कानून बन जाएँ तो लागू कौन करवाता है?

कानून बन जाएँ तो लागू कौन करवाता है?
October 19 06:34 2020

मज़दूरों के लिये तहसीलदार बडख़ल के पास नहीं है समय

विवेक कुमार 

राजू कन्वर्टर्स प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री में काम करने वाले बद्री प्रसाद को कंपनी ने नौकरी खत्म होने पर ग्रेच्युटी के पैसे नहीं दिये लिहाजा बद्री को न्यायालय की शरण में आना पड़ा। ग्रेच्युटी की कन्ट्रोलिंग अथारिटी ने 30/3/2018 को बद्री के पक्ष में निर्णय सुनाते हुये कंपनी को उसे रुपये 149423 मय 12 प्रतिशत ब्याज के देने के आदेश दिये। पर सात-आठ महीने की भाग-दौड़ के बाद भी जब कंपनी ने पैसे नहीं दिये तो बद्री पुन: ग्रेच्युटी न्यायालय की शरण में गया। न्यायालय ने 14/10/18 को कलेक्टर यानी डीसी $फरीदाबाद को पैसों की रिकवरी के लिये लिखा और डीसी ने एक साल बाद यानी 31/12/19 को तहसीलदार बडख़ल को कंपनी से पैसा रिकवर करने को लिखा। अब बद्री तहसीलदार के चक्कर काट रहा है।

रोज मज़दूरों और किसानों के लिये गला फाडक़र चिल्लाने वाली सरकार के डीसी के पास एक मज़दूर की चिट्ठी एक साल तक पड़ी रही तो 9 महीने से तहसीलदार बडख़ल उसको दबाये बैठा है। मज़दूर कुल पांच साल से अपने जायज हक को पाने के लिये दर-दर की ठोकरें खा रहा है और अफसर अपने वातानुकूलित कमरों में बैठे आराम फरमा रहे हैं। क्या कभी डीसी फरीदाबाद और तहसीलदार बडख़ल सोचेंगे कि इन्हीं मज़दूरों किसानों की मेहनत की कमाई में से ही उन्हे तनखा मिलती है। क्या बद्री प्रसाद को उसका हक मिल पायेगा।

 अजातशत्रु

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