प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘हम भारत के लोग’ का शाहीन बाग़ से सन्देश

प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘हम भारत के लोग’ का शाहीन बाग़ से सन्देश
January 26 13:56 2020

ग्राउंड जीरो से विवेक कुमार की रिपोर्ट

13 दिसम्बर को मोदी सरकार के सांप्रदायिक नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ शुरू हुए जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के छात्र आन्दोलन की लपटें पूरे देश में फ़ैल चुकी हैं| इस बीच जामिया इलाके में माहौल तनावग्रस्त रहा जिसका सबूत है करीब 10 दिनों से जामिया से अन्य इलाकों की तरफ जाने वाली सड़कें पुलिस द्वारा बैरीकेडिंग लगा कर बंद कर दी गईं हैं| पर क्या ये सड़कबंदी आन्दोलन पर कोई असर डाल सकी?

मंगलवार देर शाम 8 बजे मजेंटा मेट्रो लाइन पर स्थित शाहीन बाग़ और कालिंदी कुंज मेट्रो स्टेशन के बीच सन्नाटा पसरा है| आम दिनों में ई रिक्शा, टेम्पो और तमाम  मोटरगाड़ियों की बीच धंसा ये इलाका पिछले दो हफ़्तों से सन्नाटे में गोते खा रहा है क्योंकि यहाँ आने वाली सड़कें चारों तरफ से बंद पड़ी हैं| स्टेशन पर खड़े होकर दूर तक देखने पर बड़ी-बड़ी हेलोज़न लाइटों का प्रकाश यमुना और आस-पास के नालों के ऊपर ठहरी धुंध को चीरने की कोशिश करता दिखाई दे रहा है| इसी प्रकाश की तरफ से एक नारा “इंक़लाब जिंदाबाद” लगातार सन्नाटे से जूझता हुआ मेट्रो पर खड़े लोगों से मानो कह रहा हो, जिंदा हो तो जिंदा दिखाई भी दो|

इस नारे की गूँज ब्रिटिश हुकूमत तक को सुनाई दी थी पर गजब हो रहा है कि आजाद भारत में यहीं के नेता इसे सुनना नहीं चाहते, और तो और इसे दबाने के लिए कत्लेआम तक करने पर आमादा हैं| 22 वर्षीय नसरीन जो शाहीन बाग़ इलाके में रहती हैं ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि बीते 15 दिनों से रोज़ रात को पढाई करने के बाद वह आन्दोलन का हिस्सा बन रहीं हैं|

शाहीन बाग़ से कालका जी की ओर जाने वाली सड़क पर 15 दिनों से लगातार जारी इस आन्दोलन में भाग लेने वाली अधिकतर मुस्लिम महिलायें गृहणियां हैं| दिन-रात चलने वाले इस आन्दोलन में कोई नेता नहीं है और मंच उन सभी के लिए खुला है जो संविधान बचाने की बात करते हैं| धार्मिक नारों की यहाँ कोई जगह नहीं, न ही किसी को धार्मिक प्रचार करने की अनुमति है| यहाँ आने वाले लोगों का मानना है कि ये धर्म की नहीं संविधान बचाने की लड़ाई है|

27 वर्षीय नुसरत जहाँ अपने 6 साल के बच्चे जुबैर और अपनी वृद्ध     सास के साथ आन्दोलन में शामिल थीं| फोटो न लेने की शर्त पर नुसरत ने बताया कि पिछले 10 दिनों से वे रात का खाना खा कर सपरिवार इस आन्दोलन को अपना समर्थन देने के लिए आ जा जाती हैं| सीएए से नुसरत को क्या समस्या है इसपर नुसरत ने कहा कि उन्हें सीएए से ख़ास समस्या नहीं है पर उसके साथ आने वाला एनआरसी असल समस्या की जड़ है| क्या इसे सरकार की चाल न मानी जाए कि दोनों बिलों को एकसाथ मिलाकर लाने से वह देश के मुसलमान को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहती है|

गाज़ियाबाद में रहने वाली 21 वर्षीय आस्था कानून की छात्रा हैं| आस्था अपने तीन दोस्तों अभिनव, श्रीकांत और माधुरी के साथ दो दिनों से शाहीन बाग़ धरने में आ रही हैं| दिन भर की पढ़ाई के बाद गाज़ियाबाद से यहाँ पहुंचना कोई आसान काम नहीं, ये कहते हुए आस्था ने बताया कि उन्हें सीएए और एनआरसी से उतनी ही समस्या है जितनी किसी भी भारतीय जो संविधान में आस्था रखता है, को होनी चाहिए| बतौर कानून की छात्रा गीता और माधुरी ने माना कि नागरिकता संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि अनुच्छेद 14 केवल भारत के नागरिकों नहीं बल्कि सभी लोगों को कानून के समक्ष बराबरी देने वाला मूलभूत अधिकार है| ऐसे में सरकार यदि सीएए के माध्यम से भी केवल गैर-मुस्लिमों को ही नागरिकता प्रदान करती है तो वह भी संविधान की भावना के खिलाफ है|

आस्था की मित्र 22 वर्षीय माधुरी केरल के आलेपी जिले की निवासी हैं और आईंपी यूनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं| यह मानने के बाद भी कि नागरिकता संशोधन अधिनियम एक असंवैधानिक कानून है माधुरी को संदेह है कि उच्चतम न्यायालय इसपर किसी प्रकार का रोक लगायेगा| स्वयं कानून के क्षेत्र में कदम रखने की कोशिश करने वाली इन छात्राओं का अपनी न्यायपालिका पर विश्वास क्यों नहीं है? माधुरी ने बताया कि जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों से सर्वोच्च न्यायपालिका का रुख सरकार के पक्ष में वे देख रही हैं जैसे कश्मीर, राम-मंदिर और अब जामिया प्रोटेस्ट में पुलिस के खिलाफ जांच न करने का फैसला, इससे निश्चित ही किसी का भी इस संस्था से भरोसा उठेगा ही|

अचानक वहां के मंच पर बड़े पर्दे के अभिनेता जीशान की आवाज़ में राहत इन्दौरी का शेर “सभी का खून शामिल है इस मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है’ सुनाई दिया और रात के 12 बजे सर्दी में सिकुड़ते इस प्रोटेस्ट को नयी उर्जा मिल गई| “ग्रुप फोर” के नाम से एक छोटा सा संगठन बना कर आन्दोलन की शुरुआत से ही सबको चाय पिलाने वाले शहाबुद्दीन, जावेद, नदीम और अख्तर की उम्र 24 वर्ष है| चारों बचपन के दोस्त हैं और दिन में लगभग चार हज़ार कप चाय का खर्च उठा रहे हैं| इतना बड़ा खर्च कैसे संभल पा रहा है इस छोटी उम्र में, इसपर सहाबुद्दीन ने बताया कि अपने मोहल्ले के हर घर से उन्हें बिना मांगे चंदा मिल रहा है उस चंदे से सब खर्च चल रहा है| नदीम ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि हम तो चाय पिला रहे हैं पर अल्ला के रहम से बहुत सारे हिन्दू और सिख भाई भी यहाँ आये लोगों के खाने तक का बंदोबस्त कर रहे हैं|

शाहीन बाग़ की सड़क पर हो रहे प्रदर्शन के कारण यहाँ के शोरूम बंद पड़े हैं| जाहिर सी बात है इस बंद का असर दुकान मालिक की आर्थिक दशा के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है|

सड़क किनारे ठेला लगा सिगड़ी पर गोश्त भुनते रफीक से 100 रुपये का भुना मांस खरीद कर खाते 32 वर्षीय जावेद का इसी सड़क पर कपड़ा शोरूम है| जावेद ने बताया की सब मिला कर देखूं तो मेरा रोज़ एक लाख बिक्री का नुकसान हो रहा है| इसी तरह यहाँ जितनी भी दुकाने हैं सबको इससे ज्यादा का ही नुकसान हो रहा होगा क्योंकि किराया ही लाखों में है| न जाने कब ये धरना बंद होगा हमारी दुकानों के सामने से और हम दुकान खोल पाएँगे| क्या जावेद को नहीं लगता कि ये धरना उनकी भलाई के लिए भी है, जावेद ने कहा, कैसी भलाई, मेरी दुकान कोई मोदी-शाह ने बंद की है, ये तो खुद हमारे इलाके के लोगों के करम हैं जो हम नुकसान उठा रहे हैं|

जावेद के दिए 200 रुपये के नोट से 100 वापस करते हुए ठेले पर सिगड़ी की हवा तेज़ करने के बाद रफीक ने कहा कि भाई धंधा तो सबका पिट रहा है पर जब इस देश में ही नहीं होंगे तो धंधा कहाँ करेंगे| जावेद से मुखातिब होते हुए रफीक ने कहा आपकी बड़ी दुकान है, सालों से अल्ला का करम भी है आपके ऊपर जो इतनी बड़ी दुकान खोल सके| उसी करम का बदला चुकाते हुए अगर कुछ रोज़ नहीं भी खोल सके दुकान तो रोते क्यों हो भाई| ये आन्दोलन आपके हक के लिए भी है| दुकान समेटते हुए रफीक ने कहा इतने पढ़े-लिखे लोग इतना भी नहीं समझते कि दुकान सरकार के गलत फैसले की वजह से बंद है न कि इस आन्दोलन की वजह से| क्या फायदा पढ़े लिखे होने का जब पढ़ाई इन्हें अपनी दुकान की सोच से बाहर ही न निकाल सकी|

65 वर्षीय सलमा खान 7 दिन से लगातार रात को बिरयानी बना कर यहाँ आये लोगों को खिलाती हैं| सलमा के साथ उनके घर की तीन बहुयें और उनके बच्चे भी प्रदर्शन में शामिल होते हैं| सलमा की सबसे छोटी बहू निदा ने बताया कि कभी अपने घर से अकेले नहीं निकलने वाली वे सभी औरतें आज सड़कों पर आने को मजबूर हैं| क्या निदा को यकीन है कि उनका ये धरना सरकार को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर कर सकेगा| निदा ने कहा बिलकुल यकीन है, सरकार को झुकना ही होगा| जब अंग्रेजों को जो कि बाहरी थे गाँधी के सामने झुकना पड़ा तो मोदी-शाह कितने भी ज़ालिम हों, हैं तो अपने घर के ही, झुक जाएंगे|

निदा की बहन आसमा ने कहा कि देखो मोदी-शाह कितने झूठे हैं| एक कहता है एनआरसी समझो आ गया, एक बार नहीं बार-बार कहा है अमित शाह ने और संसद तक में कहा है| वहीँ प्रधानमंत्री रामलीला मैदान में चिल्ला रहे हैं कि एनआरसी का ज़िक्र ही नहीं, ऊपर से अब एक नया एनपीआर ले आये| इतनी जल्दी-जल्दी रंग बदल रहे हैं ये गिरगिट बने नेता तो क्या कोई हिन्दू,सिख,इसाई भी भरोसा करेगा इनपर, मुसलमान को अगर छोड़ भी दो तो|

एक कतार में खड़ी लगभग 100 महिलाओं में बच्चियां, बूढी, छात्राएं, गृहणियां प्रदर्शन में शामिल हैं वहीँ लगभग 200 से ज्यादा महिलायें मंच के सामने बैठी हुई हैं| गृहणियों की भागीदारी इस आन्दोलन में सबसे अधिक है, इन्हीं में एक 40 वर्षीय रुबीना ने बताया कि आसिफ मोहम्मद खान जो आरिफ मोहम्मद खान के भाई हैं कल मंच से मुसलमानों को एक रहने की सलाह दे गए| खुद दोनों भाई एक नहीं हैं, बड़े भाई आरिफ सरकार की गोदी में बैठ मुसलमानों के नेक-टेम निकाल कर केरल के गवर्नर बन गए| आज जब आरिफ साहब को एनआरसी के मुद्दे पर मुसलमानों के साथ न सही पर संविधान के साथ तो खड़ा होना चाहिए था, पर वे गलतबयानी करते हुए बोल रहे हैं कि यह गाँधी और नेहरु का सपना है, कितनी गद्दारी भरी है इनमे ये अब देखा|

जिन महिलाओं को मोदी ने तीन तलाक से राहत दिलवाई वो इतनी बड़ी संख्या में सड़कों पर क्यों हैं अब| महिलाओं की एक पूरी टोली बोल पड़ी कि डिटेंशन सेंटर में एक कैदी जैसी ज़िन्दगी से बेहतर तो तीन तलाक ही है, कम से कम आज़ाद तो रहेंगे| अपने परदे को हटाते हुए महरुन्निसा बोलीं कि प्याज 120 रुपये किलो है, अब आप ही बताओ प्याज लाने की ज्यादा ज़रूरत है या एनआरसी? जोर के ठहाकों की बीच बिरयानी के डब्बे आ गए| गर्म बिरयानी को मुंह में सँभालते हुए आवाज़ आई “खुदा उसे जन्नत बख्शे जिसने बिना प्याज़ की बिरयानी बनायी वरना अब तो प्याज़ में गोश्त डल रहा है जबकि डलना गोश्त को प्याज में होता है|”

शाहीन बाग़ के इस लोकतान्त्रिक विरोध में हिन्दुस्तान का वो चेहरा दिखता है जिसका सपना लिये संविधान निर्माताओं ने “हम भारत के लोग” से संविधान की प्रस्तावना शुरू की थी| यहाँ आये हर व्यक्ति को आन्दोलन के सफल होने में उतना ही यकीन है जितना सूर्य के हर दिन निकलने में| क्योंकि सब देख रहे हैं कि अफवाह फैलाने वाली शक्तियां इस आन्दोलन को सिर्फ मुसलमान का विरोध  बताने में बेशक कोई हर्ज़ न रखें पर आन्दोलन में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी “हम भारत के लोग” की भावना लिए शामिल हैं|

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Mazdoor Morcha
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