आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने दी सीएए-एनआरसी को चुनौती

आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने दी सीएए-एनआरसी को चुनौती
March 02 10:16 2020

फरीदाबाद: हरियाणा के जाने-माने आईएएस अशोक खेमका ने भारत सरकार के नागरिकता पंजीकरण रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को चुनौती दी है यानी उन्होंने सीधे भारत सरकार को चुनौती दी है। लेकिन खेमका के बयान पर किसी टीवी चैनल में बहस तो दूर चर्चा तक तक नहीं हुई। अखबारों ने भी सीएए और एनआरसी पर इतने सीनियर और ईमानदार आईएएस के बयान पर कोई तवज्जो नहीं दी।

कौन है भारत का नागरिक

आईएएस अशोक खेमका ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि अगर किसी का नाम मतदाता सूची में है तो इसका मतलब है कि उसके पास भारतीय नागरिकता है। इसी तरह अगर किसी के पास भारतीय पासपोर्ट है तो वह भारतीय नागरिक है। क्योंकि जब वह बाहर जाता है तो वहां उससे भारतीय नागरिक के रूप में ही व्यवहार किया जाता है।

खेमका ने ट्वीट लिखा है कि इसी तरह आधार कार्ड, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल सर्टिफिकेट आप के निवासस्थान की पुष्टि करते हैं।

दरअसल, अशोक खेमका का बयान ऐसे समय है जब देश में सीएए और एनपीआर के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन चल रहा है और कई शहरों में शाहीनबाग बनाकर धरना प्रदर्शन हो रहा है। 12 फरवरी को गुवाहाटी हाई कोर्ट की बेंच ने जुबैदा बेगम नामक महिला की नागरिकता स्वीकार नहीं की, जबकि उसने मतदाता  हचान पत्र कोर्ट में पेश किया था। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट से नागरिकता साबित नहीं की जा सकती।

 इसके ठीक उलट 11 फरवरी को मुंबई की एक निचली अदालत (लोअर कोर्ट) का फैसला आया, जिसमें कोर्ट ने वोटर लिस्ट में नाम होने और मतदाता  हचान पत्र पेश करने पर उन्हें भारतीय नागरिक माना और उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। पुलिस ने उन्हें अवैध नागरिक बताकर गिरफ्तार किया था। मुंबई की निचली अदालत ने कहा कि मतदाता पहचान पत्र में नाम होने का मतलब है कि आप वोट दे सकते हैं। अगर आप को वोट देने का अधिकार है तो आप भारतीय नागरिक हैं।

अशोक खेमका ने क्यों दिया बयान

अशोक खेमका बहुत सीनियर आईएएस होने के अलावा उन्हें लंबा प्रशासनिक अनुभव है। वे जानते हैं कि पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र और आधार की वैधानिक मान्यता क्या है। ताज्जुब है कि इतनी छोटी सी बात भारत सरकार नहीं समझ रही है। हरियाणा सरकार ने दो दिन पहले राज्य में मई से एनपीआर शुरू करने की घोषणा की है। खेमका ने यह बयान देकर खट्टर सरकार पर पूरी तरह दबाव बना दिया है कि वह वैधानिक नियमों के खिलाफ नहीं जा सकती।

खेमका के बयान का विश्लेषण किया जाना जरूरी है। भारत में पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र, आधार, राशन कार्ड वगैरह संसद और विधानसभाओं में पास किए गए कानून के तहत जारी किए जाते हैं। यानी अगर किसी को भारत सरकार के मुहर वाला पासपोर्ट जारी किया जाता है तो उसे कोई फर्जी दस्तावेज नहीं दिया गया है। दुनियाभर के विदेश मंत्रालय भारतीय पासपोर्ट को सिर्फ इसलिए स्वीकार करते हैं कि भारत से आया हुआ पासपोर्ट धारी शक्स भारतीय नागरिक है।

इसी तरह आधार लाने से पहले भारत सरकार ने कानून बनाया। संसद और विधानसभाओं में पारित किया। इसके बाद एक अथॉरिटी बनाई गई, जिसने आधार जारी किया। इस तरह भारत सरकार ने किसी नागरिक के पहचान से जुड़ी जितनी भी चीजें जारी की हैं, वे हवा-हवाई नहीं हैं। इसीलिए अदालत ने वोटरलिस्ट और मतदाता पहचान पत्र को भारतीय नागरिकता के लिए स्वीकार कर लिया। खेमका भी यही कहना चाहते हैं कि वैधानिक होने की वजह से ही ये सभी चीजें किसी को भारतीय नागरिक साबित करने के लिए काफी हैं।

केंद्र सरकार की बदमाशी

भारत सरकार अभी खुद ही तय नहीं कर सकी है कि कौन कौन से दस्तावेज होने पर कौन भारतीय नागरिक माना जाएगा, कौन नहीं माना जाएगा। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2019 में जारी अपनी एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा था कि अभी यह तय नहीं किया गया है कि किन दस्तावेजों के जरिए भारतीय नागरिकता साबित की जा सकेगी। इसी सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि सरकार मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट, आधार, विभिन्न लाइसेंस, इंश्योरेंस के दस्तावेज,  जन्म प्रमाण पत्र और स्कूल की टीसी को नागरिकता साबित करने वाले प्रमाण के रूप में स्वीकार कर सकती है।

सरकार इस विज्ञप्ति को जारी करने के बाद भूल गई या जानबूझकर आंखें बंद कर लीं। इसके नागरिकता के मुद्दे  पर आंदोलन बढ़ता गया। अगर यही बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाकर कह दें तो सारा आंदोलन खत्म हो सकता है। लेकिन आरएसएस के इशारे पर ये दोनों नेता चुप हैं। आरएसएस पूरे आंदोलन को हिंदू विरोध का नाम देकर भुनाना चाहती है। इसलिए सबकुछ जानते हुए आऱएसएस के मुखौटे कोई फैसला नहीं ले पा रहे हैं।

खेमका की मुहिम जारी है

आईएएस अशोक खेमका ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को कई जमीन डील में बेनकाब कर उस समय भाजपा नेताओं से खूब वाहवाही लूटी थी। लेकिन सीएम समेत अब वही भाजपा नेता अब खेमका को अच्छी पोस्ट पर नहीं देखना चाहते हैं। यही वजह है कि 53 बार तबादले का सामना कर चुके खेमका ने भाजपा के शासनकाल में भी हार नहीं मानी है। अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी मुहिम जारी है। सीएए, एनपीआर पर केंद्र सरकार के रवैए पर आवाज उन्होंने यूं नहीं उठाई है। अब वो जनता के नजरिए से सरकारी फैसलों को समझने की कोशिश करते हैं। यही सही तरीका है। अगर सारे अफसर हर फैसले को जनता की कसौटी पर रखें तो उनसे फिर कोई गलती नहीं होगी और कोई भी खटारा सरकार उनका बार बार तबादलता करने के बावजूद कुछ उखाड़ नहीं पाएगी।

विजिलेंस कमिश्नर की नियुक्ति पर सवाल

आईएएस अशोक खेमका ने हाल ही कुछ रिटायर अफसरों को महत्वूर्ण पदों पर लगाए जाने की कड़ी आलोचना की थी। केंद्र सरकार ने 1978 बैच के हरियाणा कैडर के आईएएस संजय कोठारी को देश का चीफ विजिलेंस कमिश्नर नियुक्त किया। संजय कोठारी अभी हाल तक राष्ट्रपति के सचिव थे। इसी तरह पूर्व सूचना प्रसारण सचिव बिमल जुल्का को चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर नियुक्त कर दिया। खेमका ने इन सारी नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसी महत्वूर्ण संस्थाओं से भ्रष्ट लोगों को निकालकर बाहर किया जाए। अभी तक सारी ही महत्वूर्ण संस्थाओं में भ्रष्ट लोगों को नियुक्त किया गया है।

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Mazdoor Morcha
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