दुष्यंत चौटाला भाजपा सीएम बन सकते हैं?

दुष्यंत चौटाला भाजपा सीएम बन सकते हैं?
February 26 18:23 2020

 

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

सुनने में बड़ा अजीब व हैरतअंगेज लगता है। भला जेजेप (जननायक जनता पार्टी) के सुप्रीमो यकायक भाजपा विधायक दल का नेता कैसे बन सकता है? मौजूदा दौर की राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। जब भाजपा के मुकाबले चुनाव लड़ते वक्त चौटाला उसे गालियां देने के बावजूद उसके साथ गठबंधन कर सरकार में शामिल हो सकता है तो पूरी जेजेपी को ही भाजपा में विलय करने में क्या बुराई हो सकती है?

दिल्ली चुनावों के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा मंच पर मौजूद चौटाला को अपना मित्र व उंचे नेता यूं ही नहीं कहा गया था। इससे उस अंदरूनी खिचड़ी की महक आती है जो भाजपा आला कमान व चौटाला के बीच पक रही है। दरअसल पिछले दिनों हुए हरियाणा विधानसभा के चुनावों ने भाजपा का यह भ्रम दूर कर दिया है कि वह जाटों को अपने से अलग करके हरियाणा जीत सकती है। जाटों के नाम पर उसके पास जो दिग्गज- बराला, अभिमन्यु, धनखड़ जो थे वे सब धराशायी हो गये। यानी उन्हें जाटों ने नकार दिया। ऐसे में भाजपा के लिए यह जरूरी हो गया कि वह जाटों के नये उभरते नेता को किसी भी कीमत पर पटाये। उसके लिए दुष्यंत चौटाला की अपने विधायक दल का नेता व सीएम बनाना कोई बड़ी बात नहीं रही बात खट्टर तथा विज की, तो ये कट्टर संघी हैं और  पार्टी के आदेश पर कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन पार्टी इन्हें वफ़ादारी के इनाम के तौर पर और बहुत कुछ दे सकती है।

उधर दुष्यंत के सामने समस्या यह है कि पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा चौटाला के विधायकों की तोड़-फ़ोड़ में लगे हैं। यदि हुड्डा इसमें कामयाब हो जाते हैं तो चौटाला कहीं के भी न रहेंगे। आज के दिन चौटाला के विधायकों में भारी असंतोष पनप रहा है। क्योकि उन्हें लूट की मलाई से कोई वाजिब हिस्सा नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में कुछ भी हो सकता है। इन हालात में चौटाला भाजपा में घुसकर अपनी स्थिति को मजबूत करने की सोच सकते हैं। वैसे भी भाजपा व चौटालों में पुरानी खानदानी दोस्ती रही है। देवीलाल व ओमप्रकाश जब भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार चलाते रहे हो तो दुष्यंत की भाजपा में विलय करने से क्यों परहेज होगा, दोनों में कोई वैचारिक मतभेद तो है नहीं, दोनों का ही उद्देश्य येन-केन- प्रकारेण सत्ता हथियाना व जनता को ठगना ही तो है और फिर इस छोटी सी उम्र में सीएम का पद हाथ लगे तो क्या बुराई है।

लेकिन सत्ता का यह खेल इतना सरल व सीधा भी नहीं है। तब भाजपा में गये जाट दिग्गजों को जाटों ने जीरो कर दिया तो क्या वे दुष्यंत को बख्श देंगे? खासतौर पर जब ओमप्रकाश अब कभी भी जेल से बाहर आ सकते हैं। उनकी संगठन शक्ति का लोहा आज भी माना जाता है। अभय को लेकर जब वे मैदान में उतरेंगे तो दुष्यंत के लिये उनसे निपट पाना आसान नहीं होगा।

 

 

 

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