उपायुक्त ने लघु सचिवालय की सड़कों को  जाम-मुक्त कराया, शहर की बाकी सड़कों को कौन करायेगा?

उपायुक्त ने लघु सचिवालय की सड़कों को  जाम-मुक्त  कराया, शहर की बाकी सड़कों को कौन करायेगा?
March 02 10:18 2020

फरीदाबाद (म.मो.) करीब दो सप्ताह पूर्व उपायुक्त यशपाल यादव ने लघु सचिवालय के चारों ओर कारों के खड़े होने से बने स्थाई जाम को मात्र एक आदेश से समाप्त करा दिया। उनके आदेशानुसार सभी कारें पास के ही एक खाली  पड़े मैदान में खड़ी होंगी। जब कभी उस मैदान पर कुछ बनेगा तब की तब देखी जायेगी।

अपनी इसी शक्ति का प्रयोग करके उपायुक्त यदि चाहें तो शहर की तमाम सड़कों को भी जाम-मुक्त कर सकते हैं। इसके लिये कानून ने उन्हें पूरे अधिकार दिये हैं; कानूनन कोई भी वाहन सड़कों पर खड़ा नहीं किया जा सकता, आवश्यकता है केवल इस कानून को लागू करने की।

राष्ट्रीय राजमार्ग सहित शहर की शायद ही कोई ऐसी सड़क होगी जिस पर वाहन पार्किंग द्वारा अवैध कब्ज़ा न कर लिया गया हो। बाटा मोड़ फ्लाई ओवर पर राजमार्ग के एक ओर की सर्विस रोड पर पुरानी कारों का बाज़ार है तो दूसरी ओर ट्रकों का कब्ज़ा। इसी तरह अजरोंदा व ओल्ड फरीदाबाद फ्लाई ओवर के दोनों ओर पार्किंग द्वारा अवैध कंजा बना हुआ हे। ओल्ड के चौक से रेलवे अंडर पास तक जाने वाली पूरी सड़क तो जैसे रेहड़ी वालों को बेच ही दी गयी हो। ऐसी ही स्थिति रेलवे स्टेशन से गांधी कॉलोनी की ओर निकलने वाली सड़क की है। बाटा चौक से हार्डवेयर चौक तक जाने वाली सड़क के दोनों ओर ट्रकों व बड़े ट्रालों का जमावड़ा सदैव ट्रैफिक जाम बनाये रखता है।

अब तो यह समस्या पाश सेक्टरों तक में भी बड़ी मुसीबत बनती जा रही है। थाना सेंट्रल के पिछवाड़े इन्डियन ऑयल के सामने वाली सड़क के दोनों ओर सदैव ही तरह-तरह के वाहन सड़क घेरे रहते हैं। कई बार तो दोपहर में स्कूलों की छुट्टी के समय यह सड़क पूरी तरह से जाम हो जाती है। रात के समय यहां एक भी स्ट्रीट लाइट नहीं जल रही होती। सेक्टर 9 की तरफ वाले टी प्वायंट पर घोर अंधेरे के चलते मोड़ का भी पता नहीं चलता।

सेक्टर 14 स्थित मानव रचना स्कूल के सामने तो ज्यादातर आधा किलो मीटर का जाम लगा ही रहता है; कारण वही अवैध पार्किंग। एनआईटी के नम्बर एक, दो, तीन व पांच की स्थिति और भी भयंकर है। दुकान के सामने 10-20 फीट जगह पर सामान सज़ा कर रखना तो दुकानदार अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। पैदल चलने वालों की पटरी तो दूर सड़क पर चलना तक दूभर होता है।

अरबों रुपये पानी की तरह बहा कर शहर को स्मार्ट बनाने का दावा करने वाला प्रशासन यदि एक बार अजरोंदा मैट्रो स्टेशन से थामसन प्रेस की ओर मात्र 200 मीटर पैदल चल कर देख ले तो स्मार्टनैस की पूरी हकीकत उसके सामने आ जायेगी। राजमार्ग की सर्विस लेन के किनारे मैट्रो लाइन के पिलरों के साथ-साथ पैदल चलने की जगह तो  पर्याप्त है परन्तु सारी पर या तो अवैध कब्ज़े हैं या इतनी उबड़-खाबड़ कि कोई पैदाल चल ही न पाये।

 

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Mazdoor Morcha
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