कोरोना के बहाने मज़दूरों से छीना जायेगा ईएसआई का मेडिकल कॉलेज अस्पताल
फरीदाबाद (म.मो.) यदि भरोसेमंद सूत्रों पर भरोसा करें तो बहुत जल्द एनएच-3 स्थित ईएसआईसी का मैडिकल कॉलेज अस्पताल उन मज़दूरों से छीन लिया जायेगा जिनके वेतन से हर माह साढे छ: प्रतिशत वसूल कर भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के आधीन आने वाले ईएसआईसी ने इसे 6-7 वर्ष पहले बनाया था। यह भी कोई आसानी से नहीं बन गया था, इसके लिये भी मज़दूरों ने धरना, प्रदर्शन व संघर्ष किये थे। अब भारत सरकार इसे केवल कोरोना के लिये आरक्षित करने जा रही है।
विदित है कि कोरोना भारत में पैदा नहीं हुआ। यह हवाई जहाज़ में सवार होकर विदेशों से आया और प्रवासी मज़दूरों को सडक़ों पर सैंकड़ों मील दौड़ाया। इतना ही नहीं कई जगह इन लाचार मज़दूरों को पुलिस ने मारा-पीटा भी और कीटनाशक का छिडक़ाव भी इन पर किया। यही छिडक़ाव हवाई जहाज के जरिये कोरोना वायरस लाने वालों पर भी तो करके दिखाते।
आज कोरोना को राष्ट्रीय आपदा बता कर देशहित में मज़दूरों के इस अस्पताल को छीना जा रहा है; तर्क यह दिया जा रहा है कि यह सब सरकार अपने लिये थोड़े ही कर रही है देश की जनता के लिये ही तो कर रही है। ठीक है लेकिन वह ‘आयुष्मान भारत’ कहां गया जिसके द्वारा देश के 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये तक की चिकित्सा सुविधा प्रदान करने का ढोल बड़े ज़ोर-शोर से पीटा गया था? उसी ढोल पीटने व तथाकथित गोल्डन कार्ड बनाने पर ही सैंकड़ों करोड़ रुपये फूंक दिये गये। उसी रकम से यदि कोई अस्पताल व मेडिकल कॉलेज बनाये जाते, स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ किया जाता तो आज जनता के काम आता जिसकी चिंत में मगरमच्छ के आंसू बहाये जा रहे हैं।
अब सवाल यह पैदा होता है कि जिस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रति दिन 3000 मरीज़ ओपीडी में आते थे और 500-600 भर्ती रहते थे, वे कहां जायेंगे, उनका इलाज कौन करेगा? सोची-समझी रणनीति के तहत अब यहां 3000 की जगह मात्र 200 मरीज़ ही ओपीडी में आ रहे हैं तथा वार्डों में भर्ती मरीज़ों को डिस्चार्ज किया जा रहा है तथा नये भर्ती नहीं किये जा रहे हैं। सरकार को यह नहीं भूलना चाहिये कि जिन मज़दूरों से उसने एक कानूनी अनुबंध के द्वारा एडवांस पैसा ले रखा है उनको वह इस तरह की दादागीरी के द्वारा इलाज से वंचित नहीं कर सकती।
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की पूरी जनता को स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है और कोरोना जैसी संभावित महामारी से जनता को बचाना भी सरकार का ही दायित्व है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं निकाला जा सकता कि सरकार अपना यह दायित्व उन औद्योगिक श्रमिकों पर डाल दे जिनके साथ उसने एक सेवा देने का अनुबंध कर रखा है। अपने इस दायित्व को पूरा करने के लिये सरकार को ‘आयुष्मान भारत’ जैसे ड्रामे करने के अपेक्षा ठोस काम करने चाहिये थे। बीते छ: साल से जो नये एम्स खोलने व हरियाणा के हर जि़ले में मेडिकल कॉलेज खोलने की लफ्फाजी की जा रही थी, उन पर ठोस काम क्यों नहीं किया गया? और तो और ईएसआईसी द्वारा मज़दूरों से वसूले गये पैसे का भी सही ढंग से इस्तेमाल करने की अपेक्षा लाखों करोड़ रुपये पर सरकार (ईएसआईसी) कुंडली मारे बैठी है। सेक्टर आठ का ईएसआईसी द्वारा निर्मित 200 बेड का अस्पताल भूत बंगला बना पड़ा है। न पर्याप्त डिस्पेंसरियां हैं न उनमें स्टाफ है।
बीते तीन-चार साल से बंद पड़ा गोल्डफील्ड नामक एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अस्पताल जिसे सरकार ने आज 160 करोड़ देकर कब्ज़े में लिया है, उसी वक्त क्यों नहीं ले लिया था? यदि उसी वक्त ले लिया होता तो वहां पढ रहे छात्रों को परेशानी से बचाया जा सकता था, सैंकड़ों नये डॉक्टर वहां से पैदा होते तथा बल्लबगढ-छांयसा क्षेत्र के लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधायें मिली होती और आज संकट की घड़ी में वे 500 बेड काम आते। दुख की बात तो यह है कि कब्ज़ा लेने के बावजूद वहां अभी तक झाडू़-पोछा भी नहीं लगा है, सटाफ, दवायें व उपकरणों की बात तो छोड़ दीजिये। यहां के सरकारी सिस्टम में हर काम के लिये फाइल घिसट-घिसट कर चलती है, मिनटों में होने वाला काम दिनों में और दिनों में, होने वाला काम बरसों में होता है। केवल घोषणायें हैं जो चंद पलों में होती हैं।