क्या हुडा साहब भी अब भाजपा की बस में बैठने जा रहे हैं?

क्या हुडा साहब भी अब भाजपा की बस में बैठने जा रहे हैं?
August 01 14:18 2020

राजस्थान को लेकर हरियाणा कांग्रेस में मची हलचल फुस्स

ललित नागर के लिए पार्टी पहले, घाघ भूपेंद्र हुड्डा चुप हैं

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबाद: भाजपा प्रायोजित विद्रोह के जरिए जब सचिन पायलट ने राजस्थान में अशोक गहलौत की सरकार गिराने की कोशिश की तो उसकी हलचल हरियाणा कांग्रेस में भी हुई। हरियाणा में कांग्रेस की हलचल को भाजपा से संचालित होने वाले मीडिया ने हवा दी। दरअसल, इसकी वजह कांग्रेस के पूर्व विधायक ललित नागर का एक ट्वीट था जबकि बाकी हलचल पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कोई बयान न देना था। अब जब गुबार छट गया है और राजस्थान विधानसभा का सत्र 14 अगस्त से शुरू होगा, तो ऐसे में अब हरियाणा कांग्रेस में मची कथित हलचल की कहानी सामने आनी चाहिए।

ललित नागर का ट्वीट

सचिन पायलट ने जब विद्रोह किया और शुरुआत में यह कहते रहे कि वो कांग्रेस छोडक़र कहीं भी जा सकते हैं लेकिन भाजपा में नहीं जा सकते हैं। उसी दौरान ललित नागर ने ट्वीट किया कि मामला सुलझा लिया जाएगा। कांग्रेस आलाकमान को सचिन पायलट की भी बात सुननी चाहिए। ललित के इस ट्वीट को भाजपा समर्थित मीडिया ने हरियाणा में भी पार्टी से लगभग विद्रोह माना और इसे हवा दे दी। लेकिन असलियत यह थी कि ललित नागर ने यह बयान कांग्रेस की उसी परंपरा को निभाते हुए दिया था कि शायद सुलह हो जाए। लेकिन उनके बयान को गुर्जरों के कांग्रेस से असंतोष को जोड़ दिया गया। हालांकि ललित नागर गुर्जर समाज के प्रमुख नेताओं में हैं लेकिन इस मुद्दे पर हरियाणा के बाकी गुर्जर नेता चुप रहे। चौधरी महेंद्र प्रताप समेत कांग्रेस से जुड़े किसी भी नेता ने सचिन पायलट के विद्रोह को महत्व नहीं दिया। संघी एजेंडे पर चलने वाले एक मीडिया समूह ने इस संबंध में हरियाणा की गुर्जर महापंचायत से सचिन पायलट को समर्थन देने की खबर दी लेकिन एक भी गुर्जर नेता सचिन के लिए सडक़ पर नहीं उतरा।

इस संबंध में ललित नागर का कहना है कि उनके लिए पार्टी सबसे पहले है। उन्होंने पार्टी हित में बयान दिया था लेकिन उसके बाद जब स्थिति साफ हो गई कि सचिन पायलट भाजपा की गोद में बैठ गए हैं तो ऐसे में हमारी सुलह की अपील भी वापस हो गई। पार्टी ऐसे शख्स से क्यों बात करे जिसे पार्टी की बजाय अपनी महत्वाकांक्षा से प्यार हो।

हुड्डा परिवार की पैंतरेबाजी

जिस समय सचिन पायलट का प्रायोजित विद्रोह चल रहा था, उसी दौरान कुछ पत्रकारों ने पहले अफवाह फैलाई, फिर भविष्यवाणी कर दी कि सचिन की तरह अब दीपेंदर हुड्डा और उनके पिता भूपेंद्र हुड्डा भी विद्रोह करने वाले हैं। उन पत्रकारों ने यह तक लिखा कि भाजपा आलाकमान ने हुड्डा परिवार से कहा है कि उन्हें नैशनल हेराल्ड और जमीन वाले केस से निकाल दिया जाएगा। बस इस समय वो सचिन पायलट का समर्थन कर पार्टी से विद्रोह कर दें। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को इस अफवाहबाजी की पूरी सूचना थी लेकिन एक घाघ राजनीतिक की तरह इस शख्स ने चुप्पी साधे रखी। हुड्डा ने इधर हरियाणा के भाजपा नेताओं से अपने रिश्ते ठीक कर लिए हैं। यही वजह है कि हुड्डा ने एक बार भी पार्टी के साथ खड़े होने और सचिन पायलट की निंदा तक नहीं की। कांग्रेस आलाकमान ने हरियाणवी रणदीप सुरजेवाला को समझा दिया था कि वो हुड्डा को लेकर कोई बयान नहीं दें और सारा फोकस राजस्थान पर केंद्रित करें। यह रणनीति काम कर गई। इस तरह हुड्डा खानदान को कांग्रेस आलाकमान फिलहाल बर्दाश्त कर रहा है लेकिन कारगर विकल्प के अभाव में इस परिवार की पैंतरेबाजी नजरन्दाज की जा रही है। यही वजह है कि दीपेंद्र को राज्यसभा में आने का मौका आसानी से मिल गया।

हुड्डा आखिर चाहते क्या हैं

हुड्डा परिवार हरियाणा में कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाना चाहता है। लेकिन इस समय वह पार्टी को लेकर अपनी मर्यादा भी भूला हुआ है। जिस समय कांग्रेस की ओर से अकेले राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी से टक्कर ले रहे हैं। मोदी के खिलाफ रोजाना कोई न कोई बयान जारी करते हैं, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा राहुल गांधी के बयानों को शेयर तक नहीं करते। कांग्रेस का बुजुर्ग से बुजुर्ग नेता राहुल गांधी के बयान को ट्वीट करता है लेकिन हुड्डा परिवार ने इससे किनारा कर रखा है। इतना ही नहीं हरियाणा सरकार की आलोचना करने वाले हुड्डा बाप-बेटे मोदी के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोलते। हरियाणा के कांग्रेस कार्यकर्ता इन बातों को बखूबी समझते हैं लेकिन राज्य में हुड्डा का विकल्प नहीं होने के कारण वे खुलकर विद्रोह या शिकायत दर्ज नहीं करा पाते। बातचीत में कई कार्यकर्ता कहते हैं कि पार्टी के लिए हुड्डा परिवार ठीक है लेकिन ये लोग बीच-बीच में राजनीतिक रूप से निष्क्रिय हो जाते हैं और कार्यकर्ताओं का हौसला टूट जाता है। अब जब चुनाव आएगा, तब फिर से बाप-बेटे किसी यात्रा का आयोजन करेंगे। जबकि इन्हें चार साल के संघर्ष की रूपरेखा बनानी चाहिए।

शैलजा कमजोर अध्यक्ष

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की बागडोर कुमारी शैलजा के पास है। शरीफ और गांधी परिवार की करीबी होने के बावजूद वो प्रदेश में पार्टी में जान नहीं फूंक सकीं। वह चाहतीं तो हुड्डा की ताकत को चुनौती देकर कांग्रेस को खड़ा कर देतीं लेकिन मौका चूक गई हैं। हुड्डा भी शैलजा को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। इसके बावजूद कांग्रेस का आम कार्यकर्ता शैलजा के साथ जुडऩे को तैयार है लेकिन खुद शैलजा में कोई चिंगारी नहीं है। हालत यह है कि अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने ठीक से राज्य का दौरा तक नहीं किया है। अभी तक वह उस तरह की करिश्माई अध्यक्ष नहीं बन सकीं है कि 24 घंटे के अंदर कार्यकर्ताओं के बल पर किसी बड़े प्रदर्शन को आयोजित कर सकें। वह सिरसा जिले से आती हैं लेकिन अभी तक अपने गृह जिले में ही चौटाला खानदान की विरासत को ठीक से चुनौती नहीं दे सकी हैं। इस तरह हरियाणा में भाजपा सरकार की नाकामियों का कोई फायदा कांग्रेस नहीं उठा पा रही है।

 

 

 

 

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