नेहरू कॉलेज में प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठा नाकारा ‘गुरू’ रावत

नेहरू कॉलेज में प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठा नाकारा ‘गुरू’ रावत
October 17 02:55 2020

फरीदाबाद (म.मो.) सेक्टर 16 ए स्थित नेहरू राजकीय महाविद्यालय हरियाणा के सबसे पुराने व बड़े कॉलेजों में से एक है। बीते सप्ताह ही इसकी 50 वीं वर्षगांठ मनाई गयी थी। लेकिन बीते काफी समय से यहां प्रिंसिपल का पद रिक्त पड़ा है। सरकार बाकायदा पदोन्नत करके प्रिंसिपल नियुक्त करने की बजाय किसी वरिष्ठ प्रोफेसर को चार्ज देकर प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठाने की नीति अपनाये हुए है। इसी नीति के तहत जब इसी कॉलेज के दो वरिष्ठ प्रोफेसरों ने प्रिंसिपल की कुर्सी पर बैठने से इन्कार कर दिया तो हर प्रकार से अयोग्य ओम प्रकाश रावत के भागों छींका टूट पड़ा। वह सरपट दौड़ता हुआ चंडीगढ़ पहुंचा और अपने एक मित्र महेश जो डीएचई के सहायक हैं, के सहयोग से गीदड़सींगी लेकर प्रिंसिपल की कुर्सी पर आ बैठा।

अब, जिसकी योग्यता स्कूल मास्टर की भी न हो और उसे बैठा दिया जाये इतने बड़े कॉलेज के सिर पर तो दिमाग तो खराब होना ही था। वैसे इस व्यक्ति का दिमाग से कोई ताल्लुक हो, ऐसा लगता नहीं। बतौर गणित प्रोफेसर नियुक्त इस व्यक्ति का इतिहास खंगालने पर पता चला कि इसने कभी क्लास पढ़ाई ही नहीं। हमेशा दांय-बांय रह कर टेर्कालॉजी ही मारी है और अब प्रिंसिपल की कुर्सी हाथ लगने के बाद तो पढ़ाने का काम वैसे ही खत्म हो गया।

किसी अधिकारी के व्यक्तित्व में जब दम नहीं होता एवं वह भीतर से खोखला होता है तो वह अपने अधीनस्थों को प्रभावित करने अथवा उन पर रौब गांठने के लिये तरह-तरह के ओछे-हथकंडे अपनाता है। ऐसे ही हथकंडे अपनाते हुए रावत ने स्टाफ में से कुछ चापलूस पाल रखे हैं, जिन्हें छूट है कि वे जब चाहें कॉलेज आयें, जब चाहें जायें और न भी आयें तो चलेगा।

मीनाक्षी

और तो और चपरासी से क्लर्क बनी सुषमा नरूला को तो इतना सिर पर चढ़ा रखा है कि वह उच्च शिक्षित प्रोफेसरों को ऐसे धमकाती है जैसे वे भिखारी हों। हाजरी रजिस्टर को कब्ज़े में लेकर तो वह ऐसे व्यवहार करती है जैसे वही कॉलेज की मालकिन हो। प्रोफेसरों से सम्बन्धित कागजात व डाक आदि के लेन-देन में भी वह अपनी पूरी चौधराहट दिखाती है, उन्हें अपने सामने खड़ा रख कर बात तक नहीं करती। इसके बदले उसने एक जुमला जरूर रट रखा है, चेयर यानी प्रिंसिपल की कुर्सी खुदा होती है। बात-बात पर वह यही जुमला जोर-जोर से चिल्लाती रहती है। तत्कालीन प्रिंसिपल प्रीता कौशिक के कार्यकाल में चण्डीगढ़ से आये डायरेक्टर से जब उन्होंने शिकायत की तो सुषमा नरूला ने बीमारी का नाटक किया।

अपनी अहमियत दिखाने एवं रौब गांठने के लिये अनपढ़ होते हुए भी वह प्रोफेसरों को कई तरह से तंग करती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते सप्ताह कुछ महिला प्रोफेसरों ने इसकी शिकायत सीएम विंडो तक भी कर दी हैं। शिकायत में कहा गया है कि जिस सरकारी आदेश के द्वारा गर्भवती तथा शिशुओं को स्तनपान कराने वाली प्रोफेसरों तथा विकलांग प्रोफेसरों को घर से ही ऑनलाइन काम करने की छूट दी गयी है, उन्हें यह नकली प्रिंसिपल तंग करती है। इस श्रेणी में 10 महिला व चार पुरुष प्रोफेसर आते हैं। कोरोना महामारी से बचाने के लिये सरकार द्वारा दी गयी इस सुविधा को रावत अपनी मुट्ठी में दबोच कर रखता है जैसे वही इसे देने वाला है। इसके लिये वह घंटों गर्भवती प्रोफेसरों को अपने दरवाज़े पर खड़ा रखता है और खुद चेयर पर बैठा अपने चापलूसों के साथ हंसी ठिठोली करता रहता है। रावत की बद्तमीजी की यह इंतिहा है।

जानकार बताते हैं कि सीएम विंडो पर शिकायत के बाद जांच करने के लिये 10 अक्टूबर को रेणु भाटिया, सदस्य राज्य महिला आयोग प्रिंसिपल कार्यालय में पहुंची। किसी भी सवाल का सामना करने में असमर्थ रावत ने चिल्लाने के लिये अनपढ क्लर्क सुषमा, अपनी एक चापलूस प्रोफेसर रूचिरा खुल्लर को बुला लिया। रावत की पत्नी मीनाक्षी जो हिन्दी की प्रोफेसर हैं, वह तो हमेशा रहती ही अपने प्रिंसिपल पति की बगल में है, प्रिंसिपल की पत्नी होकर भी क्लास पढ़ाई तो क्या फायदा। वैसे इस हिन्दी प्रोफेसर द्वारा क्लास न लिये जाने की भी पिछले वर्ष छात्र शिकायत कर चुके हैं।

जानकारों के अनुसार रेणु भाटिया को जब एक प्रोफेसर ने बताया कि उसके द्वारा ऑन लाइन पढाई गयी क्लासों का पूरा ब्योरा उन्होंने सम्बन्धित बाबू को दे दिया था; बुलाने पर जब बाबू तसदीक करने पहुंचा तो रावत ने उसे सुनने की बजाय किसी अन्य काम के लिये रवाना कर दिया। रेणु भाटिया जब भी कोई बात रावत से पूछती तो वह सुषमा नामक क्लर्क इधर-उधर की बात लेकर रावत की प्रशंसा में चिल्लाने व शिकायतकर्ता को धमकाने लगती। पत्नी मीनाक्षी व अंग्रेजी प्रोफेसर रुचिरा खुल्लर भला क्लर्क को अपने से आगे कैसे जाने देते और जोर-शोर से बातों को घुमाने लगते।

खुल्लर ने तो रावत को पहाड़ पर चढाते हुए यहां तक कह डाला कि यह तो बहुत ‘डाउन टू अर्थ’ यानी बहुत ही शरीफ प्रिंसिपल है जो जब चाहे इनके दफ्तर में घुसे चले आते हैं। अग्रवाल कॉलेज में जाकर देखो, प्रिंसिपल से मिलने के लिये पांच-पांच प्लेटफार्म पास करने पड़ते हैं। कुल मिलाकर रेणु भाटिया के सामने किसी बात को स्पष्ट होने ही नहीं दिया। लेकिन वे भी सुलझी हुई पूरी धुरंधर हैं, प्रिंसिपल चौंकड़ी का सारा खेल बखूबी उनकी समझ में आ गया।

अब देखना यह है कि वे न केवल रावत चौकड़ी द्वारा प्रताडि़त महिला प्रोफेसरों को राहत दिलाने बल्कि शहर के इतने बड़े कॉलेज व इससे जुड़े लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए यहां किसी ढंग के प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिये सिफारिश करती हैं या रावत के लग्गुए-भगुओं के दबाव में आकर रावत को संरक्षण दिलाती हैं।

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Mazdoor Morcha
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