मौत पर भी जातिवाद से मुक्ति नहीं
यूपी के आगरा शहर से 20 कीलोमीटर दूर कांकरपुरा गांव की एक महिला को मौत के बाद भी जातिवाद का दंश झेलना पड़ा। नट जाति की महिला की मृत्यु पर उसके समुदाय के लोग उसकी लाश को गांव के शमशान घाट पर दाह-संस्कार के लिये ले गये। चिता तैयार करके महिला का शव भी उस पर रख दिया गया था। बस चिता को आग देने की तैयारी थी कि गांव के ठाकुरों ने आकर अंतिम संस्कार रूकवा दिया। उनका कहना था कि ये शमशान घाट ठाकुरों का है और यहां नट जाति का अन्तिम संस्कार नहीं हो सकता क्योंकि वो एक नीची जाति है। हां जीवित नट महिला के यौन शोषण में ठाकुरों को जाति कोई आड़े नहीं आती। नटों के लिये आबंटित शमशान घाट की जगह पर एक ठाकुर कब्जा किये बैठा है। नट बेचारे लाश, लक्कड़ सब उठा दूसरे गांव में गये और वहां मृत महिला का अन्तिम संस्कार किया गया।
इस खबर का वीडियो वायरल होने और अखबारों में छीछालेदर होने पर अब जि़ला प्रशासन ने उसी गांव में नटों को अलग शमशान घाट के लिये 750 वर्ग मीटर ज़मीन गांव शामलात में से दी है। लेकिन ना तो संविधान के उल्लंघन के लिये उन ठाकुरों पर कोई मुकदमा दर्ज किया गया और न ही गांव के शमशान घाट को सब जातियों के लिये खोला गया। यह हमारे संविधान की धारा 15 (2) (बी) का खुला उल्लंघन है जो कहती है कि किसी भी भारतीय नागरिक को किसी विशेष सार्वजनिक जगह के वैध इस्तेमाल से जाति, धर्म या नस्ल के आधार पर नहीं रोका जा सकता। लेकिन भाजपा के राज में वो संविधान गया तेल लेने जो किसी गरीब को बराबरी का अधिकार देता हो।