सोनीपत के बुटाना गांव की लडक़ी से पुलिसिया रेप में नेताओं और मीडिया के लिए हाथरस जैसा रस क्यों नहीं?
सोनीपत म.मो: मेरी 17 साल की बेटी के गुप्तांगों में पुलिस ने कांच की बोतल और डंडा डाल दिया, जेल के अन्दर की औरतों ने बताया कि तेरी बेटी की हालत ठीक नहीं है, उसके साथ पुलिस ने बहुत गलत किया है। ये कहना है रेप पीड़िता और दो पुलिस वालों के कत्ल की आरोपी नाबालिग लडक़ी की माँ का।
न्याय को भटकती पीड़िता की माँ
एक तरफ हाथरस में जहाँ मीडिया का पूरा जमावड़ा है और सवर्ण-दलित राजनीति भी उफान पर है वहीं भाजपा शोषित हरियाणा के सोनीपत जिले के थाना क्षेत्र बरौदा, ग्राम बुटाना की एक दलित लडक़ी के बलात्कार पर मीडिया के साथ-साथ सभी राजनीतिक दलों को भी सांप सूंघ गया है। सन्नाटे में बने रहने में लोकतंत्र की दुहाई दे-दे कर विलापने वाले राजनितिक दल भी शामिल हैं| ऐसा तब है जब थाने के पुलिसकर्मी से लेकर सीआईए वालों ने लगातार चार दिन नाबालिग लडक़ी से बलात्कार किया और उसके गुप्तांग में लाठी तक डाल दी (जैसा की लडक़ी की माँ ने बताया)।
क्या है कहानी
बीते 30 जून को जींद गोहाना रोड पर हरियाणा पुलिस के दो सिपाहियों की चाकू मार कर की गई हत्या के पीछे पुलिस की थ्योरी जहाँ पेशेवर अपराधियों के नाम लिखी गई वहीँ घटनाक्रम इस पूरी थ्योरी पर सवाल खडें करता है। इन सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री खट्टर, गृहमंत्री अनिल विज प्रशासन, न्यापालिका, डाक्टर, मीडिया और पूरा समाज शामिल है।
30 जून को जींद निवासी, सुनार जाती का अमित अपनी प्रेमिका रीना (बदला हुआ नाम) जो दलित जाती से सम्बंधित है से मिलने चार दोस्तों के साथ बुटाना गाँव के बाहर जींद-गोहाना रोड पर रात 11 बजे के करीब गया। दोनों की आपसी नजदीकियां जींद शहर में रहने के दौरान बढ़ीं थी। कोरोना के कारण रीना का परिवार जींद से बुटाना वापस आ गया जिसके चलते अमित को भी समाज की नजर बचा कर रीना से मिलना पड़ा। समाज से बचने में भी जोखिम उतना ही है जितना कि समाज से न बच पाने का। गश्त पर निकले दो सिपाहियों कप्तान सिंह और रविन्द्र ने इतनी रात रीना और अमित को जब सडक़ पर पकड़ा तो पहले उनकी जाति पूछी और फिर अमित से लडक़ी उनके हवाले करने की जिद की। अमित ने उन्हें बताया कि वो दोनों शादी करना चाहते हैं और पुलिस बेशक पैसे ले-ले पर उन्हें जाने दे। पर दोनों सिपाहियों ने रीना को जबरन खींचना शुरू कर दिया और अमित पर भी डंडे बरसाए। अमित ने चाकू से दोनों पर वार कर उनका कत्ल कर दिया।
इन सबके बीच अमित के तीन दोस्त और रीना के साथ गई उसकी बहन मीना (बदला हुआ नाम) सडक़ से दूर कहीं छिपे खड़े रहे।
सीआईए ने कुछ ही दिनों में अमित के दोस्त संदीप को उसकी गाड़ी नम्बर से पकड़ लिया और फिर अमित तक भी पहुँच गई जिसे बाद में पुलिस ने मुठभेड़ में मारा गया दिखा दिया। जबकि सूत्रों से पता चला कि अमित को तो पुलिस ने पहले उसके जींद के घर से उठाया और एक दिन मार-पीट करने के बाद उसकी हत्या कर दी जबकि संदीप के पैर में गोली मारी गई।
इसके बाद पुलिस ने रीना के मामा और भाई को उठा लिया जिसके चलते दबाव में रीना की माँ ने 2 जुलाई 2020 को खुद अपनी बेटी रीना को गोहाना स्थित सीआईए पुलिस के सामने पेश किया। रीना की चचेरी बहन मीना को भी पुलिस ने 2 जुलाई की सुबह गिरफ्तार कर लिया| चार दिन थाने में रखने के बाद 6 जुलाई को कोर्ट में लड़की को पेश किया गया और 18 जुलाई तक दोनों लड़कियों से किसी को मिलने नहीं दिया। 18 जुलाई को करनाल जेल में जब रीना की माँ की मुलाकात अपनी बेटी से हुई तो उसने बताया कि 12 पुलिस वालों ने चार दिनों तक रीना का बलात्कार किया जिससे उठे बहुत ब्लीडिंग हो रही है। उसके गुप्तांग में लाठी और कांच की टूटी बोतल डाली और एक पुलिस वाले ने अपना हाथ तक डाल दिया। इस वहशीपने की शिकार रीना ने जेल में आने वाले चिकित्सकों से सब बातें बतायीं पर उन्होंने भी इसपर कोई रिपोर्ट नहीं की।
मीडिया की टुच्ची रिपोर्टिंग
लगभग सभी बड़े अखबारों ने इतनी बड़ी घटना पर पुलिस की गढ़ी कहानी को सच बना कर छाप दिया। टाइम्स आफ इंडिया ने 7 जून को छापी अपनी खबर में एक भी क्रॉस इन्वेस्टीगेशन का एंगल नहीं डाला और जैसा आका ने दिया वैसा छाप दिया। जबकि घटना के बीतने और खबर के छपने में 7 दिन का वक्त मिला। जो मीडिया हाथरस में खेत की पगडण्डी और बाजरे के खेतों से छुपता हुआ पीड़िता के घर एक्सक्लूसिव पहुंचना चाहता है वो मीडिया दिल्ली से सटे सोनीपत के इस मामले पर ऊंघ रहा है।
यूट्यूब चैनल जनज्वार को दिए अपने बाईट में डीएसपी डाक्टर रविंदर ने पीड़िता की माँ के साथ-साथ रेप पीड़िता का नाम भी सरेआम जाहिर कर दिया। इसपर भी अखबारों ने आजतक कोई आवाज नहीं उठाई।
एक महीने बाद आरोपी पुलिस पर आधी अधूरी एफआईआर
रेप पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए जुलूस निकालते युवा
रीना की माँ और उनके साथ जुड़े कुछ समाज सेवियों की मदद और भाग दौड़ करने से राज्य महिला आयोग कार्रवाई करने को मजबूर हुआ और बीच में आने से लडक़ी की माँ की तरफ से पुलिस ने तीन पुलिस कर्मियों पर एफआईआर दर्ज कर दी। कमाल की बात है कि एफआईआर दर्ज करने के बाद भी न तो उसके बारे में रीना की माँ को सूचित किया गया और न ही उसे कई दिनों तक ऑनलाइन अपडेट किया गया। इतना ही नहीं तीनो आरोपी पुलिस वाले आजतक खुले घूम रहे हैं। यानी कि पुलिस ने एफआईआर मात्र दिखावे के लिए कर ली।
एफआईआर को पढऩे के बाद साफतौर पर देखा जा सकता है कि पुलिस ने अपने मामले में कितनी गड़बड़ी की है। सबसे पहले यह कि 30 जून को और फिर उसके बाद घटी घटना की एफआईआर 30 जुलाई को देरी से करने का कारण बताने वाला कॉलम पुलिस ने भरा ही नहीं। यानी कि एफआईआर में देरी क्यों हुई इस पर पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। लडक़ी की 23 अगस्त 2002 की जन्मतिथि के मुताबिक घटना होने की तारीख तक जब लडक़ी नाबालिग थी और खुद पुलिस ने भी पोक्सो एक्ट की धारा लगाईं हुई है तो सभी 12 आरोपी पुलिस वालों, बुढाना थाना और सीआईए टीम को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया? सिर्फ तीन पुलिस वालों संदीप, राधे, संजय का ही नाम क्यों आया बाकी के 9 पुलिस वालों के नाम क्यों छिपाए गए? जिन तीन अभियुक्तों का नाम आया है उनका पद व पता दोनों ही एफआईआर में दर्ज नहीं हैं।
क्यों गायब हैं राजनीतिक दल?
पीड़िता की माँ ने बताया कि अपनी बेटी को न्याय दिलाने और पुलिसिया जानवरों से बचाने की गुहार लेकर वह लोकल एमपी संजय भाटिया के पास भी याचना पत्र लेकर गयीं। पत्र लेने क बाद आजतक संजय भाटिया ने दोबारा कभी मिलने और न्याय के लिए आवाज उठाने की जहमत नहीं की।
न्याय की आवाज़ उठाने गली-गली घूमे छात्र एकता मंच के सदस्य और साथी
इसी तरह वह इलाके के छोटे बड़े कई और नेताओं से मिल चुकी हैं पर कोई भी साथ देने को राजी नहीं। जो गृह मंत्री अनिल विज गब्बर सिंह बने पूरे प्रदेश में छापे मारते फिरते हैं और जरा सी बात पर निलंबित करने का नाटक खेलते हैं उन्हें इस दलित लडक़ी पर उनके ही विभाग के भेडिय़ों की यह हरकत परेशान क्यों नहीं कर रही?
दरअसल यह सारा खेल है चुनाव का है। रिपोर्ट के शुरुआत में हाथरस का जिक्र किया गया था क्योंकि वहाँ ठाकुर जाति राजनीतिक रूप से सशक्त है और सूबे में उनका मुख्यमंत्री होने के नाते माथे पर हल्दी का लेप पोते स्थानीय गुंडे पीड़ित परिवार को धमका रहे हैं। कुछ ऐसा ही बुटाने के इस गाँव में भी है। बरौदा विधानसभा सीट पर 3 नवम्बर को उपचुनाव होना है। क्योंकि यह सीट जाट बाहुल्य सीट है और इस गाँव एवं आस-पास के जाट यदि किसी पार्टी से नाक पिचका लेंगे तो उस पार्टी की हार पक्की हो जाएगी।
बरौदा सीट भूपेन्द्र सिंह हुडा की भी नाक का सवाल है इसलिए राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वहां फिलहाल पैदलमार्च नहीं करना चाहते। भीम आर्मी के मूंछों पर ताव देते चंद्रशेखर रावण को भी अपना दल-बल रीना को न्याय दिलाने के लिए लेकर जाने की फुरसत नहीं मिली है। मुख्यमंत्री खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज से ऐसी कोई उम्मीद करना भी बेवकूफी की सीमाओं को पार करने जैसा होगा। गाँव से भागने पर मजबूर पीड़ित परिवार ने बताया कि पुलिस और गाँव के लोगों के डर से फिलहाल वे गाँव छोडक़र बाहर रहने को मजबूर हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि, कोर्ट में मांग की थी कि उनकी बेटी का मेडिकल चेकअप एम्स से करवाया जाए पर जज ने कहीं से भी करवाने की छूट दे दी और स्थानीय पुलिस ने गोहाना में ही अपने रसूख का फायदा उठा कर मेडिकल रिपोर्ट को मैनेज कर लिया। कथित तौर पर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी आरोप लगाये कि जिन दो पुलिस वालों की हत्या अमित ने की वे जाट समुदाय से थे, जिस जज ने रीना की जमानत याचिका खारिज करके उसे जेल भेजा वे भी जाट और जिन तीन पुलिस वालों को नामजद किया गया है वह भी जाट हैं। इस तरह मामला जाट और दलित के होने की सूरत में सभी राजनीतिक दल जाट वोट को पक्का रखना चाहते हैं और इसीलिए चुप्पी साधे बैठे हैं।
हो सकता है कि पुलिस की ही कहानी सही हो जिसकी संभावना.1 प्रतिशत ही दिखाई देती है। पर इस मामले में समाज से लेकर लोकतंत्र के नाम पर बना फर्जी तंत्र पूरी तरह से नंगा हो रहा है और अपने इस नंगेपन को खुलेआम प्रदर्शित करने पर उसे जरा भी शर्म हया नहीं। पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए 9 अक्टूबर को सोनीपत के छात्र एकता मंच के अध्यक्ष अंकित की अगुआई में शहर में मार्च निकाला और डीसी दफ्तर पर धरना प्रदर्शन भी किया| देखने वाली बात यह थी कि इस पूरे मार्च में विपक्षी दल का एक भी नेता शामिल नहीं हुआ, जबकि सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही|
अमित और रीना का मिलना ही समाज ने ऐसा घृणित कार्य मान रखा है कि उसके बाद रेप से बचाने का ठेका उठाये खुद पुलिस भी चार दिन तक ऐसी लडक़ी का रेप करे तो समाज को फर्क नहीं पड़ता। उल्टे समाज तालियाँ पीट कर पुलिस को शाबाशी देता है। जिस राज्य में कन्या भ्रूण हत्या का ग्राफ इतना विशाल हो उससे और क्या उम्मीद की जा सकती है। रीना की माँ सरकार से क्या मांग रही है? सिर्फ एक निष्पक्ष जांच, क्या इतने बड़े-बड़े वादे करने वाली सरकारें डरकर एक जांच भी नहीं करा सकती।