पराली नहीं, वाहनों के धुएं और धूल से बढ़ रहा प्रदूषण
फरीदाबाद (म.मो.) भयंकर स्तर तक बढते प्रदूषण को नियन्त्रित करने में सरकार, इसका सारा दोष किसानों द्वारा पराली जलाये जाने के सिर पर डालकर निश्चिंत हो जाती है। खुद केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक पराली के धुएं से मात्र 11 प्रतिशत प्रदूषण होता है। यदि इसको और अधिक 40 प्रतिशत भी मान लें तो भी रोष 60 प्रतिशत के लिये जो दोषी हैं, उनको लेकर सरकार लफ्फाजी के सिवाय क्या कर रही है? जहां तक बात पराली जलाने की है भी तो वह अधिक से अधिक 15 से 20 दिन का मामला होता है न कि महीनों का। इसके अलावा पराली आदि का धुआं इतना घातक भी नहीं होता जितना घातक वाहनों से निकलने वाला तथा कचड़े के जलने से उत्पन्न धुआं।
इस शहर में सबसे अधिक प्रदूषण सडक़ों से उडऩे वाली भवन सामग्री धूल के साथ-साथ वाहनों के धुएं से होता है। वाहनों द्वारा प्रदूषण तब और भी बढ जाता है जब सडक़ों पर कब्ज़ों के चलते वाहनों की गति कम होने के साथ-साथ जाम भी लग जाते हैं। जाम में फंसी गाडिय़ां खड़े-खड़े जो धुआं उगलती हैं, प्रदूषण ही तो बढाती हैं। शहर की शायद ही कोई ऐसी सडक़ होगी जिसमें गड्ढे न हों। तमाम पॉश सेक्टरों में तो गड्ढों से ही काम चल जाता है एनआईटी के औद्योगिक क्षेत्र में तो सडक़ ही गायब है, बिना सडक़ के गड्ढों में भारी-भरकम वाहन बेतहाशा धूल उड़ाते व डगमगाते हुए रेंगने को मजबूर हैं।
स्मार्ट सिटी के नाम पर अनेकों सडक़ें उखाड़ दी गयी हें जहां से धूल के बवंडर लगातार उड़ते रहते हैं। उपायुक्त राजमार्ग प्राधिकरण को तो पानी न छिडक़ने के लिये नोटिस जारी करते हैं जबकि वहां से कोई धूल नहीं उड़ती लेकिन शहर की तमाम भीतरी सडक़ों पर उड़ती धूल उनको नज़र नहीं आती। पानी छिडक़ने के नाम पर लाखों रुपये तो डकारे जा रहे हैं लेकिन उसका प्रभाव कहीं नज़र नहीं आ रहा। कूड़ा निस्तारण का कोई उचित प्रबन्ध न होने के चलते इसको यथासंभव चला कर ही निस्तारण कर दिया जाता है।
शायद ही कोई ऐसा सेक्टर अथवा कॉलोनी हो जहां से नियमित कूड़े का उठान होता है। कूड़ा-कबाड़ा जो रोजाना चलता है, उसकी पोल उस दिन चौड़े में खुल गयी जब नीलम पुल के चार पिलर ही उस आग ने जला मारे। लेकिन इसके बावजूद भी इस पर कोई नियंत्रण नहीं। रही-सही कसर पटाखे पूरी करने वाले हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर दिवाली की रात आठ से 10 बजे तक पटाखे $फोडऩे की बात करते हैं तो एनजीटी बिल्कुल न $फोडऩे का आदेश देता है। वैसे पिछला अनुभव बताता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गयी पाबंदी के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर ही रात भर पटाखे फोड़े गये थे अंध भक्तों की दिवाली पटाखों के बिना तो मन ही नहीं सकती। सांस लेने का हवा मिले न मिले पर दिवाली तो मननी ही चाहिये तभी तो भगवान प्रसन्न होंगे।