उसके हाथों मारे जाने पर अमित कैसे दोषी हो गया? दलित नेताओं से यह भी पूछा जाना चाहिये कि पुलिस हिरासत में दोनों लड़कियों से चार दिन तक दसियों पुलिसवालों ने जो बलात्कार किया, उसमें भी क्या उन्ही की गलती थी? ये बेशर्म और कायर नेता हैं जिनका जोर सि$र्फ महिलाओं ओर बच्चों पर ही चलता है। अगर उनमें जरा सी भी हिम्मत होती तो ऐसी बेहूदा बातों के बजाय उन्हें पुलिसिया रेप और अत्याचारों के खिला$फ एकजुट होकर लडऩा चाहिए था।
बीजेपी ओर कांग्रेस तो जाट वोटों के कारण चुप है लेकिन सीपीएम, बसपा, भीम आर्मी, ‘आप’ आदि जिनका चुनाव में कुछ भी दांव पर नहीं है उनका भी चुप रहना उनके खोखलेपन और अवसरवादिता को ही दर्शाता है।