मोदी राज में गरीब छुपाओ और गरीब हटाओ तक पहुँच गया है ‘विकास’….

मोदी राज में गरीब छुपाओ और गरीब हटाओ तक पहुँच गया है ‘विकास’….
March 02 10:23 2020

विवेक कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट 

मोदी के हर भारतवासी को पक्का मकान देने के वादे पर खट्टर सरकार का बुलडोजर चलते-चलते रह गया। फऱीदाबाद की झुग्गी-बस्ती प्रेम नगर-पटेल नगर, जो सेक्टर चार और आठ के सामने गुडगाँव नहर के साथ-साथ बसी है, की इस ग्राउंड रिपोर्ट को पढऩे से पहले आप थोडा सा रुक कर, खुद को एकाग्रचित करने का प्रयास करें। फिर जिन लोगों की कहानी आप पढेंगे उनके साथ खुद के जीवन संघर्ष को भी जोड़ कर देखने की कोशिश करें।

दिल्ली-एनसीआर में अधिकतर लोग दूसरे राज्यों से रोजगार की तलाश में निकल कर आये। कुछ ने अपने आप  को सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूती के साथ स्थापित कर लिया तो कुछ दो जून की रोटी के बंदोबस्त में रह गए, घर-मकान बना पाना तो दूर की बात थी। जिनका संघर्ष कई पीढिय़ों तक खिचता चला जा रहा है उनके बसने के लिए स्मार्ट शहरों में नाले के किनारे झुग्गियां या कहीं खाली जगह पर तिरपाल डाल कर जीने के अलावा कोई रास्ता बचता नहीं।

ऐसा ही इलाका है फरीदाबाद का प्रेम नगर-पटेल नगर। बीते ग्यारह फरवरी को अचानक हरियाणा सिंचाई विभाग का नोटिस इस बस्ती के लोगों पर चस्पा कर दिया गया कि हफ्ते भर में जमीन खाली कर दें, वरना इनके मकानों  पर बुलडोजर चलाया जाएगा। जाहिर है जिसका घर टूटने वाला हो उसे न नींद आ सकेगी न भूख लगेगी, इनके साथ भी ऐसा ही हुआ। क्योंकि यहाँ की आबादी 15 ह्रजार के आस-पास है तो बड़ी खबर बनी, लोग अपने-अपने नेताओं से गुहार लगाने भागे और नेताओं ने भी मामला हाथों हाथ लेकर अपनी राजनीति चमकाने की शुरुआत की। इस सबके बीच इन गरीबों के हाल क्या हैं और इसे जानने का जमीनी प्रयास मजदूर मोर्चा की टीम ने किया।

बनारस से 40 साल पहले फरीदाबाद में आ बसे घीराहू एक गुमटी (लकड़ी का खोखा) लगा कर बैठे हैं। गुमटी में लगी एक तार पर तरह-तरह के गुटखों की माला सजी है और एक बर्नर वाले चूल्हे पर चाय बना कर बेचने से अपना गुजारा कर रहे हैं। वर्ष 1983 से इसी प्रेम नगर में हैं और बच्चे भी यहीं जवान हुए। सधे हुए लहजे में बात करने वाले घीराहू ने बताया, जब जवान थे तो शरीर में ताकत थी और राजमिस्त्री का काम करते थे, प र बुढापे में चाय की टपरी ही सहारा है। इस पर भी जब सरकार हमारा मकान गिरा देगी तो क्या करेंगे समझ नहीं आ रहा।

शान्ति प्रसाद प्रेममनगर के सबसे पुराने रहने वाले जीवित व्यक्ति बचे हैं। हमारे पहुँचते ही बस्ती की एक भीड़ हमें उनके घर ले गई। लगभग 80 की उम्र के शान्ति प्रसाद को अब दो छड़ीयों का सहारा ही एक जगह से दूसरी जगह ले जा पाता है। कुर्सी पर बैठते ही अपनी पगड़ी उतार कर रखी और आँखों के आंसुओं को रोकते हुए बताया की इंद्रा गाँधी के आपातकाल में भी यहीं थे और अपने लोगों की झुग्गियों को टूटते हुए देखा था। इसके बाद आयी जनता पार्टी की सरकार, फिर झुग्गियां बनायी गईं। जिन तमाम लोगों की 126 झुग्गियां तोड़ी गई थीं उन्हें 36 गज के प्लाट मिले।

अब जब हमारी झुग्गियां गिरायी जा रही हैं तो हमे भी तो कहीं बसाओ, क्या हम इस देश के नागरिक नहीं, क्या हम  पाकिस्तान या बांग्लादेश से आये हैं। सब सरकारी कागज इसी जगह बनाये गए। बिजली का मीटर, राशन कार्ड, वोटर कार्ड भी। मैंने सारी जिन्दगी में एक छोटा सा मकान बनाया तो उसे भी सरकार तोड़ रही है अवैध बता कर। ठीक है आपकी जमीन है तो ले लो भाई पर हम भी तो आपके हैं, कहीं बसा दो। नहीं ज्यादा, तो बस छोटा सा टुकड़ा दे दो जमीन का हम अपने घर अपने हाथों से उजाड़ लेंगे और वहीं जा कर एक-एक ईंट और मलबे से फिर जोड़ेगे। यूँ तो अब मैं मरने वाला हूँ, अगर यहीं मर जाऊं तो आत्मा को कुछ शांति रहेगीÓ, शान्ति प्रसाद की आँखों के आंसू और रुआंसी आवाज अब साफ दिखने और सुनाई देने लगी।

माहौल को सँभालते हुए सौम्य स्वभाव की एक अन्य महिला ने मोर्चा संभाला। प्रेममचंद के महान उपन्यास “गोदान” के चरित्र “होरी” की ही तरह इस महिला पर की उम्र पर भी गरीबी ने अतिक्रमण कर लिया है। दोनों हाथों को जोड़कर बोली, साहेब जब इंद्रा मरीं तब भी हम यहीं थे, सेक्टर चार की कोठियों पर आँख से इशारा करते हुए कहा, इनके घर हम साफ करते हैं, इसी से जिन्दगी काटते हैं। अपना खून-पसीना लगा कर अपने घरों की दीवार को  पक्का किया है, साहेब बहुत मेनहत की है, भूखे भी सोये हैं, मत तोड़ो हमारे मकान, मर जाएंगे हम। इस पूरी बात के दौरान महिला के हाथ उँगलियों से लेकर कोहनी तक हमारे आगे ऐसे जुड़ रहे, मानो किसी भगवान् से दिल खोल कर सब कह दिया और अब भगवान् जाने।

सैकड़ों की भीड़ में एक आक्रोशित युवक चिल्लाता हुआ आया, उसके बोलने की रफ्तार इतनी तेज थी की मुंह का थूक निकल कर सामने वाले पर किसी मिसाइल की तरह जा रहा था। मोदी और खट्टर से सवाल करते हुए बोला, अगर ये जगह अवैध थी तो क्यों सब कागजी कार्यवाही इस जगह के नाम पर हो रही थी आजतक। बारह हज़ार का शौचालय इसी जगह बनवा रहे थे न, तो अब क्या हो गया।

एक महिला ने जिक्र किया कि महेद्र प्रताप सिंह जो हरियाणा में पूर्व मंत्री रहे उन्होंने भी हमारे बसने में बहुत योगदान किया था। क्योंकि महेद्र प्रताप ने एक दफा कहा था, अपनी झुग्गियां पक्की बना लो ताकि हमें आने में शर्मिंदगी न हो तो हमने ऐसा किया भी। इसके बाद के नेता भी हमे प्रोत्साहन देते रहे, पर अब जब हम इनके कहने से अपना सब लगा चुके हैं तो तोड़ा जा रहा है। इसी में अब बच्चों के इम्तिहान हैं, बेघर बच्चे कहाँ जाएंगे, आप ही बताओ।

पूर्व खाद्य मंत्री हरियाणा, महेन्द्र प्रताप सिंह से इस मामले पर बात करने पर अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने बताया कि जब वह सरकार में थे तो इन्हें बसाने की कोशिश की थी पर तब तक उनका मंत्रालय बदल गया। अब सरकार को इनके लिए एक व्यवस्थित आवास का बंदोबस्त करना चाहिए, जैसा न्यायालय के दिशानिर्देश भी हैं। इतने लम्बे वक्त तक इन्हें क्यों नहीं बसाया जा सका, इस पर मंत्री से से कोई माकूल जवाब नहीं मिला।

झुग्गियों के पास बसे सेक्टर के लोगों से बात करने पर मिले-जुले विचार प्रकट करते हुए अधिकतर लोगों का मानना है कि ये गन्दगी है और इन्हें यहाँ से हटाना जरूरी है। क्योंकि इनकी वजह से प्रॉपर्टी के दाम गिर गए हैं, गन्दगी जो है सो अलग। इसके साथ सेक्टर निवासियों का मानना यह भी है की घरों के कामों के लिए इनकी आवश्यकता भी है।

सिंचाई विभाग के एक्सईएन रावत से यह पूछने पर कि लगभग 50 साल से जब लोग सरकारी जमीन पर हैं तो क्यों नहीं विभाग ने अपनी जमीन शुरुआत में ही बचाने का प्रयास किया। रावत ने बताया कि, क्योंकि प्रेम नगर और पटेल नगर की झुग्गियों में कुछ हिस्सा हुड्डा और एमसीऍफ़  का भी है तो सिंचाई विभाग को हुड्डा से आश्वासन था कि न्यायालय के नियम अनुसार पहले झुग्गीवासियों को कहीं बसाया जाएगा। इसलिए आजतक हुड्डा के भरोसे हम लोग थे। पर इतनीलम्बे वक्त तक क्यों?  कुछ कमी या उदासीनता कहें, वो हमारे विभाग के पूराने अधिकारियों की भी रही है ऐसे हालत बनने में।

जहाँ प्रेमनगर के निवासी फिलहाल स्थानीय विधायक नरेन्द्र गुप्ता को इन हालातों के लिए कसूरवार मान रहे हैं, तो वहीँ कुछ, स्थानीय पार्षद कुलदीप तेवतिया को झुगियाँ न टूटने का श्रेय दे रहे हैं। उनके अनुसार पार्षद के प्रयासों से ही उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने झुग्गियां टूटने से रोक दीं।

क्या सच में ऐसा ही है या ऐसा ही होता है। एक जमाने में इस इलाके में बरसों रहे, मजदूर मोर्चा के संपादक सतीश कुमार ने बताया कि ये सब राजनीति की सोची-समझी चाल होती है। पहले एक नेता इन्हें बसाएगा, बसाने के अहसान के बदले लेगा वोट और रैली की भीड़। फिर कुछ दिन बाद कोई दूसरा सत्ता में आते ही इन्हें उजाडऩे का ढोंग करेगा, क्योंकि इन्ही झुग्गी वालों में हर राजनैतिक पार्टी का एजेंट भी शामिल है, जिसके माध्यम से एक दिन नेता झुग्गियां टूटने से बचाएगा और सबको यकीन दिलाएगा कि मैं ही तुम्हारा असल पालनहार हूँ। प्रशासन चुपचाप  देखता रहता है और जब जिस नेता या दल का पलड़ा भारी पड़ता है उसके हिसाब से काम कर देता है, जैसा इस मामले में भी हो रहा है। जब तक ये गरीब अपनी ताकत और नेताओं की राजनीति नहीं समझेंगे इनके साथ यही होता रहेगा।

खैर, सब बातों के बीच अब झुग्गियां टूटने से बच गईं हैं, लेकिन कब तक? प्रशासन ने यहाँ के निवासियों को डबुआ और बापू नगर में 2011-12 में बने फ्लैट्स में बसाने की गुंजाइश बताई है। सिंचाई विभाग ने कहा है की वे अब एक्स्जामिन कर रहे हैं कैसे इन्हें बसा दिया जाए कहीं तब खाली करवाएं जमीन। इसका अर्थ है कि आजतक इस मसले पर सिंचाई विभाग सोया हुआ था। हुड्डा ने वादा किया था तो अब उससे वादाखिलाफी की जवाबदेही सिंचाई विभाग क्यों नहीं कर रहा?  पहले ये संभावनाएं क्यों नहीं तलाशी गईं, किसके इशारे से सब होने लगा और अब अचानक संभावनाए कैसे तलाशी जाने लगीं?

यह सही है कि विकास कार्य के लिए जमीन की आवश्यकता पड़ेगी और वह मिलनी भी चाहिए। पर क्या आपने कभी सुना है की किसी फिल्मस्टार, नेता या बड़े कारोबारी का मकान तोड़ा गया हो या उसका एक गमला भी इधर से उधर हुआ हो विकास कार्य के लिए? नहीं न? तो ये कैसा विकास है जिसका बुलडोजर हमेशा झुग्गियों पर ही चलता है वह भी बिना उन्हें कहीं और बसाये?

बेशक इन गरीबों का अपने मोहल्ले के पास रहना वैसा ही अखरने लगा है जैसा किसी जमाने में अंग्रेजों को अफ्रीका और साउथ अमेरिका में गए गरीब हिन्दुस्तानी मजदूर अखरते होंगे। ब्रिटिश बेशक गिरमिटियों से नफरत करते थे  पर अपने कामों के लिए उन पर आश्रित भी थे। वे अंग्रेज थे और नस्लभेदी भी, तो उनसे कैसी उम्मीद, पर जब हमारे अपने  प्रधानमंत्री मंच से 130 करोड़ का जिक्र करते हैं तो उसमे इनकी भी गिनती है। जहाँ झुग्गी वहीँ मकान का नारा दे, बने मकान तोडऩे वाले मोदी का सच सतीश कुमार की उपरोक्त बात में छिपा है।

नेता को राजनीति करनी है और अफसर को नौकरी। पर आप को और हमको जो एक दुसरे के पूरक हैं यह समझना होगा कि जब ये झुग्गीवाले नहीं होंगे तो घरों के काम, सड़कों पर रिक्शा, कौन करेगा?। घर से सड़क और कारखाने से पाखाने तक की गन्दगी यही साफ करते हैं। असल स्मार्ट सिटी का जिम्मा इन्ही के कन्धों पर डाल कर मोदी इतराते फिरते हैं। और जब ट्रम्  जैसा कोई अमीर आता है तो उसे खुश रखने के लिए कुछ को दीवार के  पीछे छिपा देते हैं, कुछ को पांच दिन में खाली करने का नोटिस भिजवा देते हैं।

पर भूल जाते हैं कि वो दीवार भी यही बनाते हैं, बुलडोजर भी यही चलाते हैं और जो कहीं गिरमिटियों की ही तरह इन्हें भी कोई गाँधी मिल गया और यह सब करने से इन्होंने मना कर दिया तो?

 

 

 

 

view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles