हजारों मजदूरों के ग्रेच्युटी के पैसे पूंजीपति धोखे से सिर्फ इसलिए हड़प लेते हैं क्योंकि उन मजदूरों के पास उनकी जॉइनिंग डेट को साबित करने के प्रमाण नही हैं।

हजारों मजदूरों के ग्रेच्युटी के पैसे पूंजीपति धोखे से सिर्फ इसलिए हड़प लेते हैं क्योंकि उन मजदूरों के पास उनकी जॉइनिंग डेट को साबित करने के प्रमाण नही हैं।
September 17 13:22 2020

गरीबों को नौकरी देना दूर, उनकी मेहनत की ग्रेच्युटी तक सरकार लुटवा रही है

फरीदाबाद (म.मो.) मेदनीपुर पश्चिम बंगाल के रहने वाले 62 वर्षीय जगदीश चंद मैती 1993 से फरीदाबाद स्थित एक कंपनी साँन ऑटो इक्विपमेंट में काम करते थे। 2019 में उम्र का तकादा पूरा हुआ तो जगदीश को सेवा निवृत कर दिया गया जो कि उन्हें खुशी-खुशी मंजूर है। रिटायर करते वक्त कंपनी ने जगदीश के 27 सालों की सेवा का सिला उनके साथ बेईमानी करके चुकाया।

जगदीश के मुताबिक 27 साल की नौकरी के बाद मिलने वाली ग्रेचुटी की रकम हिसाब से 3,10,448 बनती थी जिसे घटा कर कंपनी ने 2,19 230 कर दिया और बाकी के पैसे कंपनी डकार गई। कंपनी ने इस घपले को करने के लिए बड़ा सीधा सा रास्ता अपनाया और वो है कि 1993 से जो जगदीश नौकरी में आये उनकी जॉइनिंग 2003 से दिखा दी। इस तरह कंपनी ने सीधे-सीधे 10 साल रिकॉर्ड से गायब कर दिये।

ऐसा नहीं है कि यह बदमाशी सिर्फ जगदीश के साथ हुई या सिर्फ इसी कंपनी ने की है। जगदीश के साथ-साथ करीब सात और लोग रिटायर हुए और उससे पहले के भी कुछ सेवा निवृतों को मिला लें तो लगभग 20 लोग ऐसे हैं जिनके साथ कंपनी ने इस तरह की बेईमानी अभी जल्दी ही की है। जगदीश को छोडक़र कोई भी आवाज उठाने को तैयार नहीं है जिसका कारण है कि उनके पास ऐसा कोई प्रमाण ही नहीं जिससे कि वे सिद्ध कर सकें कि कंपनी में वे कितने वर्षों से काम कर रहे हैं। पर जगदीश के साथ ऐसा नहीं है, वे कहते हैं कि उन्हें पहले से ही मालूम था कि जिस दिन उनका नंबर आएगा कंपनी उनके साथ भी यही सलूक करेगी। इस बात को ध्यान में रख कर उन्होंने अपने सभी कागजात बतौर सबूत पक्के कर लिए थे जिनके दम पर आज वह श्रम अदालत में अपना मुकदमा कंपनी की इस जालसाजी के खिलाफ दायर करने जा रहे हैं।

जगदीश के वकील उमेश गुप्ता ने बताया कि दरअसल कंपनी मजदूरों के साथ ऐसी धोखेबाजी बड़े आराम से कर लेती हैं क्योंकि सरकारी विभाग के अधिकारी से लेकर सम्बंधित कारिंदे तक कंपनी मालिक से पैसे लेकर मजदूर के हक की बात दबा जाते हैं। लगभग सभी कम्पनियाँ इस तरह से गरीब मजदूरों के पैसे लूटने में शामिल हैं। मजदूर कोर्ट कचहरी पर अविश्वास के नाते और कंपनी मालिक के पैसे की ताकत को देख कर चुप रह अन्याय सह लेता है। पर उसके हक में बने कानूनों को यदि अदालतें लागू न करा सकें तो फिर इस व्यवस्था का अर्थ ही क्या रहेगा।

गुप्ता पिछले तीस वर्षों से ऐसे मजलूमों की लड़ाई लड़ रहे हैं। श्रम कानूनों को लगातार कमजोर करने वाली भाजपा सरकारें ऐसे मजदूरों की आवाज उठाना तो दूर उनकी मुराद भी नहीं सुनना चाहती। अन्यथा ये कैसे संभव है कि हजारों मजदूरों के ग्रेच्युटी के पैसे पूंजीपति धोखे से सिर्फ इसलिए हड़प लेते हैं क्योंकि उन मजदूरों के पास उनकी जॉइनिंग डेट को साबित करने के प्रमाण नही हैं।

 

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Mazdoor Morcha
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