फरीदाबाद पुलिस अब बनी
श्रम समझौता अधिकारी भी!
विवेक कुमार
फरीदाबाद : शहर की पुलिस अब श्रम कानूनों को ताक पर रखने वाली कम्पनियों और उनके कर्मचारियों के बीच पैसे देने दिलाने का काम भी करने लगी है। 25 वर्षीय राहुल की 10 सितम्बर 2020 को आईएमटी स्थित एआरडी इंडस्ट्रीज में मशीन में उंगली कट गई। प्रबंधन ने लीपा-पोती करते हुए इलाज के नाम पर मामूली मरहम पट्टी करवा दी। अस्पताल ने भी पुलिस को सूचना देने की जरूरत नहीं समझी और पीडि़त को कटी उंगली लिए उसके हाल पर पूरे सिस्टम ने छोड़ दिया।
यदि मजदूरों के अधिकारों और कानूनों की बात की जाए तो देश में एक से एक कानून बने हैं। एआरडी इंडस्ट्रीज कंपनी के ऊपर कर्मचारी राज्य बीमा एक्ट 1948 लागू होता है। इस कानून के तहत कंपनी की जिम्मेवारी बनती है कि वह अपने कर्मचारी को इस कानून और कर्मचारी के अधिकारों के प्रति जानकारी उसके समझे जाने वाली भाषा में दे। जानकारी का माध्यम लिखित या इलेक्ट्रॉनिक दोनों हो सकता है। पर क्या वाकई कम्पनियां ऐसा करती हैं? ऐसा न करने की सूरत में कंपनी या कर्मचारी पर पचास हजार से एक लाख रुपये तक का जुर्माना बनता है। तो क्या कभी किसी कंपनी पर इस कानून का उल्लंघन करने पर ऐसा कोई जुर्माना लगाया गया?
दरअसल ये कानून बने बेशक हैं पर जिनपर इसे लागू करवाने का जिम्मा है वे इसके बहाने बस अपनी जेबें भरते पाए गए हैं। ऐसा नहीं है कि जेबें भरने का ये चलन कोई आज शुरू हुआ है पर आजतक भी यही हो रहा है ये चिंत्ता की बात है।
राहुल की उंगली कटने के बाद जहाँ अस्पताल ने अपना फर्ज नहीं निभाया वहीं पुलिस भी चार कदम आगे रही। एफआईआर करने के बदले पुलिस ने कंपनी प्रबंधन को बुलाया और गरीब राहुल पर कुछ ले देकर मामले को रफा-दफा करने का दबाव डाला। राहुल ने बताया कि पहले तो कंपनी की तरफ से सुपरवाईजर ओमपाल ने धमकाते हुए कहा कि कंपनी 2000 रुपये मुआवजा दे रही है वो ले ले। बाद में 12 हजार रुपये देकर उससे एक खाली पन्ने पर अंगूठा लगवा लिया कि उसे अब ईएसआई से इलाज नहीं चाहिए, उसे कंपनी से कोई शिकायत नहीं और अब भविष्य में वह कंपनी पर कानूनी कार्यवाही नहीं करेगा।
क्या ऐसा हो सकता है एक लडक़ा अपनी कटी उंगली लेकर उसे बिना इलाज के सडऩे के लिए छोड़ दे और इसके बदले में खुशी-खुशी यह भी लिख दे कि वह अब कंपनी की तरफ से संतुष्ट हो चुका है? जाहिर है ये सब थाने में बैठाकर पुलिसिया दबाव से हुआ है। अन्यथा पुलिस ने ऐसा कोई भी समझौता किस कानून के तहत करवाया? ये समझौता कराने का अधिकार पुलिस को किस कानून के तहत मिला? थाना सदर आईएमटी के सब इंस्पेक्टर असलम खान से हुई मजदूर मोर्चा की बातचीत में उन्होंने उचित कानूनी कार्यवाही करने का झूठा वादा किया था। राहुल अपनी कटी उंगली को लेकर बल्लभगढ़ के सरकारी अस्पताल गए जहाँ उन्हें यह कह कर भगा दिया गया कि जिस निजी सूर्या अस्पताल में पहले इलाज करवाया है वहीँ जा। एआरडी के सिपहसालार बनकर आये ओमप्रकाश के अनुसार उन्होंने राहुल को इलाज करवाने का विकल्प दिया था और या तो वो इलाज करवा ले या कानूनी कार्यवाही कर ले, दोनों तो नहीं मिलेगा।
फिलहाल राहुल अपनी कटी और सड़ती हुई उंगली लेकर उपचार के लिए भटक रहे हैं। उन कानूनों का क्या फायदा जो इन मजदूरों के नाम पर बनाये गए हैं। पुलिस के असलम खान ने इन्ही कानूनों का भय दिखा कर कंपनी से भी जरूर कुछ वसूला होगा और दबाव के तहत ऐसा समझौता करवाया जिसका कोई कानूनी औचित्य ही नहीं हो सकता। कंपनी ने एक कोरे कागज पर राहुल से साइन करवा कर किसी न किसी कानून का डर दिखा कर ही करवाए। क्या वाकई हमारे श्रम कानून राहुल जैसे मजदूरों को किसी तरह का संरक्षण दे रहे हैं।